Saturday, September 23, 2017

व्यक्ति नाम चयन उद्देश्य और कारण

व्यक्ति नाम चयन : उद्देश्य और कारण
राकेश नारायण द्विवेदी
व्यक्ति नाम का चयन विभिन्न जातियों और संस्कृतियों में अपने-अपने स्रोतों और पद्धतियों से किया जाता है। इन पद्धतियों और स्रोतों में कहीं थोड़ा तो कहीं बहुत अधिक अंतर मिलता है। आर्य परंपरा में नाम चयन और उसके कारणों का अध्ययन हम इन बिंदुओं के अंतर्गत कर सकते हैं-
3.1 ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
जातक के नाम चयन के आधार समय-समय पर बदलते रहे हैं। मोटे तौर पर इन्हें तीन कालों में बांटा जा सकता है-
क) वैदिक तथा महाकाव्य काल
इस युग के व्यक्ति नामों को जानने के लिए हमें न कोई मार्गनिर्देश और न अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त होते है। आर्यों के देव-देवी जैसे, इंद्र, वरुण, अग्नि, सूर्य, सोम, उषा, सावित्री, दिति, अदिति, दनु इत्यादि के कोई पूर्वोदाहरण नहीं मिलते हैं और न अनार्यो के वृत्त, शंबर, नमुचि इत्यादि व्यक्ति नामों का पूर्व साक्ष्य मिलता है। यहां तक कि महाकाव्य चरित्रों के नामों का भी कोई पूर्व इतिहास नहीं प्राप्त होता। यद्यपि महाकाव्यों के चरित्र नामों, ऋषियों तथा देवयोनिकों के अर्थतात्विक विश्लेषण से ज्ञात होता है कि उस समय नामों के चयन का आधार शारीरिक तथा आचरणगत विशेषताएं ही थीं।
बाद में सूत्र काल में बहुत से ध्वनि संबंधी, पद संबंधी तथा अर्थ संबंधी परिवर्तन जातक के नाम चयन के लिए हुए। तत्पश्चात् स्मृतिकाल में वर्ण (जाति) संबंधी परिवर्तन भी संयुक्त कर लिए गए। संक्षेप में यह धर्मशास्त्रीय समादेश नाम चयन के लिए आवश्यक माने गए-
1. ध्वन्यात्मक, जिसमें मधुर ध्वनि युक्त नाम हो
2. अर्थतात्विक नाम जिसमें अच्छा और मंगलसूचक अर्थ प्रकट हो
3. समाजशास्त्रीय जिसमें नाम धारक का सामाजिक स्तर (वर्ण) प्रकट होता हो
4. रूपात्मक नाम जिसमें लिंग भेद स्पष्ट होता हो और
5. नाम का एक स्वनिमिक तथा रूपात्मक ढांचा हो (यह विशेषता नामोच्चारण में ही दिखती है)
सूत्र और स्मृति काल में व्यक्ति नामों के चयन को मुख्य रूप से निम्नलिखित भाषावैज्ञानिक तथा सामाजिक अर्थतात्विक विचारों से विनियमित किया गया।
1. भाषा वैज्ञानिक विचार
लगभग सभी सूत्रों में व्यक्ति नामों के विभिन्न मानक निर्धारित किए गए हैं। गृह्यसूत्र में व्यक्ति नाम रखने के कुछ प्रमुख नियम इस प्रकार है।
1. लगभग सभी गृह्य सूत्रों में बताया गया है कि पुरुष जातक का नाम दो अथवा चार अक्षरों का अथवा समसंख्या के अक्षरों से बनता हो। यह नियम वैदिक पाठ से निकला होगा, जहां अधिकांश ऋषियों के नाम इसी प्रकार मिलते हैं जैसे भृगु, कुत्स, त्रित इत्यादि (दो अक्षर), त्रसदस्यु, पुरुकुत्स, मेधातिथि आदि (चार अक्षर) यद्यपि इसी युग में च्यवन, भरत, हिरण्यस्तूप जैसे नाम भी मिलते हैं जो समसंख्यक अक्षरों के नहीं है।
2. दूसरा ध्वन्यात्मक नियम भी सभी गृह्य सूत्रों में विहित है कि बच्चे का नाम घोष अक्षर से प्रारम्भ होना चाए और नाम के मध्य में अंतस्थ (अर्ध स्वर) अक्षर आता हो। कुछ सूत्रों (आश्वलायन) के अनुसार नाम का अंत विसर्ग से होता हो, जिसके पूर्व में दीर्घस्वर आए। वैखानस एवं गोभिल ने विसर्ग या दीर्घ स्वर के साथ अंत होना स्वीकार किया है। संभवतः ये नियम सुदास, दीर्घतमा, पृथुश्रवाः आदि ऋग्वेदीय नामों के आधार पर बने हैं। रूपात्मक दृष्टि से नाम के दो पद होने चाहिए, पहला पद संज्ञा और दूसरा क्रियात्मक (कृदंत) जैसे ब्रह्मदत्त, यज्ञदत्त आदि।
पारस्कर, गोभिल, शांखायन, बैजवाप, वाराह आदि गृह्य सूत्र लिखते हैं कि नाम प्राथमिक प्रत्यय (कृत) से बनना चाहिए न कि द्वितीयक प्रत्यय (तद्धित) से कृत $ अंत = कृदंत शब्द वे हैं, जो धातु में कृत प्रत्यय जुड़ने से बनते हैं, जबकि तद्धित प्रत्यय धातु को छोड़कर अन्य शब्दों जैसे संज्ञा, सर्वनाम व विशेषण में जुड़ते हैं। आपस्तंब तथा हिरण्यकेशि का कहना है कि नाम में ‘सु’ उपसर्ग होना चाहिए जैसे-सुजात, सुदर्शन, सुकेत आदि। बौधायन, पारस्कर गोभिल एवं महाभाष्य द्वारा उद्धृत याज्ञिकों के नियम के अनुसार बच्चे का नाम पिता के किसी पूर्वज का ही होना चाहिए, किंतु पिता का नाम पुत्र का नाम नहीं होना चाहिए (मानव गृह्यसूत्र 1/18)
स्त्री नामों के लिए ध्वन्यात्मक नियम गृह्यसूत्रों में निर्धारित हैं कि लड़की का नाम विषम अक्षर संख्या में होना चाहिएं। मानव गृह्य सूत्र में है कि लड़की का नाम तीन अक्षर की संख्या में होना चाहिए। पारस्कर तथा वाराह इसमें जोड़ते हैं कि नाम के अंतिम अक्षर में ‘आ’ होना चाहिए लेकिन मानव तथा गोभिल गृह्य सूत्र कहते हैं कि अंतिम अक्षर ‘दा’ हो जैसे वसुदा, सत्यदा, यशोदा, नर्मदा इत्यादि। शांखायन कहते हैं कि अंतिम दीर्घ स्वर ‘ई’ होना चाहिए जबकि बौधायन गृह्य सूत्र में कहा गया कि नाम का अंत दीर्घस्वर के साथ होना चाहिए। दीर्घस्वर आ, ई, ऊ हैं। मनु (2/33) के मत से अंत लंबे स्वर (दीर्घ) में होना चाहिए, इस संबंध में उनकी बौधायन से सहमति है कि नाम का उच्चारण आसान होना चाहिए और इसका अर्थ कठोर अथवा सुनने में कर्णकटु न हो, अपितु नाम से कोई आशीर्वाद प्रकट होता हो जैसे यशोदा। इस मत का समर्थन पुराणों में भी मिलता है।
2. नाक्षत्रिक एवं ज्योतिषीय विचार
वैदिक साहित्य में सैकड़ों नाम मिलते हैं किंतु उनमें कोई भी सीधे ढंग से नक्षत्रों से संबंधित नहीं जंचता। शतपथ ब्राह्मण (6/2/1/37) में आषाढ़ि सौश्रोमतेय (अषाढ़ एवं सुश्रोमता का पुत्र) नाम आया है जो संभवतः अषाढ़ नक्षत्र से संबंधित है। डा. पी.वी. काणे लिखते हैं कि ब्राह्मण काल में नक्षत्र या ज्योतिषीय नाम गुप्त नाम थे जो कालांतर में गुह्य न रह सके और व्यवहार में आने लगे। बौद्ध लोग भी नक्षत्र नाम रखते थे यथा- मोग्गलिपुत्त तिस्स, स्वातिगुत्त, पुसरखित (सांची अभिलेख)। महाभाष्य में शुंगवंश के संस्थापक पुष्यमित्र का भी नाम लिया गया है।
सूत्रकाल के बाद के धर्मशास्त्र ग्रंथों एंव ज्योतिष ग्रंथों जैसे- होड़ाचक्र, मुहूर्तचिंतामणि, जातकमाला आदि में नक्षत्रों से संबंधित दूसरे प्रकार के नाम आते हैं जिसके अनुसार 27 नक्षत्रों में से प्रत्येक के चार चरणों को एक-एक विशिष्ट अक्षर (यथा चू, चे, चो, चा, अश्विनी के लिए) दिया गया है। नक्षत्र के जिस चरण में जातक का जन्म हुआ, उसके अक्षर पर  नामकरण किया जाता है। कहीं-कहीं ये आज भी गुह्यनाम हैं। संध्या पूजा इत्यादि अवसरों पर इनका उच्चारण किया जाता है।
3. सामाजिक एवं अर्थतात्विक विचार
स्मृतिकाल में जातक के नाम पर सामाजिक एवं अर्थतात्विक दृष्टि से विचार किया जाने लगा। स्मृतियां सूत्रों के बाद आई। मनुस्मृति का काल 200 ई0पू0 से 100ई0पू0 का माना गया है। स्मृतियों में यह सबसे प्राचीन है। याज्ञवल्क्य स्मृति का रचनाकाल 100 ई0 से 300 ई0 के बीच का है। जबकि श्रौत सूत्र 800-400 ई.पू. में तो ग्रह्यसूत्र 600-300 ई.पू. में लिखे गए है। भगवदगीता काल 500-200 ई0पू0 का माना गया है। पुराणों का रचनाकाल 300 ई0 के बाद 900 ई0 तक स्वीकार्य हुआ है। ग्रह्यसूत्रों में वर्ण अथवा किसी सामाजिक स्तर के आधार पर व्यक्ति नामों को रखने के साक्ष्य नहीं मिलते हैं। नामों में सामाजिक स्तर के साक्ष्य हमे मात्र पारस्कर एवं बौधायन गृह्यसूत्र में प्राप्त होते हैं।
‘स्मृति’ काल में स्पष्ट रूप से हिंदू समाज के सामाजिक स्तरों का प्रकटीकरण व्यक्ति नामों के माध्यम से होने लगा। मनु ने कहा सभी वर्णों के नाम शुभसूचक, शक्तिबोधक, शांति दायक होना चाहिए। (2/31-32), ब्राह्मणों एवं अन्य वर्णों के नाम के साथ एक उपपद होना चाहिए, जिससे शर्म (प्रसन्नता) रक्षा, पुष्टि एवं प्रेष्य (सेवा) अथवा जुगुप्सा का संकेत मिले।  पारस्कर को छोड़कर किसी अन्य गृह्यसूत्र में ब्राह्मणों या अन्य लोगों के नामों के आगे शर्मा आदि को जोड़ा जाना नहीं लिखा गया है। पाणिनि (600-300 ई0पू0) की अष्टाध्यायी पर पतंजलि (150 ई0पू0 से 100 ई0 के मध्य कुछ विद्धानों के अनुसार 250 ई.पू.) की वार्तिका (महाभारत) में इंद्रवर्मन तथा इंद्रपालित जैसे राजन्य (क्षत्रिय) तथा विश (वैश्यां) के कहे गए हैं (भो राजन्यविशां वेति वाच्यम्- महाभाष्य पाणिनि 8/2/83 पर)  यम के अनुसार ब्राह्मणों की नामोपाधि शर्मा या देव, क्षत्रिय की वर्मा या त्रात, वैश्य की भूति या दत्त तथा शूद्र की दास है, किंतु इस नियम का पालन सदा नहीं पाया गया। तालगुंड अभिलेख में कदंब वंश का संस्थापक मयूर शर्मा नामक ब्राह्मण था, किंतु उसके वंशजो ने क्षत्रियों की भांति वर्मा नामोपाधि धारण की थी।
मध्यकाल के संस्कृत साहित्य में वर्ण विभेदक नामोपाधि रखे जाने के बहुत से उदाहरण मिलते हैं। नामों को अर्थतात्विक महत्व भी इस काल में दिया गया है। आश्वलायन (1/15) गृह्यसूत्र कहता है (पिता) यदि (अपने बालक की) आध्यात्मिक उन्नति चाहता है तो नाम चार अक्षरों का रखा जाना चाहिए।
जाति संयुक्त व्यक्ति नाम रखने की शुरूआत तो सूत्रकारों ने कर दी थी, पर यह चलन आम नहीं हुआ था। प्राचीन काल में ही नहीं मध्यकाल में भी भारतीयों के आदर्श नायक और नायिकाएं थे। साहित्यकारों ने नायक और नायिकाओं के  उदात्त गुणों का वर्णन किया, जिससे ऐसे नाम भी व्यक्ति नामकरण में प्रयुक्त होने लगे। नायकों की वीरता और पराक्रम को युद्ध करने वाले व्यक्तियों ने अपना लिया जैसे वीर/बहादुर सिंह, जंगबहादुर सिंह, वीर विक्रम सिंह, महेंद्र विक्रम सिंह, संग्राम सिंह, समर बहादुर, रणवीर, रणबहादुर, बलवीर, रिपुदमन, सर्वजीत, विजय, दिग्विजय, प्रताप, निर्भय, रणजीत, सुरजीत आदि नाम।
इसी तरह वैश्यों के नामों में समृद्धि और धन सूचक शब्दों का समाहार किया गया जैसे- वसुमित्र, धनमित्र, श्रीपति, लक्ष्मीचंद्र, लखपत (राय), करोड़ीमल, हजारीलाल, अमीरचंद, दौलत राम आदि।
आचार्य भरत के नाट्यशास्त्र में (19/30-36) में नामों का महत्व नाटकों में नए-नए चरित्रों को गढ़ने और विकास करने में समझा गया है।
जहां तक स्त्री नामों की बात है तो सूत्रकारों ने स्त्री नामों में अर्थ के साथ-साथ सौंदर्य विधि को भी स्थान दिया। इन नामों में उदारता, कोमलता तथा लालित्य मिलता है जैसे प्रियंवदा, अनसूया, वसंतसेना, मंजरी, मधूलिका, मदनिका, कोकिला, कर्पूरमंजरी, चंद्रलेखा, वसुमति, इरावती, पद्मावती, हंसपादिका, यशोमती, माधवी, मालती, यशोधरा, आम्रपाली, पद्मिनी, कुमुदिनी, मदनिका, मदनमंजरी, इंदुमती, सुदक्षिणा, चारुचंद्रा, बकुलवालिका, मधुकारिका आदि।
ख. मध्यकाल
इस युग में ब्रिटिश साहित्यकार विलियम शेक्सपियर की उक्ति नाम में क्या रखा है आ गई थी, पर आर्य परंपरा में यथा नाम तथा गुण की भावना व्याप्त थी। तत्कालीन व्यक्तिनामों पर इस भावना का प्रभाव कामना के स्तर पर साफ देखा जा सकता है।
भक्ति आंदोलन की लोकप्रियता से धर्म-कर्मरत व्यक्ति अपने बच्चों के नाम देवों और देवियों के नामों और उनके चरित्रों पर रखने लगे। ओरछा नरेश मधुकरशाह भगवान कृष्ण के उपासक थे। शिवाजी का नाम शिवाय माता के आशीर्वाद से जन्म होने के कारण पड़ा था। उस समय के शैव, शक्त, वैष्णव, जैन, बौद्ध इत्यादि संप्रदायों के व्यक्ति नाम उनके देव-देवियों के नामों पर रखे गए हैं।
ऐसा कोई कदाचित् ही दैव नाम होगा, जिसे व्यक्ति नामों के रूप में धार्मिक प्रकृति के मनुष्य न रखते हों। इस पहलू के पीछे मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं कि यदि व्यक्ति नामों के बहाने व्यक्ति ईश्वर का उच्चारण स्मरण कर लेता है तो उसे आसुरी शक्तियों का सामना नहीं करना पड़ेगा और देव कृपा सुलभ हो जाएगी। उसके पापों का मोक्ष नामोल्लेख मात्र से संभव हो जाएगा। हिंदू परंपरा में गजेंद्र, गणिका, अजामिल आदि की अनेक कथाएं प्रचलित है। देवकृपा पाने और आसुरी शक्तियों से मुक्ति की कामना से देवों और देवियों के अनाकर्षक या कठोर प्रकृति के नाम भी व्यक्ति नामों के रूप में प्रयुक्त हुए हैं जैसे विरूपाक्ष, रामवृक्ष, रामसागर, रामनिष्ठुर, रामसहज इत्यादि।
आशीर्वाद प्राप्ति की कामना व्यक्तियों में इतनी बलबती रही कि एक ही नाम दो अथवा तीन ईश्वर नामों पर रखने लेगे जैसे, रामकृष्ण, शिवनारायण, रामगोपाल, शिवरामकृष्ण, विष्णुशंकर, हरिशंकर, रामलखन आदि। कुछ नामों में एक ही ईश्वर का पुनः पुनः स्मरण है जैसे हरिनारायण, शिवशंकर, कृष्णमुरारी आदि।
यही नहीं भगवान दंपति को एक साथ व्यक्ति नामों के रूप मे ंरखा जाने लगा जैसे- सीताराम, राधेश्याम, राधाकृष्ण, गौरीशंकर, लक्ष्मीनारायण, उमाशंकर, भवानीशंकर, रमाशंकर इत्यादि।
महाकाव्य और पुराणों के चरित्रों और नायक/नायिकाओं के नाम पर भी व्यक्ति नाम रखने का प्रचलन लोकप्रिय हुआ। इसकें पीछे भी माता-पिता अथवा शुभचिंतकों की भावना रही कि बच्चों में ऐसे गुणों का विकास हो।
ग) आधुनिक काल-
प्राचीन और मध्ययुग की भांति आधुनिक युग में भी माता-पिता अपने बच्चों में आदर्श और सद्गुणों का विकास करने की कामना से नामकरण करते हैं। वे उनमें विनय, प्रताप, विश्वास, सत्य, अभय, विजय, विवेक, विशाल, मनोहर, यशवंत, अतुल, अनूप, अजय, सौम्य, प्रमोद, विनोद, प्रेम, हर्ष, आनंद, मोहन जैसे गुण चाहते हैं और तदनुसार वही शब्द नाम में रखते हैं।
3.2 सामाजिक सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य
उक्त ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य के अतिरिक्त व्यक्ति नामकरण के लिए सामाजिक सांस्कृतिक परिस्थितियां भी महत्वपूर्ण कारक हैं-
1. पारिवारिक पंरपराएं
कुछ घरानों में व्यक्तियों के नाम उनके स्वर्गीय माता-पिता, प्रमाता-प्रपिता के नामो पर रखने की परंपरा पाई जाती है। स्मृतियों को सुरक्षित करने के उद्देश्य से ऐसा किया जाता है। ग्वालियर के सिंधिया घराने में ऐसे नाम प्रचलित हैं। मराठों में एक अंधविश्वास है कि नामकरण समारोह के दिन बच्चे का रोना तभी बंद होता है, जब उसका नाम उसके परिवार के दिवगंत व्यक्ति के नाम पर रखा जाता है ऐसे बच्चों को मराठी में ‘नवकारी’ कहा जाता है। यदि नाम पुराने चलन का हुआ तो बच्चे को दो नाम दिए जाते हैं। एक वह जो विधिक अभिलेखों में अंकित होता है, दूसरा दिवंगत व्यक्ति के नाम पर जो केवल उच्चारण में प्रयुक्त किया जाता है।
कुलदेवता के नाम पर पहले या आखिरी पुत्र का नाम रखा जाता है।  आंध्र और हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में भी कुलदेवता अथवा पितामह-मातामह के नाम पर व्यक्ति नामकरण किया जाता है। बुंदेलखंड में भी ऐसे नामकरण उन व्यक्तियों के मिलते हैं, जिनके बारे में मान्यता है कि वे अमुक देव-देवी के प्रसाद से जन्म लिए है।
2.अंधविश्वासों की भूमिका
ग्रामीणों और अनपढ़ परिवारों में नाम चयन का एक कारण अंधविश्वास का होना भी है। देश भर में अंधविश्वास के कारण व्यक्ति नाम रखे जाते हैं। दक्षिण भारत में कोई गर्भवती स्त्री तालाब, नदी या किसी जलस्रोत से पानी लाते समय सांप के ऊपर से होकर गुजर जाए तो उसके बच्चे का नाम नाग के नाम पर रखा जाता है। तमिलनाडु में नागपंचमी के दिन या उसके ठीक अगले दिन पैदा होने बाले बच्चों के नाम में प्रथम पद नाग होता है। बुंदेलखंड में बच्चे जीवित न रह पाने से उनका नाम कड़ोरा, घसीटा, लटूरा, घूरा इत्यादि रखे जाते है।
3.स्व-तुष्टि का उद्देश्य 
माता पिता जब अपने बालको को सेना या किसी ऐसी सेवा में भेजना चाहते हैं तो उनका नाम पैदा होते ही उसी तरह रख दिया जाता है। हरियाणा और पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे नाम मिलते हैं।
4.महाकाव्यों और पुराणों के कतिपय नामों का परिहार
सामान्यतः हिंदुओं में प्राचीन साहित्य से व्यक्ति नाम रखे जाते हैं, किंतु पुराणों और महाकाव्यों के कुछ चरित्र ऐसे भी हैं जो आतंक, अत्याचार, क्रूरता तथा अन्य कुख्यात गतिविधियों से संलिप्त रहे वे नाम या चरित्र व्यक्ति नामों के चयन में प्रयुक्त नहींं हुए है।
महाकाव्य के ऐसे चरित्रों की लंबी सूची हैं जो व्यक्ति नामों का आधार नहीं बन सके हैं जैसे महाभारत में दुर्योधन, दुःशासन, धृतराष्ट्र, पांडु, शकुनि, शल्य, जमदग्नि, गांधारी, सैरंध्री, त्रिशला (दुर्योधन की बहन तथा जयद्रथ की पत्नी) जयद्रथ; रामायण के रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद, विभीषण (रावण का भाई जिसने भाई के सारे भेद शत्रु राम को बता दिए थे)।
इतिहास प्रसिद्ध ऐसे चरित्र भी है जिनके नाम पर व्यक्ति नाम नहीं मिलते हैं। जयचंद (जिसने मुस्लिम आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी की सहायता राजपूत राजा पृथ्वीराज के विरुद्ध की थी) उरई का चंदेल राजा माहिल जिसने अपने बहनोई राजा परमाल के विरुद्ध पृथ्वीराज चौहान का सहयोग किया था। सुग्रीव (बालि का भाई), अंगद (पुत्र बालि), जटायु (विंध्य पर्वत श्रृंखला का आदिवासी प्रमुख) सुबाहु, मारीच (राक्षस), कंस, जरासंध (पुत्र बृहद्रथ, मगध राजा)
महाकाव्य एवं पुराण प्रसिद्ध कुछ स्त्री पात्रों के नाम भी व्यक्ति नामों के आधार नहीं बनते जैसे कैकेयी, मंथरा, सूर्पणखा, मंदोदरी, ताड़का, पूतना।
इसी तरह कुछ ग्रह/उपग्रहों के नामों पर भी व्यक्ति नाम नहीं रखे जाते है जैसे शनि, शुक्र, राहु, केतु। शुक्र का नाम राक्षस के गुरु शुक्राचार्य के कारण नहीं रखा जाता है।
नाम चयन के विभिन्न उद्देश्यों और उनके कारणों की एक झलक फेसबुक पर आई विभिन्न पोस्टों और टिप्पणियों के माध्यम से देखी जा सकती हैं-
3.3 विविध परिप्रेक्ष्यों की फेसबुक जुबानी-
वर्तमान कालीन नामों के आधार को हम कितना ही श्रेणीवद्ध करें, उनकी विपुल विविधता के कारण कुछ-न-कुछ छूट जाता है। हर नाम मनुष्य की मेधा और कल्पना का प्रकटीकरण है। अनंत शब्दावली इनमें प्रयुक्त हुई है। ज्ञान-विज्ञान की समस्त शाखाओं का व्यक्ति-नामों में अंतर्भाव हो जाता है। हाल में सैफ अली खान एवं करीना कपूर के बच्चे का तैमूर अली नाम रखा गया, इस पर जो प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर हुई, विभिन्न व्यक्तियों की बातचीत का एक नमूना फेसबुक से यहां रखा जा रहा है, जिससे समकालीन नामों और उनके पीछे की कहानी की एक झलक मिल सके।
फेसबुक (21.12.2016) सुजाता मिश्रा- ‘नाम में क्या रखा हैं? प्रश्न का सही जबाब तो पत्रकार और बुद्धिजीवी दे सकते हैं जो अपने उच्च जातीय सरनेम छुपा कर नाम के आगे सुकुमार लगा दलित विमर्श का राग अलापते हैं... नाम में क्या रखा है’’ का सही जबाब तो वही पत्रकार और बुद्धिजीवी दे सकते हें जो किसी छात्र छात्रा की आत्महत्या, हत्या या अपहरण की घटना को सूचना बना जनता तक पहुंचाने से पहले उसकी जाति और धर्म को कुरेदते हैं....हम तो मानते ही है कि नाम में कुछ नहीं रखा सोमनाथ चटर्जी से लेकर सीताराम येचुरी तक ‘हिंदू अखबार से लेकर अलीगढ़ मुस्लिम युनिवसिर्टी तक गवाह ही गवाह है कि नाम में कुछ नहीं रखा।
चिदर्पिता गौतम- बात नाम की नहीं है, बात है सोच की। भारत मुसलमान उर्दू पढ़ते बोलते है। उर्दू के किसी भी शब्द को नाम के रूप में चुनना जस्टीफाइड है, भले ही वह नाम इतिहास में किसी बुरे व्यक्ति का रहा हो। माना जा सकता है कि चुनने वाले ने शब्द का अर्थ देखा न कि इतिहास। लेकिन साहब मुद्दा तो यह है कि तैमूर उर्दू का नहीं तुर्की का शब्द है जो सैफ के खानदान मे कोई नहीं बोलता। इसका सीधा सा मतलब है कि यह नाम व्यक्ति के नाम पर ही रखा गया है, तैमूर लंग के नाम पर रखा गया है।
फेसबुक (22.12.2016) दिलीप सी मंडल-  नाम में क्या रखा है। भारत में असली चीज सरनेम है। अगर आपका सरनेम सही है, यानी सवर्णों वाले, तो आप सरनेम का त्याग करके महान बन सकते है। कह सकते हैं कि आप कितने प्रगतिशील हैं। इसके साथ ही निजी और सामाजिक जीवन में जातिवादी भी बने रह सकते हैं।
नीचे वालों की यह सुविधा नहीं है।
रंजना सिंह (उड़ीसा) तैमूर, रावण, कंस, मंथरा, ओसामा, दाउद इब्राहीम आदि हमारे लिए घृणा के पात्र हैं। इसलिए इन जैसे नामों के शाब्दिक अर्थ या ये सभी व्यक्ति विशेष व्यक्तिगत रूप में कितने सामर्थ्यवान हो, हम अपने बच्चों के नाम ये सब नहीं रखेंगे।
अजित वडनेरकर (राग भोपाली)- मंगोल जाति के लड़ाकों ने जब चीन के राज्यों पर कब्जा करना शुरू किया तब उपाधि के तौर पर उस क्षेत्र के महान हान वंश के नाम पर कुछ नए शब्द जैसे काघान ज्ञंहींदए कागान ज्ञंहंद, खाकान ज्ञींंद कान ज्ञंद या खान सामने आए।
चीनी भाषा का एक उपसर्ग है ‘के’ जिसमें महानता, सर्वोच्चता का भाव है। ‘हान’ ींद से पहले ‘के’ जुड़ने से बना ज्ञम.ींद जिससे उक्त मंगोल रूपांतर बने। मंगोल भाषा में इन सभी नामों में शासक या सत्ता के सर्वोच्च पदाधिकारी का भाव है।
बाप मरे अंधेरे में बेटवा का नाम पावर हाउस - अवधी लोकगीत
सैयद मो0 इरफान (कार्टूनिस्ट)- कुछ-कुछ ऐसा याद आता है कि मंटो की एक कहानी के पात्र का नाम यज़ीद हे। करबला की लड़ाई में यज़ीद एक बेरहम नाम है क्योंकि प्यासों तक पानी पहुंच सकने वाले पानी को उसने रोक दिया था।
मंटो की कहानी में हम पढ़ते हैं ‘उस यज़ीद ने पानी रोका था, ये यज़ीद पानी खोलेगा’’।
इंसान अपने कर्मो से नियति का चक्र बदलता आया है।
अशोक कुमार- हमारा नाम किसी सम्राट अशोक के नाम पर नहीं रखा गया। ....वैसे बहुत हाल में तद्भव में जब कविता छपी तो एक पाठक ने बताया कि सही तरीका अशोक कुमार पांडेय होगा। कुमार बेटे के संदर्भ में है। नंदन भी ऐसे ही है, केसरी नंदन याद कीजिए। अशोक कुमार का अर्थ अशोक का बेटा। इस तरह तो अपन अवधेश कुमार या रमा कुमार हो सकते थे खैर....। इसकी उपकथा यह कि हमने भी बी ए में चेर्नी शेव्यसकी की कविताएं पढ़ते समय तय कर लिया था कि बेटी हुई तो वेरा रखेंगे नाम।
शरद चंद्र त्रिपाठी-  मेरा नाम एक नर्स ने रखा था जब हम पैदा हुए।
अनघ शर्मा- रामायण में कहीं राम को अनर्घ राघव बोला गया। वहीं से अनघ लिया। और मेरी बड़ी बहन का नाम उनके जन्म से कोई 25-26 साल पहले बड़ी बुआ ने सोच लिया था कि धर की पहली भतीजी का नाम प्रज्ञा होगा। जब वह कक्षा छः में किसी कहानी का पहला ही दृश्य पढ़ी- कौन हो तुम’ मे ‘मैं कलिंग की राजकुमारी प्रज्ञा’’
आचार्य राम पलट दास- हमारा तो हमीं ने रखा है।
प्रज्ञा रोहिणी- मेरे कई नाम रखे गए थे। आज तक तकिए का वो लिहाफ घर के किसी पुराने संदूक में रखा होगा। बड़ी मौसी ने राशि से अक्षर निकलवाया पर पिताजी ने प्रज्ञा रखा और उस समय ये नाम बिल्कुल नया था।
आशीष मिश्रा- मेरे परिवार में सभी के नाम ‘क’ से शुरू होते हैं। ऐसे पितृपक्ष को परंपरा से हुआ, पर मेरे प्रगतिशील विचारों वाले बाबा ने इस पद्धति को बदला। उन्होंने मेरी मां श्रीमती आशा के नाम पर मेरा बड़े भाई का नाम आशुतोष और मेरा नाम आशीष रखा।
के.सी.बब्बर- एक व्यंग्य लेखक कृष्ण चंदर के नाम पर किसन चंद लिखवा दिए स्कूल में हमारे पिताजी 1960 में।
दीपक सौन- मेरा नाम पंडित जी के बताए अनुसार रखा गया। उन्होंने ‘च’ और ‘द’ अक्षर बताए थे। पिताजी तुरंत बोले चौधरी चरण सिंह लेकिन फिर दीपक पर सहमति बनी तो यही हो गए।
हर प्रीतकौर- मेरा ग्रंथ साहेब में ‘ह’ निकला तो हरप्रीत नाम रखा गया।
मफूज अली- मौलवी साहब ने महफूज़, रजा, मास्टर साहब ने मफूज कर दिया। अब मार्कशीट से लकर राशन कार्ड और आधार कार्ड से लेकर बार्ड तक में अलग-अलग नाम हैं महफूज से मफूज और बोलचाल में माफुज।
देवयानी आभा- हमने हमारा नाम खुद रखा, पिताजी को रखा नाम अच्छा नहीं लगता था।
मधूलिका चौधरी- पापा जी जयंशकर प्रसाद की कहानी पुरस्कार की नायिका से प्रभावित थे।
मनोज दमाड़े- इंदौर शहर की प्रसिद्ध टाकीज है सपना संगीता। वहीं मम्मी पापा मनोज कुमार की क्रांति देख लिए और घर पर हुई क्रांति से जन्मी दो बड़ी बहनों का नाम सपना, संगीता और हमारा नाम पड़ा मनोज कुमार।
ज्योति गुप्ता- मां को उनकी एक टीचर बहुत पसंद थी। उन्होंने तभी तय कर लिया कि वे बेटी का नाम यही रखेगी।
लक्ष्मी शर्मा- मेरे स्वर्गीय पिताजी की इच्छानुसार मेरा नाम भारती से बदलकर लक्ष्मी किया गया।
गुंजन कहरवा- मेरे बचपन का नाम गीतू मेरी मम्मा ने रखा था। 10 वीं कक्षा में मैडम ने बदलने के लिए कहा। आखिर में बड़ी बहिन का रखा गया नाम रख दिया गया।
सुनीता जेपी पांडेय- मां की सहेली डॉ0 प्रेमबाला मेंंदीरत्ता ने अस्पताल में ही बदल दिया था.....वर्ना भुवनेश्वरी था।
ऋतुपर्णा मुद्राराक्षस-  मेरे पापा स्व0 प्रेमशर्मा के एक गीत ‘गंधवाही मन’ की पंक्ति है-
रूपायित हो
ढली चेतना
जिस दिन
ऋतुपर्णा छांहों में
यही पंक्ति मेरे नाम का बायस बनी।
आकाश शुक्ला- मेरे पिताजी का कहना है कि हमारे घर में किसी का नाम भगवान के नाम पर नहीं है तो हमारा नाम रामनिवास शुक्ला रख दिया। आकाश शुक्ला घर का नाम है। उनसे कई बार पूछा इस बलिदान के लिए मैं ही क्यों मिला? घर में सबसे छोटा पर नाम बाबा आदम के जमाने का। बस हंस देते है।
अंजलि काजल- मेरे पापा शादी से पहले फिरोजपुर में रहते थे। रोज़ शाम को पार्क जाते, जहां उनके दो नन्हें दोस्त बने अंजलि और विकास नाम के भाई बहन। बस उनके नाम पर हम भाई बहन का नाम रख दिया गया। कई साल बाद एक दिन मुझे घर पर एक पत्र मिला उन्हीं विकास और अंजलि का पापा को लिखा हुआ। उस दिन मुझे हमारे नाम की कहानी पता चली।
नेहा नरुका- हमारा नाम मासी ने रखा। जब उन्हें पता चला छोटी बहन को बेटी हुई तो खत लिखा। लिखा था और नेहा कैसी है। तब से मेरा नाम नेहा हो गया।
वंदना त्रिपाठी- अपना तो नहीं पता पर मनु नाम बहुत पसंद था सो बेटे का नाम यही रख दिया।
अंकुर पांडेय- अपन मंगलवार को हुए तो कुछ दिन मंगल नाम चला, फिर स्कूल के लिए उसे घर में पसंद नहीं किया गया सो ये नाम हो गया।
डॉ राकेश पाठक- तो भाई किस्सा-ए-नाम यह है कि पापा चंबल के गांव गोरमी में व्याख्याता थे। इस खाकसार का जन्म हुआ दीपावली के ठीक पंद्रहवें दिन यानि कार्तिक पूर्णिमा की आधी रात... मने एकदम फुलटू चंद्रमा के चमकते बखत, सो नाम धर दिया गया राकेश।
सुजांता- मेरे नाम में बुद्ध की कथा की निश्चित ही कोई भूमिका नहीं है। एक चचेरे भाई को यह नाम बहुत पसंद था। बिमल राय की नूतन फिल्म के कारण। अर्थ भी सुंदर था तो झट से 11 दिन की बच्ची को अच्छी लड़की होने का आशीर्वाद दिया गया जिसे मैंने गलत साबित कर दिया होगा।
रुचि भल्ला- मां ने किसी का नाम रुचि सुना था। उन्हें नया सा लगा और मेरा नाम रुचि रख दिया। वैसे मुझे अगर खुद रखना हाता तो शायद एक नाम मैं चुन नहीं पाती। मुझे बहुत से नाम अच्छे लगते हैं... जैसे केतकी, नलिनी, पद्मा, इरा, नीलोफ़र, रोज़लिन, इप्सिता, मृगया, बुलबल।
मुकेश कपिल- मेरा नाम गायक मुकेश के नमा पर रखा गया।
शकील लकी- अपनी बेटी का नाम मैंने अपनी शादी और उसके जन्म से पहले ही सोच लिया था ‘लहर’। सोच यही कि उसके नाम से किसी धर्म जाति आदि का एहसास न हो।
नीलांबुज सरोज- मेरा नाम अयोध्याकांड (रामचरित मानस) के तीसरे श्लेक से लिया गया है। नीलांबुजश्यामलकोमलांगं फिट बैठता भी है अर्थ पर, बस सीता समारोपित वामभागं में सीता जगह सीमा है।
अपने बेटे का नाम मैने तथागत कबीर सोचा था फिलहाल कबीर नाम है उसका। प्रिय कवि कबीर और अमिता दीदी की प्रेरणा भी है इसमें।
अमिता आर्या- मेरा पांच साल तक नाम गुड़िया था। राशि देखकर हेमलता आया, पर वह कभी नहीं बोला गया। छोटी बुआ की एक बंगला सहेली का नाम अमिता था तो मेरा भी रख दिया गया। बेटी कैलाश हॉस्पिटल में हुई। महेश शर्मा और उमा शर्मा डाक्टर थे। होते ही मेरे मुंह से नाम निकला वो शिवि था। वही रख दिया। कबीर का नाम उसके पिता का दिया हुआ है। हम दोनों कबीर के भक्त थे इसलिए होने से पहले ही तय कर लिया था।
-245 शब्दार्णव, नया पटेल नगर कोंच रोड, उरई उ प्र मोबाइल 9236114604

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