Wednesday, November 3, 2021

प्रकाशोदय पर्व दीपावली

ब्रह्मांड व्यापी पदार्थ और ऊर्जा का जब अखंड चेतना मे रूपांतरण होता है, तब प्रकाश का उदय होता है. यह चेतना उजाले और अंधेरे सब में भास्वर होती है. यह प्रकाश चेतना ध्वनि में है और श्वास प्रश्वास में भी. प्राणन में जो चेतना प्रवाहित हो रही है, उसी को उपलब्ध होना प्रकाशित होना है. इस उपलब्धि या अयोध्या में ही राम वापस आकर बसते हैं. चमकती हुयी रोशनी उसका स्थूल रूप है. स्थूलता में चमकती रोशनी में ही पदार्थ गतिमान दिखायी पड़ते हैं. 


सूर्य, चंद्र और तारे प्रकाश देते हैं, सदा अस्तित्वमान रहते हैं. पर दीपक अनथक प्रकाश देता है और प्रकाश देते हुए स्वयं को अर्पित कर देता है. यह जलता हुआ दीपक जीवन का प्रतीक है. जलते दिए की अस्थिरता की भाँति जीवन चलता है. 

दीपक का तेल/घी प्रेम और भक्ति का प्रतीक है, इसकी बाती इच्छा का प्रतीक है. दीपक की लौ का शीर्ष भाग ज्ञान का तो उसका ऊष्म भाग प्रेम और भक्ति  का प्रतीक है. ज्ञान भाग में ही हमारे गुरुदेव निवास करते हैं.


यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोपमा स्मृता।��योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः।।गीता 6.19।।

जैसे स्पन्दनरहित वायुके स्थानमें स्थित दीपककी लौ चेष्टारहित हो जाती है, योगका अभ्यास करते हुए यतचित्तवाले योगीके चित्तकी वैसी ही उपमा कही गयी है।।


न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः।

तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति ॥कठोपनिषद २/२/१५, मुंडक और श्वेताश्वतर में भी है..

वहां न सूर्य प्रकाशित होता है और चन्द्र आभाहीन हो जाता है तथा तारे बुझ जाते हैं; वहां ये विद्युत् भी नहीं चमकतीं, तब यह पार्थिव अग्नि भी कैसे जल पायेगी? जो कुछ भी चमकता है, वह उसकी आभा से अनुभासित होता है, यह सम्पूर्ण विश्व उसी के प्रकाश से प्रकाशित एवं भासित हो रहा है।


गीता में यह इस प्रकार आया है..

न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः।यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।।15.6।।

उसे न सूर्य प्रकाशित कर सकता है और न चन्द्रमा और न अग्नि। जिसे प्राप्त कर मनुष्य पुन: (संसार को) नहीं लौटते हैं, वह मेरा परम धाम है।। 


शुभ दीपावली🙏