Friday, February 3, 2023

जनवरी 2023

१/१/२३ काल की अखंडता में सौंदर्य का दर्शन क्षण क्षण ही हो पाता है। एक क्षण से दूसरे क्षण के बीच को संधि काल कहते हैं। यह सदा नया रहता है। इसी का संधान व्यक्ति करता जाता है। नव और कुछ नहीं होना ही है, यह क्रियात्मक रूप में ग्रहणशील है। इस सतत हुबपन के हम ग्राहक बनें। आप सबको आंग्ल नववर्ष मंगलमय हो। यह आंग्ल नववर्ष भले हो, पर इसे सनातनी अपनी परंपरा में ढालकर मनाते हैं। पश्चिम में इस दिन मदिरापान करते हैं और नाचगान करके उत्सव मनाते हैं, जबकि यहाँ लोग मंदिरों में जाकर इस संधिकाल के साक्षी बनते हैं... क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदैव रूपं रमणीयतायाः। ४/१/२३ There are no absolute truths. Everything changes. Keep mind open and swim like a fish in the ocean of change ! ६/१/२३ नाद का अभ्यास ही वस्तुतः कर्म है। यही ज्ञान में पर्यवसित होता है। जब तक नाद स्वतः सिद्ध भाव से स्फुरित नही होता तब तक मन को संलग्न करने का कोई आधार नही है। नाद के अलावा मन को शुद्ध करने का कोई दूसरा उपाय नही है। नाद के प्रभाव मन की आवर्जना दूर होते होतें मन सूक्ष्म अवस्था प्राप्त करता है। नाद चैतन्यमय है चैतन्यमय का अवलंबन किये बिना मन को निरोध करने की चेष्टा तमोभाव और जड़त्व को आह्वान करना मात्र है। एक बार शुद्ध नाद का आश्रय पाने और उसे बराबर पकड़े रहने पे मन की मलिनता दूर हो जाती है। 🌹🌺💐🥀🌷 (सनातन साधना की गुप्त धारा) दिखने के लिए कुछ होना ज़रूरी है होने के लिए सब खोना ज़रूरी है। सुंदर! तिरोहिता❤️ ८/१/२३ दोहा यह रहस्य रघुनाथ कर बेगि न जानइ कोइ। जो जानइ रघुपति कृपाँ सपनेहुँ मोह न होइ॥ तुलसी दास जी पर नारी निंदा का आरोप लगाये जाते हैं। वस्तुतः गुरुदेव की कृपा के बाद अब अनुभूति हुई कि नारी माया और शक्ति दोनों रूपों में है। ज्ञानोपलब्धि पर मायारूपी नारी शक्तिस्वरूपा हो जाती है। यह भेद ना जानने के कारण व्यक्ति तुलसीदास जी के इस प्रकार के काव्य का वास्तविक अर्थों में अवगाहन नहीं कर पेट हैं। आजकल ध्यान एक लहर बन जाता है। समुद्र में जैसे लहरों का उठना गिरना चलता है, वैसे ही अनुभूति ध्यान की गहराई में होने लगती है। देह मन और बुद्धि की चेतना से पार एकतान सागर में गोता लगा हुआ। यह जानने वाला ही ईश्वरंश है। प्रणवो धनु: शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते। अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्तन्मयो भवेत॥" भावार्थ -- प्रणव धनुष है, आत्मा बाण है और ब्रह्म उसका लक्ष्य कहा जाता है। उसका सावधानी पूर्वक वेधन करना चाहिए और बाण के समान तन्मय हो जाना चाहिए। कठोपनिषद https://hi.bharatpedia.org/wiki/%E0%A5%90 ९/१/२३ एक काम से दूसरे काम के बीच हम क्या सोचते हैं, हमारी ख़ुशी और सुख उस पर निर्भर करता है। अगर हम उस अंतराल में आनंदित हैं तो सुखी हैं, और यदि चिंतित हैं तो दुःखी हैं। 11/1/23 सुख के तीन दुःख होते हैं। उसे पाने का दुःख, संजोए रखने का दुःख और छूटने का दुःख। बुद्ध १४/१/२३ रिवर्सल ऑफ़ माइंड इज नमः... लक्ष्मी वह अच्छी जो स्वतः आए और अध्यवसाय के लिए निविष्ट की जाए। सरस्वती वह अच्छी जो अध्यवसाय पूर्वक प्राप्त हो किंतु जन समूह में स्वतः प्रकाशित होती रहे। स्वाभाविक रूप में लक्ष्मी का आना भला और सरस्वती का जाना भला। 15/1/23 प्राचीन भारतीय ऋषियों द्वारा दी गई यह कितनी विलक्षण व्यवस्था है कि हज़ारों वर्षों पूर्व तक जब कोई यातायात का साधन नहीं था , उस समय सुदूर देश के कोने कोने में मकर संक्रांति का पर्व एक ही समय मनाया गया। यह सूर्य में राशि परिवर्तन भिन्न भिन्न नामों से भारत भर में लक्षित किया गया। सनातन काल से यह पर्व अन्य सभी पर्वों से अधिक व्याप्त देखा जा रहा है। देश और दुनिया में अलग अलग कैलेंडर हैं, उनमें बहुत सी भिन्नताएं हैं, किसी का वर्ष कभी शुरू होता है तो किसी का अन्य ऋतु में, पर मकर संक्रांति पर सबकी काल गणना एक हो जाती है। अंग्रेज़ी कैलेंडर से प्रतिवर्ष १५ जनवरी (पहले १४ जनवरी) को यह पर्व घटित होता है। एक दो दिन के अंतराल से यह कहीं लोहड़ी, कहीं खिचड़ी, कहीं उत्तरायण तो कहीं पोंगल इत्यादि नामों से मनाया जाता है। तरह तरह के ख़ान पान से भी यह त्योहार विशिष्ट हो जाता है। स्नान दान की परंपरा इस अवसर पर हिंदी क्षेत्र में दिखती है, स्नान यानि अपने को ताजा करना, अज्ञान को बहाना और ज्ञान में विलीन होना। अज्ञान से उत्तीर्ण होने के कारण पढ़े लिखे लोग विश्वविद्यालय से स्नातक और परा स्नातक उपाधि पाते हैं। संक्रांति या पोंगल के अवसर पर तमिलनाडु में गोदा नाम की अंदाल भक्त महिला ने जो कृष्ण परंपरा के गीत गाए हैं, वही मथुरा में सुनायी देते हैं, कृष्ण भक्ति के यही गीत गुजरात में तो असम में भी गाए जाते हैं... बुंदेली में सक्रांत गीत (एक तरह से अर्चना गीत या अचरी) इस अवसर पर गाने की परंपरा रही है... वर्ण रंग को कहते हैं। सृष्टि रंगों में परिलक्षित होती है। हिमालय की हिमाच्छादित चोटी पर सूर्य की जब पहली किरण पड़ती है तो विभिन्न रंग बिखरे हुए दिखते हैं, यह छटा दर्शनीय होती है। इन वर्णों से ही शब्द वर्णन आया है। रंग दर्शन और उनकी व्याख्या को वर्णन कहते हैं। वर्ण व्यवस्था सृष्टि उद्गम की भिन्न भिन्न दशाओं का नामकरण है। इसी को दुनिया में अन्यत्र रंग भेद के रूप में देखा जाता है। सृष्टि उत्पन्न होने पर भेदमूला है, अव्यक्त रूप में वह अभेदमूला है। इस भेदाभेद का सम्यक् दर्शन न करने के कारण ऊँच-नीच और विषमता फैल जाती है। गोस्वामी तुलसी दास जी की मानस की कतिपय चौपाइयों को हमें इसी आलोक में देखना श्रेयस्कर है। हमारे भीतर चारों वर्ण हैं, उनका क्रमिक विकास होता रहता है। वर्ण दशा के विकास क्रम में शूद्र को ताड़ने की आवश्यकता रहती ही है। अब आप ताड़ने का जो भी अर्थ ग्रहण करें, उससे कोई समस्या नहीं होगी। नारी अज्ञान का प्रतीक है, ज्ञान दशा में वही शक्तिस्वरूपा है। नर सृष्टि में जब माया का प्रभाव आत्यंतिक रूप से मनुष्य पर छा जाता है तो इसे नारी कहते हैं। नारियल में यह 'नारी' झांक रहा है। नारियल भीतर से कोमल होते हुए भी बाहर कितनी कठोरता से आवृत रहता है। माया का आवरण कठोर अवश्य है, पर अभेद्य नहीं। उसका भेद पा जाने पर वह सुस्वादु और पौष्टिक लगने लगती है। तुलसी ने इसी अर्थ में नारी को लेकर बातें की हैं, शूद्रों की ही भाँति उन्हें लेकर भी परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। तुलसी ही नहीं, अन्य संतों की बानी भी इसी भाँति कही गई हैं। वस्तुतः सिद्धों और संतों की बातों में जब हम समाज सुधार के तत्व देखना चाहते हैं तब शूद्र और नारी को लेकर आयी बातों की वास्तविक सच्चाई जानने की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। संतों की बानियाँ समाज सुधार के लिए नहीं, व्यक्ति के रूपांतरण के लिए कही गई हैं। व्यक्ति के रूपांतरण होने पर समाज सुधार स्वयमेव हो जाएगा। और वे व्यक्ति के रूपांतरण के लिए भी नहीं कही गई, वरन् स्वान्तः सुखाय व्यक्त आनंदोच्छलन हैं। जिसको समझ न आ पा रही हों, तो उन्हें एस्केप कर जाइए। जब आयेंगी, तब आ ही जायेंगी। हमें भी पहले लगता था यह तुलसी बाबा क्या कह गये हैं, पर जब जितनी समझ आएगी, चीजें वैसी ग्रहण हो पाएंगी न! एक शिष्य का काम है गुरु को संतुष्ट करना। पर जो स्वयं तृप्त हैं उन्हें कैसे संतुष्ट किया जाये? श्री श्री रविशंकर २०/१/२३ बागेश्वर धाम सरकार पंडित धीरेंद्र कृष्ण जी को नेशनल मीडिया चैनलों पर समाचार के रूप में देखा । एक लंबे और लाइव कार्यक्रम में उन्हें सुना। उनके विभिन्न चमत्कारों पर यदा-कदा पहले भी उन्हें सुनते आए हैं। उनकी प्यारी और बेलौस बोली बुंदेली सुनकर अच्छा लगता है। पतंजलि योगसूत्र में विभिन्न सिद्धियों का वर्णन मिलता है। कोई मनुष्य उन सिद्धियों को प्राप्त कर सकता है। पर पंडित धीरेंद्र कृष्ण जी लोगों को सिद्धियों में बहलाना नहीं चाहते, वे तो भगवान और हनुमान जी का भक्त बनने की सतत प्रेरणा देते हैं। लोग उनके चमत्कारीं पर केंद्रित हो रहे हैं। अस्तु! मेरी तो कामना है शीघ्र वे इस प्रकार अपनी सिद्धियों का दर्शन कराना बंद कर दें। जनता को ज्ञान, भक्ति और कर्म के मार्ग पर चलना श्रेयस्कर है। चमत्कारों का भविष्य नहीं होता, न उनकी समाज में उपयोगिता है। यह सतही चमत्कार हैं, हमें इनसे आगे और गहरे चमत्कारों से जुड़ना चाहिए, जो हर प्राणी के साथ हर क्षण घटित हो रहे हैं.... पंडित जी के ऐसे आशय को जनता समझे तो कितना अच्छा हो.... २२/१/२३ श्रद्धा और विश्वास में अंध उपसर्ग लगाने से उनका अर्थ हनन हो जाता है। श्वास या सांस की विशिष्टता विश्वास है। श्वास केवल नाक से नहीं ली जाती, सारा शरीर और उसका पोर-पोर साँस लेता है। केवल नाक खोल दें और शेष शरीर बंद कर दें तो कहते हैं व्यक्ति तीन दिन से अधिक जीवित नहीं रह सकता। विश्वास और श्रद्धा बहुत बड़ी अर्थवत्ता के शब्द हैं। इन शब्दों के पहले अंध लगाने से उस अर्थवत्ता की ऊँचाई सोचनी कठिन हो जाती है। जब विश्वास और श्रद्धा का उदय हो जाता है तब अंधता और सूझता का स्थान ही नहीं रह जाता। व्यक्ति प्रकाशमय हो जाता है। अतः अंधविश्वास और अंधश्रद्धा जैसे शब्दों का कोई मूल्य नहीं है। यह वैसे ही है जैसे कोई कहे कुटिल भगवान, दुष्ट ईश्वर। भगवान और ईश्वर के आगे विशेषण रखने का कोई अर्थ नहीं। अंधविश्वास अंग्रेज़ी सुपरस्टीशन का प्रतिरूप रखा गया शब्द है। अंध श्रद्धा ब्लाइंड फेथ है। परंतु श्रद्धा फेथ नहीं है। श्रद्धा और विश्वास की ध्वनि और अर्थ, प्रयोग और परंपरा पर विचार किए बिना इसमें अंध लगा दिया गया। कहा गया है- भवानी शंकरौ वंदे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ। याभ्यां विना न पश्यंति सिद्धाः स्वान्तः स्थमीश्वरं॥ मैं भवानी और शंकर की वंदना करता हूँ, जो श्रद्धा और विश्वास के रूप में सबके हृदय में निवास करते हैं। बिना श्रद्धा और विश्वास के सिद्ध भी अपने अंदर बैठे ईश्वर को नहीं देख सकते हैं। विशेषण का अर्थ संज्ञा पर आरोपित करने से संज्ञा का सत्व तिरोहित हो जाता है.... अंधश्रद्धा और अंधविश्वास डिल्यूज़न, जिसे माया समझा जाता है, उसे ही कहा जाना चाहिए। उक्त बातें तब के लिए हैं जब व्यक्ति तर्क और आस्था का समुचित प्रयोग करना जान ले। २३/१/२३ आजकल सोते समय और जागते समय एक एक घंटा ध्यान और क्रिया हो रही है। स्टिलनेस में चक्रों में सहस्रार तक सुरसुरी चलती रहती है। कभी कभार क्या अक्सर यह स्थिति ध्यान के बिना भी रहती है। एक आनंद, निरालंबन, तुष्टि और निश्चिंतता। पढने के बाद लिखना और लिखने के बाद पढ़ना जिसने न किया उसका पढ़ना लिखना ब्यर्थ है। लेकिन कई गुना पढने के बाद ही कुछ लिखने की योग्यता पैदा कर सकता है। आत्माभिव्यक्ति के लिए भी लिखने का कौशल चाहिए। फेस बुक और अन्य सोशल साइट्स सबको मंच दे रहे हैं। अवश्य लिखे। मन की लिखें। २३ जनवरी २०१५ की फ़ेसबुक पोस्ट २७/१/२३ उच्चतम चेतना की दशा में स्त्री माता हो जाती है, निम्नतम चेतना में वह भोग्या लगती है। आदि शंकराचार्य, रमण महर्षि इत्यादि ऋषिगण ने ऐसे ही संकेत अपने उद्बोधनों में किए हैं। उच्चतम चेतना में शाकाहार और मांसाहार का अंतर नहीं रह जाता। कौन किसका आहार कर रहा है? अन्न हमारा और हम अन्न का आहार करते हैं। हम ही जब अन्न हैं तो क्या शाक और क्या मांस। उच्चतम दशा में यम नियम स्वयं घटित हो जाते हैं। या कह सकते हैं ऐसी अवस्था में जो कुछ हो रहा होता है वही यम और नियम हैं। किंतु यहाँ तक समझ ले जाने के लिए हमें संस्कृति के विभिन्न तत्वों से होकर गुजर जाना होता है। धर्म यहाँ महती भूमिका निभाता है, फिर जब छत पर पहुँच जाते हैं तो व्यक्ति अधार्मिक होकर रह ही नहीं सकता। the dancer is that who conceals his real nature. When you conceal your real nature of your Being and reveal another formation of your being to the public, that is the dancer, that is the way of dancing. २८/१/२३ योग वासिष्ठ में वसिष्ठ राम से कहते हैं यह सृष्टि 76 बार बनी है और तुम भी 76वे राम हो। योग वासिष्ठ के आधार पर हॉलीवुड में एक फ़िल्म 1999 में The Matrix बनी है। इसमें आता है Let me tell you why you are here. You are here because you know something. What you know you can’t explain, but you feel it. You felt it your entire life. You don’t know what it is, but it is there, like a splinter in your mind. It is this feeling that has brought you to me. Do you know what I’m talking about? The Matrix. Do you want to know what it is? The Matrix is everywhere, all around us, even now in this very room. Unfortunately no one can be told what the Matrix is. You have to see it for yourself.. २८ जनवरी २०२१ फेसबुक पोस्ट