Monday, October 31, 2022

अक्टूबर 2022

२/१०/२२ लश्कर-ए-गांधी को हथियारों की कुछ हाजत नहीं, हां मगर बेइंतिहा सब्र-ओ-कनाअत चाहिए गुरु कहे सो कीजिए करे सो कीजिए नाहि ४/१०/२२ मेधा ऋषि राजा सुरथ और समाधि नामक वैश्य को भगवती की महिमा बताते हुए मधु कैटभ वध का प्रसंग सुनाते हैं। देवी भगवती महिषासुर की सेना और उसका वध करती हैं। फिर भगवती घोषणा करती है- जो मुझे संग्राम में जीत लेगा, मेरा दर्प दूर करेगा, मेरे समान बलवान होगा, वही मेरा भर्त्ता होगा। अतः शुम्भ या निशुम्भ कोई भी आकर मुझे जीतकर पाणिग्रहण कर ले”- “यो मां जयति संग्रामे यो मे दर्प व्यपोहति। यो मे प्रतिबलो लोके स मे भर्त्ता भविष्यति।। इसके बाद भगवती शुंभ निशुंभ के सेनानी धूम्रलोचन, चंड और मुंड, रक्तबीज, निशुंभ एवं शुंभ आदि असुरों का संहार करती हैं। इसका सीधा अर्थ है कि मनुष्य के विकार रूप बड़े - बड़े असुर भी सूर्य, चंद्र और अग्नि नेत्र रूपा भगवती को परास्त नहीं कर सकते। मां के साथ सहचर हुआ जा सकता है बस, शिव बनकर। कथा के अनुसार देवी के वरदान से यह सुरथ (यानि अच्छे रथ पर सवार) क्षत्रिय ही सावर्णि (यानि स (उस) वर्ण के) मनु हुए। नवरात्रोपासना के उपरांत जब दस रथ की सवारी करके अर्थात् दशद्वार से उत्पन्न राम की चेतना मनुष्य में जाग्रत होती है तभी रावण जैसे महा असुर का संहार होता है। मधु का अर्थ राग, कैटभ का अर्थ द्वेष है। रक्तबीज हमारी नकारात्मकता और वासनाएँ है। महिषासुर का अर्थ जड़ता है। शुंभ का अर्थ है स्वयं पर संशय जबकि निशुंभ का अर्थ है सब पर संशय। नवरात्र के नौ दिनों में तीन तीन दिन तीन गुणों के अनुरूप हैं। हमारी चेतना तामस और रजस के बीच बहते हुए अंत के तीन दिनों में सत्व गुण में प्रस्फुटित होती है। सत्व गुण बढ़ने पर ही विजय की प्राप्ति होती है। इनमे से किसी पात्र को इतिहास और जाति में मत खोजिए। यह सब हर मनुष्य के भीतर उपस्थित अंतर्द्वंद्व हैं. वैश्य उदर चेतना तो क्षत्रिय कर्म चेतना को अभिव्यक्त करने वाले वर्ग हैं। आप सबको नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ... मंत्राणां मातृका देवी शब्दानां ज्ञानरूपिणी । ज्ञानानां चिन्मयातीता शून्यानां शून्यसाक्षिणी । यस्याः परतरं नास्ति सैषा दुर्गा प्रकीर्तिता ॥ ६/१०/२२ बद्धो हि को यो विषयानुरागी को वा दरिद्रो हि विशालतृष्णः श्रीमांश्च को यस्य समस्ततोषः। विद्या हि का या ब्रह्मगतिप्रदा या  बोधो हि को यस्तु विमुक्तिहेतुः । को लाभ आत्मावगमो हि यो वै जितं जगत्केन मनो हि येन । ११ । विषाद्विषम् किं विषयाः समस्ता  दुःखी सदा को विषयानुरागी।   धन्योस्ति को यो परोपकारी  कः पूजनीयः शिवतत्वनिष्ठः। १३ । संसारमूलं हि किमस्ति चिंता। लघुत्वमूलं च किमर्थितैव गुरुत्वमूलं यदयाचनं च । जातो हि को यस्य पुनर्न जन्म को वा मृतो यस्य पुनर्न मृत्युः । १८ । विद्युच्चलं हि धन यौवनायु १४/१०/२२ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् |
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम | यजु. १३/४ Hiranyagarbha was the only one at the beginning of the Universe who was the guardian of everything. He/it used to hold the earth and space, let us worship that Deity by offering Havi. १९/१०/२२ यस्मिंसर्वः यतं सर्वः यत्सर्वः सर्वत:च यत | 
ब्रह्म तस्मिनमहाभाग कीन संभाववत: ही || 36 || वह जिसमें सब वस्तुएँ निवास करती हैं, और जिससे सब कुछ उत्पन्न होता है; जो सब में है; और जो कहीं सब में हो, वही हो जिसे तुम सब कह सको, और जिसके अतिरिक्त कोई न हो। एको भावः सर्वभावस्वभावः सर्वे भावा एकभावस्वभावाः । एको भावस्तत्त्वतो येन दृष्टः सर्वे भावास्तत्त्वतस्तेन दृष्टाः ॥ Eko bhāvaḥ, one Being (one Being, that is Śiva, Lord Śiva, Parabhairava) has become sarva bhāva svabhāva, He has become many; many, right from that insect to śānta kala.86 He has become so many. Sarve bhāvā eka bhāva svabhāvā, and all these are actually eka bhāva svabhāvā, actually this is only the drama of One, i.e., Parabhairava, bas. It is only eka bhāva (one Being). All are one. One are many; The One has become many. २१/१०/२२ "तपस्वी, क्यों हो इतने क्लांत? वेदना का यह कैसा वेग? आह! तुम कितने अधिक हताश, बताओ यह कैसा उद्वेग? जिसे तुम समझे हो अभिशाप, जगत की ज्वालाओं का मूल। ईश का वह रहस्य वरदान, कभी मत इसको जाओ भूल। विषमता की पीडा से व्यक्त, हो रहा स्पंदित विश्व महान। यही दुख-सुख विकास का सत्य, यही भूमा का मधुमय दान। (कामायनी) इंद्र - प्रकाश दाता, दैवीय मन अग्नि - प्रकाशित इच्छा, डैवीय इच्छा शक्ति सूर्य सावित्री- सर्जक और विकासक भग सावित्री- आनंद भोक्ता वायु- जीवनी ऊर्जा का नियामक बृहस्पति- आत्मा की शक्ति अश्विन- आनंद के देवता रिभु- अमरत्व के कारीगर विष्णु- सर्व व्यापक प्रधानदेव सोम- आनंद और और अमरत्व के भगवान वरुण- प्रेम की प्रकाशमान शक्ति. आत्मा को घेरे हुए चतुर्दिक सागर, उच्चतम स्वर्ग मित्र- विचारों और कार्यों की एकता का देव सूर्य- प्रकाश का संरक्षक पूषन- विकासक सावित्री- सर्जक आर्यमन- पथ यात्री, डैवीय यज्ञों के द्वारा अमरता के आराधक, प्रकाश में चमकते शिशु, सत्योपासक, अंधकार से संघर्ष करने वाले, मानवता का पथ प्रशस्त करने वाले भग- मनुष्य का दैवीय आनंद गाय- ज्ञान रूप में चेतना, प्रकाश की प्रतीक, उषा काल का प्रकाश (आंतरिक प्रकाश) अश्व- शक्ति रूप में चेतना हिरण्य- उच्चतम प्रकाश, सुनहरा प्रकाश अंगिरस ऋषि- - सत्य के पुत्र उषा- गाय की माँ दस्यु- स्वाभाविक शत्रु Kaviraj ji has given a beautiful meaning of 'Hare Krishna ' Ha - Shiva Ra - Shakti (Tripurasundari) E - Yoni K - Kama Ru - Paramashakti (Ka + Ru = Kamakala) Sa - Moon with 16 Kalas Na - Nivritti or Ananda All combined become Tripurasundari 🙏 २२/१०/२२ धन वह जो धन्य करे। इसकी इकाई का अन्य नाम मुद्रा है, जो मुदित करती है। वित्त भी इसका अपर नाम है, इससे प्रसार का बोध होता है। धन का अर्थ निरंकारी इस तरह करते हैं.. ध= कहते है धरती को, न= कहते है नव को आकाश को। न निवृत्ति या आनंद को कहा जाता है। उनके यहाँ धन निरंकार एक अभिवादन है। धनतेरस के दिन धन से धातु लायी जाती है, धातु जिसे हम धारण करते हैं, धातु पर ही शरीर अवलंबित है। धातु या धारण करने के कारण धनतेरस का दिन आयुर्वेद से जुड़ा है। आयु को भी हम धारित करते हैं, इसका परिज्ञान करना आयुर्वेद है। जन्म और मरण के बीच का कालखंड आयु है। आयु ही जन्म और मरण का बोध कराती है। धनतेरस की आप सबको शुभकामनाएँ। प्रसरद्विन्दुनादाय शुद्धामृतमयात्मने । नमोऽनन्तप्रकाशाय शंकरक्षीरसिन्धवे ॥३॥ prasaradbindunādāya śuddhāmṛtamayātmane / namo’nantaprakāśāya śaṅkarakṣīrasindhave //3// "He is the Light of all Darkness, all Ignorance of Light. All absence of Light and Presence of Light Have come out from that Light. Swami Lakshmanjoo I bow to that Śaṅkara,3 who is just like the ocean of milk, a milk ocean. I bow to that Śaṅkara who is just like a milk ocean, a vast milk ocean, and prasarat bindu nādāya, where there are flows, two-fold flows, of bindu and nāda. Bindu is prakāśa and nāda is [vimarśa].4 Bindu is I-consciousness; nāda is to observe I-consciousness.5 Consciousness is bindu; “I am consciousness, I am God consciousness,” this is nāda. For instance, this prakāśa of sūrya (sun), the prakāśa of the light of the moon, [the prakāśa of] the light of fire, it is bindu, but there is no nāda in it, there is no understanding power of that prakāśa. There is prakāśa in the sun, but [the sun] does not know that, “I am prakāśa.” He is just a [star].6 He does not understand that, “I am filled with this prakāśa.” गुरुग्रंथ साहिब में कहा गया है अव्वल अल्ला नूर उपाया, क़ुदरत के सब वंदे First, God created the Light; then, by His Creative Power, He made all mortal beings. न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावक: ।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥

उस (आत्मज्योति)-को न सूर्य प्रकाशित करता है, न चन्द्रमा और न अग्नि। जिसको प्राप्त होकर फिर नहीं लौटते, वह मेरा परम धाम है। All the lights of the world cannot be compared even to a ray of the inner light of the Self. Merge yourself in this light of lights and enjoy the supreme Deepavali. …. भगवान् कृष्ण का एक नाम है 'सत्कृति' भगवान् कृष्ण का एक नाम है 'सत्कृति'। सत्कृति का अर्थ है जो अपने भक्त के निर्याण (शरीर त्यागने के) समय में उसकी सहायता करते हैं। वराह पुराण में भगवान् हरि कहते हैं-- वातादि दोषेण मद्भक्तों मां न च स्मरेत्। अहं स्मरामि मद्भक्तं नयामि परमां गतिम्।। “यदि वातादि दोष के कारण मृत्यु के समय मेरा भक्त मेरा स्मरण नहीं कर पाता तो मैं उसका स्मरण कर उसे परम गति प्राप्त करवाता हूँ।“ 🙏🙏 २४/१०/२२ अगर दिया जल गया तो सब पारदर्शी होकर दिखने लगता है। इस दिए के प्रकाश में देखने वाला दिखता है और दिखने वाला दृश्य भी दिखता है। फिर देखना कुछ शेष नहीं रह जाता है, दृष्टा में दृष्टि एकमेक हो जाती है। इसमें दीपक की मिट्टी, बाती और तेल बदलता रहता है। दीपक की मिट्टी से, तेल से, बाती से रोशनी दिखेगी और बने हुए तेल बाती युक्त दीपक से भी प्रकाश दर्शन होगा। फिर तो उस प्रकाश दर्शन में दीपक की मिट्टी, बाती और तेल कैसे बन रहे हैं, बदल रहे हैं, यह भी दिखेगा। तो हमें अपने प्रकाश को जाग्रत करना है, जिससे हम दृष्टा होने का अपना मूल स्वरूप प्राप्त कर सकें। तमसो मा ज्योतिर्गमय। यः प्रकाशः स सर्वस्य प्रकाशत्वं प्रयच्छति | न च तद्व्यतिरेक्यस्ति विश्वं सद्वावभासते || That Prakāśa offers its luminosity to all. Apart from that Prakāśa, there is nothing in the world. Indeed, whatever is there in the world is the luminosity of the Prakāśh. All the lights of the world cannot be compared even to a ray of the inner light of the Self. Merge yourself in this light of lights and enjoy the supreme Deepavali. …. दीपावली की शुभकामनाएँ। न निर्मिता केन न दृष्टपूर्वा न श्रूयते हेममयी कुरङ्गी । तथाऽपि तृष्णा रघुनन्दनस्य विनाशकाले विपरीतबुद्धिः॥ Shatavdhani | Samhita भावार्थ : सोने की हिरणी न तो किसी ने बनायी, न किसी ने इसे देखा और न यह सुनने में ही आता है कि हिरणी सोने का भी होती है । फिर भी रघुनन्दन की तृष्णा देखिये ! वास्तव में विनाश का समय आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है । २५/१०/२२ It is as if the earth meditated, the atmosphere meditated
It is as if the sky meditated, the water meditated
It is as if the mountains meditated”   Chandogya Upanishad २६/१०/२२ कदा नवरसार्द्रार्द्र संभोगास्वादनोत्सुकं। प्रवर्तेत विहान्यान्यन् मम त्वत्स्पर्शने मनः॥ शिवस्तोत्रावली त्वदेकरक्तस्त्वत्पादपूजामात्र महाधनः। कदा साक्षात्करिष्यामि भवंतमयमुत्सुकः॥ २८/१०/२२ "When in deep sleep he does not know, yet he is knowing, because knowing is inseparable from the Knower, because it is indestructible. But there is, then, no second thing, nothing else different from him that he would know" 🕉 Brihadaranyaka Upanishad ३०/१०/२२ ''When there is complete knowledge and complete absence of knowledge – that is complete knowledge – that is fullness of knowledge. Fullness of knowledge is not fullness of knowledge. Fullness of knowledge is: when you are full and you are not full – both – that is full.'' उक्त कथन ईशोपनिषद के इस मंत्र का विस्तार लगता है... यः विद्यां च अविद्यां च तत् उभयं सह । वेद अविद्यया मृर्त्युं तीर्त्वा विद्यया अमृतम् अश्नुते ॥ जो तत् को इस रूप में जानता है कि वह एक साथ विद्या और अविद्या दोनों है, वह अविद्या से मृत्यु को पार कर विद्या से अमरता का आस्वादन करता है। ३१/१०/२२ किसी अमीर आदमी के परमात्मा के देश में प्रवेश पाने ऊँट का सुई के नाके या छेद में से निकल जाना कहीं आसान है। ईसा मसीह मैं अपने प्यारे भक्तों तीन दुर्लभ उपहार देता हूँ ग़रीबी, अमीरी और निरादर। भागवत में कृष्ण उद्धव से आने वाली विपत्ति का डर हमें खुद उस विपत्ति से कहीं अधिक दुःखी कर देता है। शेक्सपीयर अगर मुझे किसी की निंदा करनी हो तो मैं अपनी माता की ही निंदा करूँगा, ताकि मेरे अच्छे कर्मों का फल यदि किसी को मिलना है तो वह मेरी माँ को ही मिले।शेख़ सादी रत्ती भर अभ्यास मन भर ज्ञान से कहीं अच्छा है।