Thursday, April 13, 2017

व्यक्ति नाम पुरोवाक्

पुरोवाक्
शब्दों की व्युत्पत्ति जानना मानव के लिए सहज एवं स्वाभाविक जिज्ञासा है। एक सीमा तक व्युत्पत्ति के बाद भी शब्द अपना पूर्ण अर्थ प्रकट नहीं कर पाते। शब्द जब नाम बनते हैं तो व्युत्पत्ति से आगे वह नामी के संकेतार्थ प्रदान करने लगते हैं। यह संकेतार्थ नाम के स्वगुणार्थ से भिन्न होता है। नाम विज्ञान  (Onomastics) में सभी तरह के नामों का अध्ययन किया जाता है। व्यक्ति नाम अध्ययन (Anthroponomy or Anthroponomastics) नाम विज्ञान की ही शाखा है, स्थान नाम अध्ययन (Topnonymy) इसकी एक अन्य शाखा है।
स्थान नामों  पर जब मेरा अध्ययन सन् 2012 में प्रकाशित हुआ, उससे पूर्व वर्ष 2004 में व्यक्ति नामों पर अध्ययन करने का मन में विचार आया था, किंतु उस समय स्थान नामों के अध्ययन के लिए यूजीसी में लघु शोध परियोजना की रूपरेखा स्वीकृत होने पर उस अध्ययन के लिए प्रवृत हुआ। बाद में व्यक्ति नामों के अध्ययन के लिए भी यूजीसी में रूपरेखा प्रस्तुत की, यह स्वीकृत हुई और दो वर्षों तक निधि की प्रतीक्षा की गई, किंतु महाविद्यालय नैक से प्रत्यायित न होने के कारण स्वीकृत अनुदान प्राप्त न हो सका।
धन के कारण कोई शोधकार्य न हो पाए, यह उचित नही। अतः वर्षों से मंथन किए हुए काम पर आगे बढ़ना ही श्रेयस्कर लगा।
सामान्यतः, व्यक्ति नाम संस्कृति के संवाहक होते हैं। वे मानव सभ्यता के व्यक्त रूप ही नहीं, प्रामाणिक दस्तावेज़ भी हैं। व्यक्ति नाम न केवल मनुष्य की पहचान कराते हैं, अपितु लोगों के पारंपरिक मूल्यों, धार्मिक विश्वासों एवं सामाजिक रीति-रिवाजों को साकार करते हैं। व्यक्ति नाम लोगों की महत्वाकांक्षाओं एवं मनोकामनाओं के वाहन हैं। उनका व्यावहारिक महत्व के साथ-साथ प्रतीकात्मक महत्व भी है।
व्यक्ति नाम किसी निबंध के शीर्षक की भांति हैं। प्रत्येक व्यक्ति नाम निबंध की भांति व्यक्ति के इतिहास और जीवन को खोलकर उसे व्याख्यायित करता है। व्यक्ति नाम व्यक्ति की मृत्यु के बाद स्थान नाम की भांति तो जीवित नहीं रहते, पर नामी के कर्म-सौंदर्य को पीढ़ी दर पीढ़ी जीवंत रखते हैं। हमें आज भी तैमूर लंग, औरंगजेब, रावण, कंस जैसों के नाम सुनकर उनकी क्रूरता और अत्याचारों की सिहरन हो जाती है, वहीं राम, कृष्ण, विवेकानंद, महात्मा गांधी, अरविंद घोष जैसे नामों से उनकी सुकृतियां स्मृति चित्र पर अंकित हो जाती हैं।
किसी व्यक्ति का नाम, धाम और काम जानने की त्रिधा जिज्ञासा में पहली जिज्ञासा नाम जानने की होती है। उस नाम के सहारे मिलने वाला व्यक्ति नामी के व्यक्तित्व तक पहुंचना चाहता है। तत्पश्चात् यदि आवश्यक समझा गया तो वह काम और धाम की जिज्ञासा की ओर बढ़ता है।
व्यक्तिगत नामों में सबसे बड़ी संख्या मनुष्यों के नामों की है। बिना नाम का कोई व्यक्ति नहीं होता। प्रस्तुत अध्ययन बुंदेलखंड के व्यक्ति नामों को केंद्र में रखकर किया गया है। बुंदेलखंड के व्यक्ति नामों में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और बौद्ध ही नहीं, जैन धर्म के व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व हो जाता है। यहां बड़ी संख्या में आदिवासी, बंजारा और कबूतरा आदि घुमंतू जातियों का भी निवास है। अतः बुंदेलखंड अंचल में देश के वैविध्य की झांकी मिल जाती है। यहां के व्यक्ति नाम देश के अन्य क्षेत्रों के व्यक्ति नामों की विशेषताएं भी रखते हैं, किंतु यहां के विशिष्ट नामों की साम्यता अन्यत्र दृष्टिगोचर नहीं होती। पशु-पक्षी, जीव-जंतु,, पेड़-पौधे, प्रकृति, जलवायु आदि के नामों पर देश ही नहीं दुनिया में भी व्यक्ति नाम रखे जाते हैं, बुंदेलखंड भी इससे अछूता नहीं है। धार्मिक परंपराओं और साहित्यिक ग्रंथों तथा देश के अन्य क्षेत्रों से प्रभावित होकर यहां व्यक्ति नाम आनीत हुए हैं। इन परंपराओं और प्रकृति के प्रभाव से राज्य ही क्या, देश की सीमाएं भी बंधी नहीं रह पातीं। ग्रीक हैरोडोटस एवं संस्कृत हरदत्त, क्लैन और कुल आदि नामों की अर्थतात्विक समानता मात्र संयोगवश नहीं है। बुंदेलखंड के व्यक्ति नामों में ‘इमता’ अमृत सिंह भी है और अहमद खां भी, परवीन प्रवीण कुमार है तो परवीन बानो या नायला परवीन भी है। सोरब कितना सोहराब है और कितना सौरभ, जब आगे पता करते हैं, तभी वास्तविकता ज्ञात हो पाती है। यहां नामों के ध्वनि रूप घिसकर विभिन्न भाषा परिवारों के भेद को लुप्त कर देते हैं। बुंदेलखंड के लोधी राजपूत और सल्तनत काल के लोदी वंश में लोग बहुधा भ्रमित हो जाते हैं। वहीं तमिलनाडु की तरह यहां अविवाहित महिलाओं के नाम में पिता का तो विवाहित महिलाओं के नाम में पिता का नाम जुड़ा हुआ मिल जाता है।
भारत में व्यक्ति नामों पर आधुनिक युग में छिटपुट अध्ययन ही हुआ है। हिंदी में इस पर प्रथम व्यवस्थित अध्ययन 1952 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से डॉ धीरेंद्र वर्मा के निर्देशन में विद्याभूषण विभु ने हिंदी प्रदेश में प्रचलित पुरुष नाम’ से किया है, जो हिंदुस्तानी अकेडमी से ‘अभिधान अनुशीलन’ नाम से प्रकाशित हुआ है। हिंदी भाषा में इसके बाद  1978 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से डॉ शिवनारायण खन्ना का ‘उपनाम : एक अध्ययन’ प्रकाशित पुस्तक मिलती है, जिसमें हिंदी साहित्यकारों के उपनामों का अनुशीलन किया गया है। 1981 में डॉ चितरंजन कर ने An Onomastics Study of the Inscriptions of Chhattisgarh नाम से अध्ययन किया, जो नाम विज्ञान शीर्षक से विवेक प्रकाशन रायपुर से साइक्लोस्टाइल रूप में मुद्रित है।
अंग्रेजी भाषा में The Book of Indian Names रूपा एंड कंपनी से 1994 में प्रो राजाराम मेहरोत्रा के संपादन में प्रकाशित हुई, जिसमें देश की विभिन्न भाषाओं के व्यक्ति नामों पर उपयोगी उन्नीस आलेख संग्रहीत हैं। संस्कृत और भाषा विज्ञान के प्रोफेसर डी डी शर्मा ने भारतीय व्यक्ति नामों का ऐतिहासिक समाज-सांस्कृतिक एवं भाषा वैज्ञानिक विश्लेषण किया, जिसे उन्होंने Panorama of Indian Anthroponomy नाम से 2005 में प्रकाशित कराया है। Personal Names and Surnames in Bengali नाम से 1963-66 में भवतरण दत्त ने कोलकाता विश्वविद्यालय में अपना पीएच डी शोध कार्य संपन्न किया। 1981 में यह पुस्तक प्रकाशित हुई, पर अब यह अनुपलब्ध है, इसकी समीक्षा एक जर्नल में प्रकाशित मिलती है।
पाकिस्तान के प्रो तारिक़ रहमान की Names: A Study of Personal Names, Identity and Power in Pakistan पुस्तक ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस कराची से 2015 में प्रकाशित हुई है। The International Council of Onomastic Sciences से Onoma शोध जर्नल 1950 से निकल रहा है। भारत के हिंदीतर भाषा क्षेत्रों में भी व्यक्ति नामों पर स्फुट कार्य प्रकाशित हुए हैं।
विशाल संख्या में विद्यमान व्यक्ति नामों में से चयन की समस्या इस कार्य को करने के समय रही। बुंदेलखंड के तेरह जिलों के यादृच्छिक रूप से एक-एक मतदान केंद्र की मतदाता सूची से व्यक्ति नाम लिए गए। उरई निर्वाचन कार्यालय से जालौन जिले की विभिन्न मतदाता सूचियों की छायाप्रतियां ली गईं। विद्यालयों की छात्र उपस्थिति पंजिका से नौनिहालों के नाम प्राप्त हुए। प्राप्त व्यक्ति नामों को विभिन्नि वर्गों में विभक्त किया गया। इसके अतिरिक्त जिन पुस्तकों की सहायता ली गई है, उनकी सूची पुस्तक के परिशिष्ट भाग में दी गई है। व्यक्ति नामों की विभिन्न श्रेणियां भी परिशिष्ट में दी गई तालिकाओं में दृष्टव्य हैं। मात्र इतने से यह अध्ययन पूरा करने की सामग्री पर्याप्त नहीं थी। जन्म एवं कर्मस्थली बुंदेलखंड होने से शैशवकाल से ही बुंदेली भाषा का संस्कार मिला। पूज्य द्वय- पिताजी श्री बाबूलाल द्विवेदी एवं मार्गदर्शक- भैया श्री जुगुल किशोर तिवारी द्वारा मेरी अनगढ़ता का परिष्कार हुआ। कबूतरा, मोगिया, सहरिया, लोहगढ़िया, कुचबंदिया आदि घुमंतू जातियों और जनजातियों के डेरों पर जाकर उनके नाम पता किए। अस्तु! बुंदेली की मेरी पृष्ठभूमि यह अध्ययन संपन्न करने में सहायक हुई, जो पुस्तक का उपजीव्य उपस्कारक माना जा सकता है।
व्यक्ति नामों के संबंध में विलियम शेक्सपियर की उक्ति ‘नाम में क्या रखा है’ से अकादमिक जगत में नामानुशीलन में कदाचित् उपेक्षा आ गई थी, किंतु नाम अध्ययन के माध्यम से हम उस क्षेत्र के इतिहास, मनोविज्ञान, भूगोल, समाज-संस्कृति और भाषा के अनछुए पहलुओं को सामने ला सकते हैं, जिसे संपन्न करने में अंतर्विषयी अध्ययनों को विभिन्न भाषा-बोलियों में ही नहीं, अतिभाषिकता में भी जाना पड़ता है। नामों के रूप में अनेक ऐसे शब्दों का प्रयोग मिलता है, जिन्हे हम अन्यत्र और अन्यथा प्रकार से ज्ञात नहीं कर सकते।
नाम अनुशीलन बहुत विशद विषय है। एक-एक नाम की महाकाव्यात्मक कहानी है। इस कहानी को ही तो ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न अनुशासन अपने अपने ढंग से अभिव्यक्त कर रहे हैं। नाम विज्ञानी को प्रत्येक नाम ग्राह्य और उपयोगी होता है। व्यक्तिगत तथा सामाजिक कारणों से व्यक्ति नामो में परिवर्तन होते रहते हैं, किंतु किसी नाम को नष्ट करना कई बार अनुपयुक्त लगता है। कोई नाम तत्संबंधी संस्कृति का साक्षी होता है। उरई के प्रसिद्ध मच्छर चौराहा का नाम मच्छरमल सिंधी के नाम पर पड़ा। चौराहे पर इनकी चाय की दुकान थी, जो इतनी प्रचलित हुई कि चौराहे को इन्हीं के नाम से जाना जाने लगा। सैकड़ो वर्षों बाद अब उसका नाम बदलकर भगतसिंह चौराहा रख दिया गया, किंतु ऐसा करने से वह मच्छर सिंधी और उसकी चाय की दुकान का तत्कालीन परिवेश हमारे स्मृति पटल से ओझल हो गया। नाम से अपरिचित व्यक्तियों की जो जिज्ञासा और कौतूहल इस नाम के प्रति होता, वह भी नहीं रहेगा। मच्छर शब्द से अरुचि होने के कारण यह नाम परिवर्तन किया गया, किंतु किसी नाम के प्रति ऐसी अरुचि हमारी विविधता और सामासिक संस्कृति के लिए उचित नहीं है। बाबर, औरंगजेब, जयचंद, औपनिवेशिक काल के अंग्रेज आदि अनेक खल नामों को भी हम विलग नहीं कर रहे हैं। देश की राजधानी में इन सभी के नामों पर मार्गों के नामकरण किए गए हैं। इनके नाम अत्याचार और कुत्सित कारनामों के जीवंत स्मारक हैं। अस्तु! हमें पुराने नामों को नष्ट करने की अपेक्षा नए नामों को सृजित अथवा पुनर्सृजित करने की आवश्यकता है।
व्यक्ति नामों का अध्ययन इस दौर में अधिक आवश्यक हो जाता है जब नए-नए नामों को रखने का प्रचलन बढ़ने लगा है और पुराने नामों को छोड़ा जाने लगा है। पुराने नाम जनभाषा का प्रतिनिधित्व करते हैं। जनभाषा द्वारा हम वेद के मूल तक भी पहुंच सकते हैं। नामों में भाषा का ध्वनिरूप सुरक्षित रहता है। व्याकरणशास्त्री भाषा और शब्दों में समय-समय पर तरह-तरह के विधान करते हैं, किंतु नामों को उन्हें यथारूप लेना होता है। दूसरी भाषा में इनका अनुवाद मान्य नहीं होता। यदि किसी ने अपना नाम व्याकरणिक शब्द कोटि से पृथक भी रखा तो वह नाम के रूप में त्रुटिपूर्ण नहीं, जबकि वही शब्द भाषा में वर्तनी अथवा संबंधित दोष के अंतर्गत माना जाएगा।
किसी भाषा का स्वाभाविक रूप व्यक्ति नामों में दिखता है, क्योंकि व्यक्ति नामों में किसी प्रकार आडंबर संभव नहीं होता। नामों में अंग्रेजी, फारसी, अरबी आदि भाषाओं के शब्द प्रयोग से स्पष्ट है कि विदेशी संस्कृतियों का प्रभाव भारत की संस्कृति पर पड़ा है, किंतु इस प्रभाव के बावजूद स्थानीय संस्कृति पृथक नहीं हुई, वह बोली-भाषा, मनोदशा और रीति-रिवाजों के रूप में अक्षुण्ण बनी हुई है। इसीलिए बाहर के मैथ्यु और मैरी हमारे यहां क्रमशः मथाई और मरियाकुट्टी हो जाते हैं।
धर्म, जाति, व्यवसाय आदि की सूचना तो नाम से मिलती ही है, नामकरण की प्रवृत्ति से व्यक्ति के संस्कार, शिक्षा और मनोवैज्ञानिक कारकों का दर्शन भी होता है। व्यक्ति नामों में स्थान नामों का योग उनकी स्थानीय अस्मिता को सुरक्षित करने का प्रयत्न मालूम पड़ता है।
किसी भाषा में व्यक्ति नामों की बारंबारता अस्वाभाविक नहीं है। संपूर्ण क्षेत्र के व्यक्तियों को अलग-अलग नामों से विहित करना संभव नहीं हो पाया, यद्यपि व्यक्तियों का प्रयास भिन्न नाम देने का रहता है, किंतु इस प्रक्रिया में मूल शब्दों का सहारा लिए बिना काम नहीं चल पाता। तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी नाम इतिहास संबंधी सूचनाएं देते हैं। देशज और तद्भव प्राचीनता के सूचक हैं तो तत्सम अतिप्राचीनता एवं आधुनिकता के प्रतीक हैं। समकालीन व्यक्ति नामों में संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग बढ़ा है।
व्यक्ति नाम उस सिक्के की भांति होते हैं, जो घिसते रहने के बाद भी अपना मूल्य नहीं खोते। ध्वन्यात्मक और रूपात्मक परिवर्तन होने पर भी उनका अर्थसंबंधी महत्व कभी कम नही होता। इस रूप में व्यक्ति नाम बोली विज्ञान के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करते हैं। जब तक सृष्टि रहेगी, नामी न रहे, पर नाम रहेंगे। नामों द्वारा भाषा में शब्द निर्माण के समय प्रयुक्त सहायक तत्वों का पता लगाया जा सकता है। इसीलिए पहले कुछ भाषावैज्ञानिकों द्वारा नाम विज्ञान को भाषा विज्ञान की सीमा में न माने जाने के बाद अब स्वीकृत हो गया कि वास्तव में व्यक्ति, वस्तु और स्थानों के अनेक नामों से भाषा विज्ञान के महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रकाश में आते हैं। भाषा की हर शाखा नामों से प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध रखती है।
इस अध्ययन में नाम के सभी प्रकार के रूप, आधार एवं श्रेणियां आ गई हों, ऐसा दावा कदापि नहीं किया जा सकता, क्योंकि विशाल जनसंख्या और भाषा, धर्म, क्षेत्र, रंग, खान-पान, रीति-रिवाज आदि विविधताओं के देश के एक-एक नाम में कई तरह के रूप और प्रकार बन जाते है। पुस्तक में नामों की जो कोटियां, आधार और रूप दिए गए हैं, उनसे व्यक्ति नामों का एक सामान्य दिग्दर्शन हो जाता है। प्रस्तुत अध्ययन के बाद हिंदी में नामानुशीलन करने वाले सुधीजन इसके अन्य अनछुए पहलुओं को अनावृत कर सकते है।
पुस्तक को आठ अध्यायों में विभक्त किया गया है। परिशिष्ट भाग में दी गई विभिन्न तालिकाओं और नाम सूचियों से पुस्तक की विषय वस्तु खुलती है। समकालीन व्यक्ति नामों के शाब्दिक और अंतर्निहित अर्थ दिए गए हैं। बहुध यह अंतर्निहित अर्थ व्युत्पत्तिगत अर्थ से भिन्न है। हिंदी और उर्दू (अरबी-फारसी) नामों की सूची अर्थ सहित दी गई है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि व्यक्ति नामकरण के आधार इस दुनिया में अलग-अलग नहीं, बल्कि एक ही हैं, उन्हें हमने विभिन्न शब्द रूपों के सहारे व्यक्त किया हुआ है।
ंअंत में अर्द्धांगिनी के प्रति आभार, जो इस कार्य के दौरान परेशान रहती कि हर खाली समय लिखने पढ़ने बैठे रहते, लेकिन अप्रकट कामना रखती कि अगर यह कुछ कर रहे हैं तो कुछ अच्छा ही होगा और घर की व्यवस्था बनाए रहती। बेटी ने कभी शिकायत की ही नहीं, उसे स्नेहाशीष। अनुज नीरज और अन्य मित्रों को साधुवाद, जिनसे समय-समय पर यत्किंचित वार्ता-सहयोग लेता रहा।
शब्दार्णव, उरई            राकेश नारायण द्विवेदी