Friday, January 28, 2022

डायरी अप्रैल २०२१

 1/4/21

ध्यान में जैसे कोई सिर की तरफ से खींच रहा हो ऐसा लगा। दूसरा अनुभव नाक के अंतिम सिरे जहां नाक का नुकीलापन होता है, वह नासिका छिद्रों के ऊपरी भाग से सांस की हवा निकल रही थी। एक और अनुभव सायंकाल के ध्यान में हुआ जब आज्ञाचक्र से ऊपर सहस्रार की ओर शीर्ष में एक बार अनुभव हुआ जैसे फ्रिज का पानी भरा हो, थोड़ी देर बाद वहां गर्म द्रव होने का अनुभव हुआ। 
2/4/21
पद्मासन में बैठना बंद कर दिया। टांगों में अत्यधिक खिंचाव पर ध्यान जाता था। इससे एकतानता में बाधा पहुँचती। नभ मुद्रा या खेचरी लगने से टांगो का दर्द प्रतीत नहीं होता, पर ध्यान से उठने पर दर्द बढ़ जाता। अब पुस्तके नई मंगाने की आवश्यकता नहीं लग रही। पतंजलि योगसूत्र रविशंकर जी की, अष्टावक्र गीता रमन महर्षि आश्रम की और पीताम्बरा पीठ दतिया की पुस्तकें इस बीच पढ़ीं। आज हजारी प्रसाद द्विवेदी की मध्यकालीन धर्म साधना पढ़ी, जिसमे उपासना की परंपरा और विकास पर अच्छा विचार हुआ है। रवींद्रनाथ टैगोर का लंबा उद्धरण इसके एक निबंध मे दिया है, उसका संक्षेप है कि जो लोग अनन्त की साधना करते हैं, इस क्रम में जो देखा जाना है, वही चरम सत्य नहीं है। किसी भी क्षण में वह अपने आपको पूर्ण रूप से प्रकाशित नहीं कर सकता, ऐसा होने पर वह स्वयम्भू और स्वप्रकाश होकर स्थित रह जाता। अंतहीन स्थिति के द्वारा अंतहीन गति का निर्देश हमारे चित्त का चरम आश्रय और चरम आनंद है। इसलिए रूप की साधना का अतिक्रमण होता जाता है। विज्ञान और तत्वज्ञान के प्रत्यक्ष सत्यों की भीषण श्रृंखला में साधना के साक्षात के बांध टूटते रहते हैं।
3/4/21
गुरु कोई 'व्यक्ति' नहीं, कोई 'शरीर' नही। गुरु एक तत्व है, एक शक्ति है। गुरु यदि शरीर होता तो इस छोटी सी दुनिया मे एक ही गुरु पर्याप्त होता। गुरु एक भाव है, गुरु श्रद्धा है, गुरु समर्पण है। आपका गुरु आपके व्यक्तित्व का परिचय है। कब कौन कैसे आपके लिए गुरु साबित हो, यह आपकी दृष्टि एवं मनोभाव पर निर्भर करता है। गुरु प्रार्थना से मिलता है गुरु समर्पण से मिलता है, गुरु दृष्टा भाव से मिलता है। गुरु किस्मत से मिलता है और...गुरु किस्मत वालो को मिलता है। कही पढ़ते हुए।
4/4/21
कल कोविड 19 का टीका लगवाया। रात में हल्का बुखार और पेटदर्द रहा, जिससे नींद पौने दो बजे खुल गयी। तीन बजे करीब पेरासिटामोल लेनी पड़ी, जो उन्होंने दी ही थी। सुबह 3 घण्टे का ध्यान था, गुरुदेव से प्रार्थना करते हुए बैठ गए, ध्यान पूरा हो गया। उसके बाद दिन भर बिस्तर पर सोते जागते बीता। हाथ और बदन मे दर्द है, हल्का सा शरीर का तापमान बढ़ा है। चौबीस घंटे तो असर रहेगा ही। 
5/4/21
जिन्हें कोरोना टीका लगा उन्हें भी यह संक्रमण हो रहा। सीएमओ कह रहे टीका लगवाने वाले लोग मरेंगे नही। कोरोना ग्रस्त सारे लोग तो वैसे भी नही मर रहे है। 

टीका लगवाने के बाद पांच छः घण्टे बाद से दिन दो दिन तक हालत ठीक नही रहती। बुखार, पेट दर्द, बदन दर्द इत्यादि से सामना करना पड़ेगा। विरले ही होंगे जिन्हें समस्या न हुई हो, लोग बताते भी नही है। दूसरी डोज के बाद का अनुभव जैसा रहे। लोग कोवाक्सिन और कोविशिल्ड का अंतर भी बता रहे हैं।

कोरोना टीका को हेलमेट लगाने जैसा माना जाना चाहिए। 

इसके अनुभव और प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़े। हमारे चिकित्सा वैज्ञानिकों की सफलता की कसौटी भी यही है।
6/4/21
ध्यान में हम क्रिया रहित होते हैं, मानसिक भाव व्यापार रहित भी होते रहते हैं। यद्यपि कायिक क्रिया की भांति निरन्तर मानसिक क्रिया रहित नही रह पाते। बीच बीच मे भाव और घटनाएं आती रहती हैं। उन्हें हटाते जाते हैं कोई प्रश्न या समस्या हुई तो उसका समाधान इससे मिलता है, किंतु इस दौरान समस्याओं और लौकिक घटनाओं का विवेचन करना अभिप्रेत नही होता। वैसे अगर किसी समस्या के पीछे बढ़ते ही चले गए तो भी उसका गवाक्ष या दरवाजा भगवद्दर्शन या उसके साम्राज्य में ही खुलता है। गुरुजी ने कहा है प्रत्येक विचार एक ट्यूब है, एक चैनल है, जिसमे से दैवी प्रकाश गुजरता है। अपना हृदय खोलें तो दैवीय प्रवाह हमारे माध्यम से गुजरेगा। इसलिए अगर शांत और निश्चेष्ट होकर बैठे भर हैं तो भी ध्यान का असर हुए बिना नहीं रह सकता। 
जो हम सोचते हैं, वह लिख नही पाते। जो लिखते हैं वह कर नहीं पाते इसीलिए जो करते हैं वह अधूरा है, पूरा नहीं संतुष्टिदायक नहीं। यही नहीं हम जो सोचते हैं वस्तुतः वह भी हम नहीं है। ध्यान में हम सोच से भी पर जाते हैं, वह सोचने में भी नही आ पाता। पर ध्यान में यह तो आ ही जाता है कि हमारा स्वरूप मन और बुद्धि से परे है। यह अनुभव अन्य तरह से नहीं आ पाता। पढ़ने, लिखने और सोचने करने की गति वहां नहीं है।
कुछ शब्दो के मूल तक जाने की उत्कंठा हुई है। समस्या, समय, समस्त, सम्पर्क, संसार, समाज इत्यादि शब्दो मे सम उपसर्ग कहें या धातु, इसका उत्स क्या है। क्या इन शब्दों में सम ही प्रमुख भाव है! 'सम' के कारण ही उसमे जुड़े वर्णों का अर्थ समाया हुआ है। यह  लिखते-लिखते और एक शब्द समाया आ गया। लगता है सम में सब कुछ सम्मिलित है। सम्मिलित भी इसी में जुड़ गया। इसमे हर अच्छा-बुरा समझा जाने वाला भाव समाहित है। यह भी जुड़ा। अब इस प्रकरण का समाहार करना ही समीचीन है। यह समाप्त ही नहीं होता। यह संवाद में है, संहार में है,  संस्कार में है, संयोग में हैं, संयम में है, संचार में है। यह जहां नहीं सोच पा रहे होंगे, वहां भी समान भाव से विद्यमान है। 
7/4/21
सर्वत्र शश्वदनपायुपलब्धि मात्रं। भागवत 11/3/38 से । वह उपलब्धि करने वाला अथवा उपलब्धि का विषय नहीं है। केवल उप्लब्धिस्वरूप - ज्ञानस्वरूप है।
कल या परसो ध्यान में पिप्पलाद या पिप्पलायन जैसा कुछ कौंधा। खोज की तो पता लगा पिप्पलाद  वह ऋषि हुए जिन्होंने शनि को बुलाया और उससे शनि लंगड़े हो गए। लेकिन अवश्य ही जिनकी याद आयी होगी वे पिप्पलायन होंगे। पिप्पलायन नौ योगीश्वरों में पांचवें थे, जिन्होंने राजा निमि को ज्ञान प्रदान किया था। भागवत के ग्यारहवें स्कंध में इनकी कथा वर्णित है। 11वां स्कंध भागवत का सार है, या कहें भागवत यहाँ पूरे तौर पर मिलती है। इसीके उद्धव कृष्ण संवाद हुआ है। योगीश्वर पिप्पलायन की शिक्षा हमारे गुरुदेव की शिक्षा से भिन्न नहीं। ध्यान में जब आया है तो अवश्य गुरुदेव का इनसे कोई सम्बन्ध रहा होगा। 
संसार मे जो कुछ हो रहा है वह सब ईशोपासना है। सब अपनी-अपनी तरह से भगवान को याद कर रहे हैं। अपने घर सबको पहुंचना जो है। लगभग यही बात कुरान शरीफ की व्याख्या करते समय शेख सादी का उल्लेख करते हुए आरिफ मोहम्मद खान ने कल कही। खान साहब ने बताया रामायण में भी यही बात है। हमे न कुरान का और न रामायण का सन्दर्भ ज्ञात नहीं था। हमे लग रहा था यह ध्यान की उपलब्धि है। कोई बात जो किसी के हृदय में कभी प्रकट हो वह कभी न कभी वह पहले कही गयी है। हम सब पुनरावृत्ति करते हैं। यह पुनरावृत्ति स्पष्ट घोषणा है कि सब एक चक्र में घूमकर अपने कर्मफलानुसार बरत रहे हैं। पुनरावर्तिनोsर्जुन।

आत्मा जिस बिंदु पर पदार्थ से मिलती है, वह संगम स्थान अहंकार है। यह बुद्धि से सूक्ष्म है। 
8/4/21
आज एक साथी से पता चला कि लखनऊ में एक पति पत्नी कोरोना ग्रस्त हो गए। बेटा नेगेटिव है। पत्नी की हालत बिगड़ती देखकर उन्हें पति ने एक अस्पताल में भेज दिया और घर आकर बेटे से अलग आइसोलेशन में आ गए। 
लखनऊ से कल खबर आई कि विद्युत शवदाह गृह में 5-6 घंटे प्रतीक्षा के टोकन लेकर कोरोना के शवों को जलाने के लिए मजबूर हैं। वहां अस्पतालों में भर्ती कराने के लिए सिफारिशें करवानी पड़ रही हैं। 
प्रदेश में अन्य जिलों में भी कोरोना संक्रमितों के नए रिकॉर्ड बनते जा रहे हैं। 
यह विकट स्थिति बनने के ठीक पूर्व हमने देखा जब साथ के लोग कहने लगे थे अब भी मास्क लगाए हैं। अब कोरोना खत्म हो गया है। कहीं इसी तरह की लापरवाही से क्या यह तेज लहर उठी है! लोग भी क्या करें, उकता जाते हैं, पर यह कोरोना युग है, यह हमें नहीं भूलना है। कुछ सालों तक यह रहेगा। लॉकडाउन लगाने के पक्ष में अब लोग नहीं हैं। कर्मयुद्ध में प्राण चले जाएं तो इसे नियति का परिणाम समझ लेंगे।  बच्चों की सुरक्षा के लिए स्कूल कॉलेज बंद रखने पडे तो इससे परहेज नहीं करना चाहिए। फेसबुक पर अपने सम्बन्धियों और परिचितों के निधन की सूचना बढ़ गयी है। 
rt-pcr टेस्टिंग कितनी हो रही, इसका हिसाब पता नहीं। जितनी अधिक टेस्टिंग होगी, लोग उतना अधिक इलाज और बचाव के लिए प्रवृत्त होंगे। 
वैक्सीन लगवा लें, तब भी मास्क लगाने और दो गज दूरी रखने से समझौता न हो। मास्क लगाना और दूरी रखना सबसे कारगर और अपरिहार्य उपाय है। प्राकृतिक रहन सहन पर ज़ोर दें। अधिक खाना और न खाना दोनों ठीक नहीं। अनियमित खान-पान, शयन-जागरण उचित नहीं। चित्तवृत्ति के निरोध लिए कोई उपयुक्त साधन अपनाएं।
9/4/21
झांसी से वापस आकर सायंकालीन ध्यान में देखा कि आज्ञा चक्र में जिस तरह का स्पंदन होता है। उसी तरह नाक के शीर्ष में दोनो नथुनों में श्वास चल रही और नाक का उतना हिस्सा वाइब्रेट हो रहा है। ध्यान अच्छा लगा। गरुड़ किसने देखा है श्रीकांत वर्मा की इस कविता पर शोधकर्ता से विश्वविद्यालय में बात हुई। उन्होंने इसका कवितागत निहितार्थ व्यंग्य से बताया। गरुड़ दो पंख लेकर जन्म लेता है। एक जीवन का और दूसरा मुक्ति का। उसके पास उड़ने यानी मुक्ति का साधन उपलब्ध होता है, इसलिए वह हमारी पूजा उपासना में महत्वपूर्ण है। वह विष्णु का वाहन है। विष्णु की व्यापकता जब हम जीवन और मुक्ति के दोनों पक्षों को साध लेंगे तो प्राप्त हो जाएगी। जीवन और मरण की तिब्बती पुस्तक में और श्री श्री रविशंकर की पुस्तक अष्टावक्र गीता में इसके बारे में उल्लेख है। 
रोज रोज डायरी में क्या लिखा जा सकता है। जैसे जीवन पुनराख्यान है, वैसे ही उसकी अभिव्यक्ति में पुनरावृत्ति होगी ही। सब कुछ ईश्वर की उपासना है, उसके तरीके तो अलग अलग हैं।  कहने के ढंग भी विविध होंगे ही। एक व्यक्ति भी इस विविध्धर्मा सृष्टि को कहने में एकरूपता से बचना चाहता है। वह अपनी बात को रिपीट नहीं करना चाहता। फिर यह अभिव्यक्ति शब्द क्षमता पर और अनुभूत संवेदनाओं पर निर्भर है। हर व्यक्ति इस संसार को देख रहा है, पर उसके अनुभव में एक जैसा योग नहीं हो रहा। बृहदारण्यक उपनिषद की कहानी में आता है मनुष्य देवता और असुरों को एक अक्षर द ही जब भगवान ने दिया तो उसका आशय मनुष्य ने दान समझा, देवताओं ने दान तो असुरों ने दया। 
10/4/21
लिखने जब बैठते हैं तो कभी विचार सरणि भ निकलती है, पर कभी उसके लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है। विचारों का निकलना बंद हो जाये यह तो परम् स्थिति है, पर वह प्रवाहित हो और उसका गंतव्य एक रहे, यह सम्भव और करणीय स्थिति है। यद्यद कर्म करोमि अखिलं शम्भो तवाराधनं।
11/4/21
एक दिनी रिट्रीट भक्ति की शक्ति का विकास कैसे करे सुबह 8 से सायं 5 बजे तक चली। लगभग सभी प्रमुख आध्यात्मिक केंद्रों की पुस्तकों को देखा, जो उनमे एक साथ दिया है, गुरु जी ने वह अपने पैकेज में रखकर मानवता का भारी उपकार किया है। उसमे गीत है, भजन हैं, अफ्फर्मेटिव प्रार्थनाएं हैं, दूसरो की स्वास्थ्य कामना के लिए उपाय हैं। जिन तरीक़ो से यह सम्भव होना है, सबसे अधिक उन्ही पर फोकस किया जाता है। ध्यान और उसकी विधियों का विस्तार से वर्णन वैदिक और तांत्रिक पद्धति के ग्रंथों में मिलता है, उनमे क्या हमें ग्राह्य है, वह गुरु जी ने हमे दिया है। 
12/4/21
चेतना और जड़ का पृथक्करण एक बार अनुभूत हो जाय तो स्वरूप में स्थिति हो जाये। फिर तो प्रकृति का ज्ञान चाहे जितना बटोरते रहें, उससे व्यवहार जगत में रहनी का अंतर पड़ेगा। आज स्वामी रामसुखदास जी की प्रश्नोत्तरमणिमाला का अवगाहन करता रहा। आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का अच्छा समाधान किया गया है। साधक के लिए पठनीय। 
एहि तन कर फल विषय न भाई
13/4/21
आज जुहू इस्कॉन से पुस्तके प्राप्त हुईं। 
1- वैदिक शास्त्रों से चुने हुए श्लोक 2-भागवत का प्रकाश 3- मृत्यु की पराजय एक मरणासन्न व्यक्ति के अनुभव की कहानी 4-श्री ब्रह्म संहिता चैतन्य महाप्रभु द्वारा संकलित अचिन्त्य भेदाभेद तत्व के दार्शनिक सिद्धांत सम्बन्धी 5वां अध्याय 5-योग की पूर्णता 6-प्रकृति के नियम एक अमोघ न्याय 7- पूर्ण प्रश्न पूर्ण उत्तर 8- राजविद्या
14/4/21
व्याप्तं तयैतत्सकलं ब्रह्मांडं मनुजेश्वर।
महाकाल्या महाकाले महामारीस्वरूपया।।
सैव काले महामारी सैव सृष्टिर्भवत्यजा।
स्थितिं करोति भूतानां सैव काले सनातनी।। दुर्गा सप्तशती 12-38/39
 महामारी का स्वरूप धारण करने वाली वे महाकाली ही इस समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त हैं। वे ही समय-समय पर महामारी होती और वे ही स्वयं अजन्मा होती हुई भी सृष्टि के रूप में प्रकट होती है।  वे सनातनी देवी ही समयानुसार सम्पूर्ण भूतों की रक्षा करती है।

यो मां जयति संग्रामे यो में दर्प व्यपोहति।
यो मे प्रतिबलो लोके स में भर्ता भविष्यति।। 5-120
अर्थात जो मुझे संग्राम में जीत लेगा, जो मेरे अभिमान को चूर्ण कर देगा तथा संसार में जो मेरे समान बलवान होगा, वही मेरा भर्ता (प्रिय) होगा।

अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयं।
शेषा स्थावरमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम्।। महाभारत वनपर्व 313-116
इस संसार मे प्रतिदिन असंख्य जीव यमराज के लोक में जाते है, फिर भी जो बचे रहते हैं, वे यहां पर स्थायी पद की आकांक्षा करते हैं। भला इससे बढ़कर आश्चर्य की बात और क्या हो सकती है!
15/4/21
यह कोरोना किन्हें हो रहा, किन्हें नहीं,  ठीक ठीक नही पता। जो मास्क लगाते हैं, डिस्टेंसिंग रखते हैं, सैनेटाइज करते हैं, वैक्सीन लगवाए हैं,  योगी हैं, रोगी हैं अथवा उपभोगी हैं, अमीर हैं, गरीब हैं, देहाती हैं, शहरी हैं, पढ़े-लिखे हैं, अपढ़-कुपढ हैं, बूढ़े हैं, बच्चे हैं, जवान हैं, स्त्री हैं पुरुष हैं, जो हैं, सब मनुष्य इसकी गिरफ्त में हैं।  पर मास्क लगाने और डिस्टेंसिंग रखने का कोई नुकसान नहीं, इसलिए इन उपायों को अवश्य बरतना है। दिनचर्या भी कोविड के कारण न सही, पर एक सामान्य शहरी होने के नाते स्वस्थ रखनी आवश्यक है। युवा और प्रौढ़ व्यक्ति जब इसके कारण काल कवलित होते हुए देखते हैं तो कष्ट होता है, जब उन्हें अस्पताल और उसकी सुविधाओं के संकट के कारण ऐसा देखते हैं तो और कष्ट होता है। फिर जब सुनते हैं कि मृतकों को समय से श्मशान भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा तो प्रकृति का अट्टहास हो रहा लगता है। मुखाग्नि कौन दे रहा, कहाँ दे रहा और अग्नि कौन सी है,  इन प्रश्नों का तो स्थान ही नहीं रहा।

कुछ लोग इतने पर भी बेखबर होकर विचरण कर रहे हैं। खौफजदा नहीं होना, पर ध्यान रहे बंदी बनकर सजा काटने के दौरान अगर भागे, आनाकानी की या ठीक से न रहे तो सजा बढ़ जाती है।
16/4/21
सायंकाल ध्यान में बैठने के बाद शुरू में ही एक प्रकाश नाभि प्रदेश में दिखा। पहले सोचा गुरुजी के लॉकेट का प्रकाश होगा, पर बिजली कहीं थी नहीं, और फिर देखा तो प्रकाश नहीं था। 
सौंदर्य गुणकारी, उपयोगी और मनोहारी होता है। उसे देखने पर सौम्य और प्रसन्नता के भाव उदित होते हैं। उसे अधिग्रहीत करने की भावना सही नहीं, अन्यथा वह विकृत या तिरोहित हो जाएगा। सृष्टि ईशावास्यमिदं सर्वं है, इसमे जो भी अपने परमात्मा की बिना अनुमति और आवश्यकता से अधिक लिया वह चोरी हो गया। यह आध्यात्मिक साम्यवाद है। यह स्वतः आता है, जब व्यक्ति में परम चेतना का उदय होता है। इसके लिए रक्तरंजित क्रांति की आवश्यकता नहीं है। 
17/4/21
आज योगदा सत्संग में बताया गया कि जो साधक आजीवन क्रिया योग करेंगे, उन्हें शरीर त्याग के समय गुरुओं में से कोई लेने आएंगे। यह जानकर हर्षपूर्ण रोमांच से शरीर आप्लावित हो गया। गुरुदेव सदा हमे साधना में संलग्न रखें, चाहें जो परिस्थितियां बने। साधनामय जीवन हो जाये, वही अच्छा। हमें यह भी दूर-दूर तक गुमान न रहे कि हम क्रिया करते हैं, वह भी योगदा से प्रदत्त।  पर हमारे आचरण में यह अवश्य झलके कि हम योगदा के क्रियाबान हैं। रात में, दिन में कोई काम करने के बाद स्फुलिंग हो जाता है कि हमारा स्वरूप तो अविनाशी है। कोई कठिनाई रहे, सदा यह भावना बनी रहे, गुरुदेव से प्रार्थना।

फेफड़ों में ऑक्सीजन स्तर बनाये रखने के लिए आज वीडियो में एक केंद्रीय मंत्री गुब्बारे फुलाने का अभ्यास करते देखे जा रहे हैं।  आत्मान्वेषण के लिए प्राणायाम और ध्यान हमारी पारंपरिक विधियां रही हैं, जिनकी महती आवश्यकता एलोपथिक चिकित्सको द्वारा भी इस कोरोना विभीषिका में व्यक्त की जा रही है। प्राकृतिक रहन- सहन की हमारी विरासत का रह-रहकर महत्व सामने आ रहा है। 
सब कुछ लगता है एक वर्तुल या चक्र में घूम रहा है। संसार चक्र इसे इसीलिए कहा गया।

सारे अविरोधितया कर्म अविद्या कर्म हैं, जिसमें rituals भी आते हैं, अगर विद्या प्राप्त करते हुए न किये जायें...

अविरोधितया कर्म नाविद्यां विनिवर्तयेत् |
विद्याविद्या निहन्त्येव तेजस्तिमिरसङ्घवत् ||

"Religious works cannot destroy ignorance, for it is not in conflict with ignorance. Knowledge alone destroys ignorance, as light destroys dense darkness."

— Ātma-bodha 3, by adi shankaracharya..
प्रसंग - कोरोना काल का कुंभ मेला
18/4/21
गीता का गुणा गुणेषु वर्तन्ते जाना, भागवतम का गुणैरपि गुणेषु भी वही है। दुर्गा सप्तशती में गुणाश्रयी गुणमयी से समझ आता है कि जगन्माता गुणमयी है और गुणों से परे और उनकी आश्रित भी। जो कुछ व्यक्त है वह गुणमयी सृष्टि है, व्यक्त सृष्टि शक्तिस्वरूपा है। अज्ञान और अविद्या के कारण वही माया भी है। यह कर्माधारित संसार है, जो जैसा किया है, वह वैसा पा रहा है, व्यक्त संसार का उपभोक्ता मनुष्य स्वयं है, यह व्यक्त सृष्टि सत, रज और तम स्वरूपा है। किंतु अव्यक्त संसार या जो कुछ हो, वह गुणों से पार है, वह ईश्वराधीन है, उस पर ईश्वर का न्याय चल रहा है। अव्यक्त में से ही व्यक्त होता है, इसलिए व्यक्त संसार पर ईश्वर अपना असर डालने में सक्षम हैं। प्रार्थनाएं प्रभावशाली होती हैं। व्यक्त और अव्यक्त पृथक नहीं, पर व्यक्त में व्यक्ति की सत्ता को प्रमुखता मिली हुई है। 
19/4/21
गले के बायीं तरफ एक नस में सूजन और दर्द पांच छह दिनों से है। ॐ प्रविधि और ज्योति मुद्रा का अभ्यास तब से बंद है। ॐ प्रविधि के समय का उपयोग होंग सौ में होता है। ध्यान अच्छा लग रहा है। दर्द भी घटा है। आगे ॐ प्रविधि नित्य अभ्यास से हटानी होगी। लगता है, कान के tragusको जोर लगाकर बंद करने से सूजन हुई होगी। या मटके का ठंडा पानी पीने से हो सकता है। गर्म पानी पिया जा रहा है। कोरोना के कारण इसकी आवश्यकता है ही।
20/4/21
ध्यान में जाने, रहने और उससे उठने की दशा समान नही होती। ध्यान के पहले की उलझने और द्वंद्व ध्यान करते करते पता नहीं कहाँ तिरोहित हो जाते हैं कि आश्चर्य लगता है कि हम कितने परेशान थे फ़लाँ समस्या से कैसे जूझें, मित्रो से चर्चा के बाद भी पूरा समाधान नहीं, पर ध्यान के उपरांत उस समस्या का कोई अता पता नहीं रह जाता। चैतन्य चरितामृत में श्लोक आता है द्वैते भद्राभद्र-ज्ञान सब मनोधर्म। एइ भाल एइ मंद - एइ सब भ्रम।। किंतु ध्यान के बाद यह नही कि समस्या पर यथास्थिति और इदमित्थं या अजातवाद में हो जाये, उसके प्रति क्या करणीय है, यह भी एक ठोस रूप में अंतर्ज्ञान से सूझ जाता।
किसी महामारी या आपदा में नुकसान जितना हो जाये, पर सब कुछ नहीं चला जाता। संसार जैसा है वैसा चलता रहेगा। किसी बड़ी समस्या से जूझने में सरकार के अलावा वहां के नागरिकों के आचरण की बड़ी भूमिका होती है। इंजेक्शन, बेड और अन्य सुविधाओं के लिये निर्धारित धन से अधिक वसूली करना निंदनीय है। जहां किसी की जिंदगी रहने, न रहने की आशंका गहरा गयी हो, वहां ऐसे भ्रष्टाचारियों की मनोदशा घातक है। 
जीवन बचाने के संघर्ष की करुण गाथाएं शोक रस पैदा कर रही हैं। रस हर परिस्थिति का अपना होता ही है। 
कोई यह न माने कि हमे कुछ नही हुआ और कुछ नही होगा। सब अंतरसम्बन्धित है, अगर न हुआ तो भी वह किसी अन्य के दुःख से कहीं न कहीं विचलित होगा ही। अयं निजः परोवेत्ति ही तो दुःख का असल कारण है। 
हम लोग अक्सर यह चर्चा करते थे कि कुदरती तरीके से जनसंख्या घट जाए, क्योंकि जनता स्वतः मानने से तो रही। अब वही होने की शुरुवात हुई है। इस विभीषिका के परिणामस्वरूप मरना साधारण परिस्थिति समझी जाने लगेगी। बस हमे उस साधारणता का विवेक नहीं खोना है। किसी की आपदा में हम अपना स्वार्थ पूरा करने की भावना न रखें। अस्पताल में बेड पाने की मारामारी में भी हम किसी का छीन ही रहे होते हैं। किसी गम्भीर रोगी को बेड मिले और कोई अन्य ऐसा वंचित रहे, यह स्थिति सरकार और पार्टियों के लिए शर्मनाक है। इसके लिए जीवनों का श्रेणीकरण कदापि उचित नहीं। 
घर के बाहर की हवा में ही विषाणु व्याप्त हो गए हैं, यह डॉक्टरों के अध्ययन में भी आ गया है। अतः कहीं अकेले भी  हों तो बिना मास्क न रहें। मास्क पूरा लगाएं, जगह-जगह थूकें नहीं। जिस सड़क पर हम चलते हैं और चाहते हैं साफ सुथरी और अच्छी हालत में रहे, उसी पर चलने वाले लोग तमाम तरह से उसे गन्दा करते हैं।

कोरोना संक्रमित होने पर कौन लोग मर रहे हैं, उनका आयु वर्ग क्या है, लिंग और सामाजिक प्रस्थिति क्या है। ऐसी जानकारी अधिकृत रूप में निकलकर आना चाहिए। इसके लिए अलग से रिसर्च करने की आवश्यकता नहीं। कोरोना रोगियों की चिकित्सा करने वाले डॉक्टर्स कुछ प्रश्नावली का डेटा बनाते चलें तो कुछ निष्कर्ष सामने आ सकते हैं। हो सकता है कोई अस्पताल या डॉक्टर यह कर रहे हों। उनकी जानकारी भी हमारे अखबार और समाचार चैनल प्रकाशित करें। केवल लाशों और श्मशानों के चित्र दिखाने और ऑक्सीजन इत्यादि की चर्चा से क्या बात बनेगी!

 इन निष्कर्षों के आधार पर जनता और अस्पतालों को कुछ सुविधा हो सकती है...

लॉकडाउन लगाना कितना कारगर है! यह उपाय ईश्वरीय न्याय के अनुरूप नहीं। गीता कहती है न हि कश्चित क्षणमपि जातु तिष्ठत्य कर्मकृत..मनुष्य बिना कर्म किये एक क्षण भी नहीं रह सकता।  सरकार लोगों को अपने कर्म करने से क्यों रोके! जीवन काल कवलित हो रहे हैं, संक्रमण बढ़ रहा है। इसलिए इस उपाय पर विवाद नहीं होगा, पर इसके पक्ष में जनसामान्य नहीं है...
21/4/21
आज रामनवमी है...

रमन्ते योगिनोsनंते सत्यानंदे चिदात्मनि।
इति राम-पदेनासौ परं ब्रह्माभिधीयते।। पद्म पुराण श्लोक 8/चैतन्य चरितामृत मध्य लीला 9-29
परम् सत्य राम कहलाता है, क्योंकि अध्यात्मवादी आध्यात्मिक अस्तित्व के असीम यथार्थ सुख में रमण करते हैं। 

आज वैवाहिक जीवन की रजत जयंती है। श्रीमती जी के चिड़चिड़े और गुस्सैल स्वभाव से गुरुदेव की कृपा से ही निकल पाते हैं। अन्यथा कई बार मन मे आया कि अब घर मेरे लिए नहीं रह गया। गुरु जी की अंतःप्रेरणा बार-बार कहती रही अथवा अन्यो के माध्यम से कहलवाती रही कि सन्यास भीतर से धारण कर लो। बाहर से इसे अपनाने की ज़रूरत नहीं। प्रिया मिश्रा कही कि इसकी संभावना तो बेटी की शादी के बाद भी नहीं, क्योंकि उसके बाद आपको पत्नी की देखभाल की जिम्मेदारी होगी। वह भी एक कर्ज है, जिसे उतारना होगा। इतना निश्चित है कि अगर गुरुदेव न मिले होते तो दाम्पत्य और परिवार की आज जैसी सामान्य स्थिति न रही होती। गुरुदेव के प्रति साष्टांग विनत रहने के अलावा मेरे पास उनकी स्तुति नहीं। गुरु महिमा इसीलिए अपरम्पार गाई गई है। 
गुरु और शिष्य का कार्मिक सम्बन्ध होता है। मेरा उनसे यह सम्बन्ध कैसे बना होगा। क्या मेरे पितामह  और शायद प्रपितामह भी बंगाल गए थे, उनके माध्यम से क्या यह बन सकता है। भगवान जाने या गुरुदेव, हमारे लिए यह आश्वस्ति गौरवपूर्ण है कि वह सम्बन्ध है, जब तक परमधाम नही पहुँचते यह बना रहेगा। 
22/4/21
कही शास्त्र में आया है

 जब शत्रु अपने घर आये और यदि विश्वास दिखा रहा हो और निर्भयता भी महसूस का रहा हो। ऐसे घर आये शत्रु का यदि कोई वध करता है तो उसका वह पाप सौ ब्राह्मणों का वध करने के समान होता है। 

गृहे शत्रुमपि प्राप्तं विश्वस्तमकुतोभयं। यो हन्यात तस्य पापं स्यात शतब्राह्मणघातजम।।
जैसे जैसे हालात खराब हो रहे हैं, कुछ प्रश्नों के जवाब मिलने ज़रूरी हो गए हैं।
1.पंचायत चुनाव रोकने के लिए जब जनदबाव बढ़ा, तब  सरकार हाइकोर्ट कितने मन से गयी और कितने दिनों बाद गयी। हाइकोर्ट के आदेश पर उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील क्यो नहीं की? जैसे लॉक डाउन लगाने के हाइकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट जाने में उत्तर प्रदेश सरकार ने तत्परता दिखाई
2. जब कोरोना समस्या विकराल होती जा रही थी, केंद्रीय चुनाव आयोग ने बंगाल के बचे चरणों को एक साथ कराने के लिए उन्हें क्लब क्यों नही किया? 
3.गत वर्ष कोरोना आया, उसके 100 वर्ष पहले आयी बर्ड फ्लू महामारी लौट लौट कर आती थी। उसकी भी दूसरी लहर अधिक नुकसानदेह साबित हुई थी। क्या इस प्रकार का सामान्य अध्ययन भी सरकार के विभागों ने नहीं किया और अस्पतालों की सुविधाएं बढ़ाने का काम नहीं किया।
4. वैक्सीन, रेमिडिसिवेर इंजेक्शन और ऑक्सीजन निर्यात क्यों किया जाता रहा, क्या उसकी आवश्यकता हमारे यहां सघन रूप में होगी, इसका सरकार को अनुमान नहीं था? नहीं था तो क्या यह बड़ी चूक नहीं?
5. देश के विभिन्न अस्पतालों में किन सुविधाओ की ज़रूरत है, कितनी आपूर्ति है, शेष कब पूरी हो सकती है, इत्यादि जन सुविधाओं पर सरकार क्या अनुश्रवण या मॉनीटरिंग कर रही है? मंत्रीगण इस पर सामने आकर क्यों नहीं बताते? उत्तर प्रदेश में भी इसकी कोई आधिकारिक स्थिति ज्ञात नहीं हो रही?
6. गैर कोविड रोगियों के लिए अब अस्पतालो में इलाज लेना कितना मुश्किल हो रहा है, इसका निदान भी कैसे सोचा जा रहा है?

21 22 अप्रैल की रात सुबह साढ़े तीन बजे जागे। उससे पहले एक स्वप्न आया कि एक काला सर्प हमारे जांघों और पिडलियो के नीचे आ गया है। उसे  मेरे शरीर की गर्मी मिल रही है। जागने पर हम ठिठक गए, जिस दशा में पैर थे, उसी दशा में बनाये रहे। दो चार मिनट बाद लगा सर्प अभी भी निश्चिंत बैठा है। हम भी लेटे रहे, थोड़ी देर बाद उठकर ध्यान पर बैठ गए। आज के स्वप्न की विशेषता रही कि जिस सर्प से जाग्रत अवस्था मे इतना भय खाते हैं, स्वप्न में उससे क्यों नहीं डर लगा!
ध्यान में नींद न आये तो भी झटका लगता है। जैसे शरीर से अलग होकर उठ जा रहे हों। आसन में आगे की तरफ, कभी ऊपर की तरफ शरीर अलग होता है। कभी कभी ध्यानस्थ मुद्राएं एक के भीतर एक दिखती हैं। कई मुद्राएं एक के भीतर से निकलती हुई अनगिनत। कभी ध्यानमुद्रा जो भगवान बद्रीनारायण की है, उसी में सब कुछ तैरने का भाव। कभी ध्यान में विकराल और डरावनी आकृतियां दिखती हैं, पर इनसे डर नही लगता। कभी चलते हुए साधु दिखते हैं। पहाड़ पर जाते हुए,  विश्राम करते हुए, ध्यानमें लीन साधुओं के दर्शन अक्सर होते हैं।
आज श्रील प्रभुपाद स्वामी जी की easy journey to other planet पढ़ी।  सारे ग्रहों में जीवन जन्म, मृत्यु, जरा और व्याधि ग्रस्त ही रहेगा। किसी ग्रह पर जीवन की अवधि बढ़ जातो है, पर उससे क्या लाभ है। हमे दूसरे ग्रहों पर जाने में समय बर्बाद करने की अपेक्षा बैकुंठ जाने की तैयारी करनी चाहिए। 

अपने प्राण को सिर में पहुचा ले गए, वहां से इच्छानुसार हमें बैकुंठ या परमधाम जाने के लिए ब्रेक थ्रू करना आ जाये बस यात्रा पूरी हो गयी। 

छान्दोग्य उपनिषद का तज्जलान सूत्र समझ मे आया। ज जन्म देने तो ल लीन होने के लिए कहा गया है। काल शब्द में चीजे लीन होती हैं इसलिए वह समयवाचक है। ज शब्द होने का  या अस्तित्वबोधक है। जीव शब्द इसीलिये सार्थक है, क्योंकि इसमें जन्म लेने का भाव बोध अनुस्यूत है। प्रकृति का अर्थ नेचर से होते हुए समझ आया। एक अर्थ में यह अव्यक्त यानी क्रिएटिव है, यह मापी नही जा सकती और दूसरे में व्यक्त यानी क्रिएटेड है, यह संसार है। भौतिक संसार प्रकृति की एक चौथाई ऊर्जा ही है। तीन चौथाई आध्यात्मिक ऊर्जा है। प्रत्याहार का सुंदर उदाहरण मिला कि अगर हम कोई सुंदर दृश्य देख रहे तो उससे हटकर भीतर सौंदर्य पर केंद्रित हो जाएं। 
23/4/21
[4/23, 12:47] PrKriyaban: Kya ho raha hai ye sab
[4/23, 13:03] Rakesh Narayan Dwivedi: एक पुरुष भीगे नयनों से देख रहा है प्रलय प्रवाह🙏
[4/23, 13:10] Rakesh Narayan Dwivedi: guru ji gate he
[4/23, 13:10] Rakesh Narayan Dwivedi: spirit and nature dancing together
[4/23, 13:10] Rakesh Narayan Dwivedi: victory to spirit and victory to nature
[4/23, 16:25] Rakesh Narayan Dwivedi: ek yogi apne pran ko top of head me le jata he, lekin use kab break through karna he, yah bhi to ana chahiye na
[4/23, 18:44] PrKriyaban: Gurudev ne ek lesson mei bataya hai ki kriya karte karte agar aap gehre dhyan mei chale jayein to aur aur kriya nahi karni hai..
[4/23, 18:45] PrKriyaban: Jaise agar 5-6 kriya mei hi gehre chale jayein to aage nahi karna hai..
[4/23, 18:45] PrKriyaban: Dhyan hi sabse important hai..
[4/23, 18:46] PrKriyaban: Swas dheere dheere shaant hi jayegi gehre dhyan mei aur pran subhumna se upar jayegi tab samadhi lagegi
[4/23, 19:57] Rakesh Narayan Dwivedi: ji.. yah sahi he.
[4/23, 19:57] Rakesh Narayan Dwivedi: samadhi batayi he
[4/23, 19:58] Rakesh Narayan Dwivedi: sharir chhodne ke liye kya karte yogi, yah bataya kya
[4/23, 20:49] PrKriyaban: Ye shayad batane ke liye nahi hai.. ye gyan apne aap aayega
24/4/21
स्वस्थ होने का तात्पर्य है, स्व में स्थित रहना। स्व की पहचान हो और फिर उसमें बने रहें। यह अर्थपूर्ण शब्द है।
ध्यान में एओ गौरैया चिड़िया निश्चिंत होकर मस्ती में उड़ती दिखाई दी। फिर कंडे की आग का धुंआ और उसका ताप शरीर मे अनहद चक्र से ऊपर सिर तक महसूस हुआ। फिर सफेद चिड़िया बिल्कुल उदासीन भाव मे उड़ती दिखी। 
आप्नोति इति आत्मा। आप्नोति प्राप्त होने को कहते हैं। आत्म तत्व को प्राप्त है जीव, इसलिए उसे आत्मा कहा गया।
25/4/21
कंडे का धुंआ श्रीमती जी अक्सर करती हैं। यह उनका अपना तरीका है बुरी शक्तियों से बचने का। ध्यान के समय बहुत तेज धुंआ हो रहा था। मस्तिष्क और हृदय में भर रहा था। बीच ध्यान में प्रार्थना करनी पड़ी हे गुरुदेव! इस कंडे से ही मोक्ष हो जाये। श्रीमती जी ने तब हटाया होगा। मुझे लग रहा है जीवन की कोई घटना या बात निष्प्रयोज्य नहीं होती। इस प्रार्थना में कहे गए शब्दो का जो निहितार्थ हो। गुरुदेव जाने।
[4/25, 17:43] grgi: I don't like him anymore
[4/25, 17:43] Rakesh Narayan Dwivedi: as you wish. God bless you
[4/25, 17:46] grgi: Yes I am the blessed one
[4/25, 17:47] Rakesh Narayan Dwivedi: yes, therefore you are searching. should more search till get your saviour
[4/25, 17:50] grgi: I know Lord Krishna is my Savior and ultimate Guru
[4/25, 17:51] Rakesh Narayan Dwivedi: then search 'who am.i'
[4/25, 17:53] grgi: I am Krishna
[4/25, 17:53] grgi: Why are you getting annoyed if I don't trust SRF people
[4/25, 17:54] Rakesh Narayan Dwivedi: i am not getting annoyed. i want to get what you desire
[4/25, 17:56] Rakesh Narayan Dwivedi: this answer is getting after learning or getting from knowledge
[4/25, 17:57] grgi: Nope, I just trust in be being. Be being is the goal and the god.
[4/25, 17:59] Rakesh Narayan Dwivedi: trust is a conditioning, you will get it from learning
[4/25, 18:01] grgi: Learning comes from the mind. The soul is already perfect. It doesn't need anything. I trust in the soul not mind.
[4/25, 18:02] Rakesh Narayan Dwivedi: who knows about soul and how
[4/25, 18:03] Rakesh Narayan Dwivedi: people trust in religion, are they realised
[4/25, 18:10] grgi: I don't trust in religion. I trust in spirituality.
26/4/21
जो लोग यह कहते हैं कि जितने बीमार हैं उनसे ज़्यादा ठीक हो गए हैं। इसलिए बीमारों और मरने वालों की बात करना सकारात्मकता नहीं है। यह ऐसी ही बात है कि इतने सारे लोग तो जीवित हैं, बीमार और मरते जा रहे लोगों की बात क्यों करते हैं। इतने सारे लोग तो खुशहाल हैं, फटेहाल लोगो की बात करके नकारात्मकता क्यों फैलाते हैं।
इस रवैये को संवेदनशीलता नहीं माना जा सकता, न यह सकारात्मकता है। इसे समस्या से मुंह मोड़ना कहा जायेगा।
जड़ पदार्थ का प्रत्येक परमाणु परिवर्तित हो रहा है। प्रतिक्षण तीन सौ से अधिक लोग तथा प्रत्येक सौ वर्षों में डेढ़ सौ करोड़ लोग पृथ्वी पर साकार प्रवास के बाद हटा लिए जा रहे हैं। योगदा सत्संग पाठ 132🙏
ध्यान से यह अनुभूत हो जाता है कि परमात्मा हमारे हाथों से कर रहा है और अन्य इंद्रियों से वह वह काम कर रहा है। यह चेतना बनी रहे गुरुदेव।
27/4/21
न केवल रीढ़ में ठंडा और गर्म का अहसास होता है, वरण ध्यान में पूरे शरीर मे गर्म और फिर ठंडा लगता है, उसके बाद सिहरन, रोमांच और प्रसन्नता से मन शरीर और आत्मा सराबोर हो जाती है।
ख याने आकाश। दुःख में हमारा भौतिक आकाश से ऊपर मानसिक आकाश सिकुड़ जाता है, सुख में यह थोड़ा फैल जाता है। इससे ऊपर चिदाकाश है, वहां यह सुख दुःख नहीं हैं। हे भगवान! इस महामारी से पीड़ित जन को हर तरह से उबारें और यह दुःख सहन करने की शक्ति दें।
दुःख और सुख

भागवतकार-
सुखं दुःखसुखात्ययः अर्थात दुःख और सुख दोनो की भावना का सदा के लिए नष्ट हो जाना ही सुख है।
जबकि दुःखं कामसुखापेक्षा यानि विषयभोगों की कामना ही दुःख है।
मानसकार-
नहि दरिद्र सम दुख जग माही। 
संत मिलन सम सुख जग नाही
28/4/21
हम मृत्यु को इतना सीरियसली क्यों लेते हैं! किसी परिवार का मुखिया नहीं रहा तो उसका उत्तराधिकारी संभाल लेगा, उत्तराधिकारी मरा तो मुखिया के लिये उसका निकटतम उत्तराधिकारी अथवा सृष्टि ही परिवार बन सकती है। हम किसी की मृत्यु पर उसके परिवार वालो को बेचारा और असहाय न समझने लगें। सब लोग एक स्तर पर अकेले हैं, किंतु अडोस-पड़ोस के लोग और नातेदार उनके ही हैं। कुछ बिखर नहीं जाता, सब वैसे ही चलता रहता है। यह ठीक है कि कामकाज पहले जैसा नहीं रह जाता, पर पहले जैसा उसके जीवित रहते भी नहीं रहता। हम किसी के जाने पर उसके योगदान को अवश्य याद रखें, पर यह भी जाने कि उसके जाने से किसी की दुनिया समाप्त नहीं होती। मृत्यु को अपशकुन न समझ लिया जाए कि उस का नाम आने पर या सोचकर ही मितली आने लगें।
हमे मृत्यु को आमंत्रित नहीं करना और जब आये तो उससे बचने के यथासंभव उपाय करना है, दूसरे के प्राण बचाने का भी सामर्थ्य भर प्रयत्न करना है। प्रयत्न करने के दौरान कोई न कोई राह मिल जाती है, जिससे त्राण मिल जाता है। फिर भी, मृत्यु अगर आती है तो उसे सामान्य रूप में लेते हुए ग्रहण करना है। इसी तरह किसी के जन्म को लेना चाहिए। उसे भी सामान्य रूप में लें। जीवन को खुशहाल बनाएं, उसे नियोजित करें, पर परमात्मा ने जो भूमिका दी है, उसे कौशलपूर्वक निभाते जाएं, जब तक हमे श्वास मिली हुई है। 
'कुछ भी मेरी मुस्कुराहटों को खत्म नहीं करेगा। घृणित मृत्यु, बीमारी या विफलता मुझे आपदा पर केवल मुस्कुराने ही देगी। मैं जानता हूँ कि वे वास्तव में मुझे छू भी नहीं सकते, क्योंकि मैं मौन के अजेय, अपरिवर्तनीय, नित्य नवीन आनंद के साथ एक हूँ।'योगदा सत्संग पाठ 143
योगी आदित्यनाथ कहते हैं up में ऑक्सीजन की कमी नहीं और 'खबरों की खबर' में मेरठ, आगरा और गाज़ियाबाद के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी की रिपोर्ट दिखाई जाती है। एक सूबे के मुखिया को झूठ नही बोलना चाहिए। इस कार्यक्रम में मौजूद भाजपा प्रवक्ता स्वयं स्वीकार किये कि हां धरातल पर समस्याएं हैं, योगी जी के पास अपनी रिपोर्ट होगी, यह बोलकर उन्होंने उनसे किनारा कर लिया। कार्यक्रम में सपा के प्रवक्ता जार-जार रोकर अपनी और प्रदेश की व्यथा बताते रहे, भाजपा प्रवक्ता भी निजी तौर पर व्यथित थे। जो वस्तुस्थिति है उसे स्वीकार कीजिये और मनोयोग पूर्वक उपलब्ध संसाधनों से महामारी का मुकाबला कीजिये। झूठी छवि किसी की बनती नहीं, बन भी जाये तो टिकती नहीं। 

केजरीवाल सरकार के अधिकारी न्यायाधीशों के लिये कोविड इलाज के लिए फाइव स्टार होटल की व्यवस्था करने का आदेश जारी करती है। इस माहौल में कोर्ट क्या कोई भी संवेदनशील व्यक्ति कैसे इस तरह की स्पेशल सुविधा लेने के लिए सोच सकता है! अब दिल्ली सरकार कह रही अधिकारी ने चिट्ठी जारी कर दी, उसे नहीं पता। यह क्या है! केवल दिखावे की आम आदमी पार्टी है।

एक 'गुप्ता जी' का अखबार है, उसने सम्पादकीय में आज लिखा कि सर्वोच्च न्यायालय को यह टिप्पणी नहीं करनी चाहिए कि कोरोना संकट राष्ट्रीय आपदा है, हम मूकदर्शक नही बने रह सकते। क्या यह अखबार केवल सरकार की छवि सुधारने का जिम्मा उठाये है!
29/4/21
सकारात्मकता अपनाने का कोई बना बनाया पैटर्न नहीं है। यह व्यक्ति की अपनी समझ और स्वभाव से विकसित लंबी प्रक्रिया का परिणाम है। सकारात्मकता अगर झूठी स्थितियां बताकर और वास्तविकता से मुह मोड़कर अपनायी जाए तो विस्फोटक भी हो सकती है। जो कुछ आस पास हो रहा है, हर व्यक्ति को जानने की उत्कंठा होती है, उससे वंचित नही किया जा सकता, वंचित करेंगे तो वह अपनी तरह से उसे समझेगा ही, उस पर उसे क्या प्रतिक्रिया देनी है, यह आना चाहिए, यही से सकारात्मकता का उदय होता है। कुछ और नहीं तो चैतन्य महाप्रभु का दिया हुआ मंत्र है 

राम राघव राम राघव राम राघव रक्ष माम। कृष्ण केशव कृष्ण केशव कृष्ण केशव पाहि माम। बंद आंखों से इसी को जपते रहें।

[4/30, 18:20] PrKriyaban: Mere jaan pehchan mei kayee log infect ho rahe hain
[4/30, 18:21] PrKriyaban: Khud ko positive rakhna mushkil hai..
[4/30, 18:21] PrKriyaban: Kuch samajh nahi aa raha..
[4/30, 18:22] PrKriyaban: Lagta hai dhyan mei anand feel karna galat hai.. sab itni takleef mei hain aur mai dhayn mei anandit rahoon
[4/30, 18:23] PrKriyaban: Ye sab kahan tak jayega.. kitne log marenge..
[4/30, 18:23] PrKriyaban: Ye gyan hame hai ki marna ek mithya hai.. lekin baki to aisa nahi sochte
[4/30, 18:24] PrKriyaban: Logon ka dukh dekh kar samajh nahi aata kya karoon
[4/30, 18:24] PrKriyaban: Mai 2 din se mahamrityunjay ka jaap kar rahi hoon prithvi vasiyon ke liye.. bas thodi koshish apni or se..
[4/30, 18:25] PrKriyaban: Pata nahi isse kuch hoga ki nahi
[4/30, 19:47] Rakesh Narayan Dwivedi: priya
[4/30, 19:47] Rakesh Narayan Dwivedi: abhi dhyan se uthe
[4/30, 19:48] Rakesh Narayan Dwivedi: apki chhavi aayi, ki pareshan ho,
[4/30, 19:49] Rakesh Narayan Dwivedi: dhyan me priya  nahi rah jati, na aur log jo infected he ya nahi he..
[4/30, 19:49] Rakesh Narayan Dwivedi: apne ko.mara hua realise karo
[4/30, 19:51] Rakesh Narayan Dwivedi: pata nahi dhyan me.kabhi chintiya machhar ya insects kabhi kate ki nahi apko, usse bahar ate samay kabhi lag jata he ki sharir ka kya, mera kuch nahi hona
[4/30, 19:51] Rakesh Narayan Dwivedi: dhyan ki adat banaye rahiye, gurudeva hi rasta dikhayege
[4/30, 19:52] Rakesh Narayan Dwivedi: andhiyo me jhadiya jhumti he, usi ke manind bano
[4/30, 19:53] Rakesh Narayan Dwivedi: sab achha hoga, sansar pariwartanshil he, jinhe dekhkar kasht ho raha, we kahi nahi jane wale. sharir me na rahe to bhi
[4/30, 19:54] Rakesh Narayan Dwivedi: we apne he, apne sath rahege, kaha se prabhu ne apna nata joda, socha tha kya?
[4/30, 19:57] Rakesh Narayan Dwivedi: dukhi na hona priya, agar ap dagmagayi to mujhe bhi mushqil hogi. ham jan rahe the jabse rohit sardana ki khabar suni tab se vichlit ho. kisi ke dukh me dukhi hona aswabhavik nahi,  yah satw gun he, isse bhi paar jana he.
jaap kariye, dhyan me hi, dhyan se aur adhik prabhavi ho jayegi wah prarthna
छत पर उक्त बातचीत हो रही थी कि पश्चिम दिशा में मेरे मुख के सामने आसमान में लंबवत लाइट कौंध गयी।  बादल नही घिरे थे, न बारिश।
एक पढ़ा समझा मार्क्सवादी निरे ईश्वरवादी से बेहतर होता है। मार्क्स को समझकर मार्क्सवादी प्रकृति को जान लेता है। ईश्वरवादी ईश्वर को अगर मानता भर है और ईश्वर को उपलब्ध नही हुआ तो पाखंड बन जाता है। मार्क्सवादी में ईश्वर को न मानने के कारण बहुधा अहंकार उत्पन्न हो जाता है। और उस वाद विशेष के प्रति एक आग्रह उसके भीतर विकसित हो जाता है।  किंतु अगर व्यक्ति ईश्वर को उपलब्ध हुआ तो उसमे यह विकार नहीं रहता और वह पढ़ा लिखा न हो तो भी प्रकृति को जान लेता है।  इसलिये ईश्वर या सत्य को उपलब्ध हुआ व्यक्ति वरेण्य होता है। कल रोहित सरदाना की  मृत्यु पर कुछ लोगों ने रवीश कुमार की लिखी श्रद्धांजलि में खोट देखा। दयानंद पांडेय ने लिखा  कि रवीश कुमार ने प्रकारांतर से रोहित सरदाना को घटिया समझा है।  दूसरी तरफ समर अनार्य ने रोहित सरदाना की पुत्रियों को अपशब्द लिखे। रोहित सरदाना को अनिल जनविजय इत्यादि ने अपशब्द कहे। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। आशुतोष दुबे ने ठीक ही कहा सोशल मीडिया ने व्यक्ति की मृत्यु की गरिमा छीन ली है। सोशल मीडिया पर यह पैशाचिक उल्लास बनकर व्यक्त होने लग गयी।
Om Shanti Angels ... Last night a very beautiful angel, a chosen instrument of God ... Sis. Kanupriya left her mortal coil and moved forward to another magical destiny of radiating happiness and health to millions of souls. 
Kanupriya is a pure soul, caring, compassionate, selfless ... always a giver. She lived for a higher purpose ... to create a beautiful world ... and we know that even though the costume will change ... she will always be God's angel, whose every life will be surrendered to His will and His task of creating The New Age. 
Let us all meditate and radiate gratitude and blessings to her ... Thank You Beautiful Soul for being who you are and will always be.  demise on kanupriya by sister shivani

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