Friday, January 28, 2022

डायरी मार्च २०२१

 1/3/21

जो लोग मेरे विरुद्ध पीछे षड्यंत्र करते हैं, उनसे कोई शिकायत नही रहती। स्पंदन उपेक्षा पूर्ण हो सकते हैं, पर विरोध नहीं, बैर नहीं। पर जो लोग सामने उकसाते हैं, अभद्रता करते हैं, छींटाकशी करते हैं, उन पर कभी कभी आक्रोश आ जाता है, गुरुदेव क्या इस गुस्से को जायज मानेंगे। एक साधक के लिए तो यह उपयुक्त नहीं, गुरुदेव की जैसी इच्छा हो। चार लोगों के सामने अपमान होता है तो क्या! मान अपमान में सदा सम रहना परमात्मा कब सिखाएंगे! 
2/3/21
 कभी भी नींद खुल जाए, पर ताजगी बनी रहती है। आज तीन बजे प्रातः जाग गए, रात 11 बजे करीब सोए थे। जागने के बाद थोड़े समय ध्यान किये, पर श्रीमती जी के साथ विमर्श होता रहा, फिर दैहिक संस्पर्श हुआ, सेक्स नही। ॐ का गुंजार सुनाई दिया, लेकिन जब इन्हें बताया तो वह बंद हो गया। जैसा उन्हें बताया है वीर्य और रज का नाश करना उचित नहीं। गुरुदेव कृपा करें कि उन्हें यह बात जम जाए और मन से भी इस तरह के स्पर्श की आवश्यकता न रहे। शारीरिक सम्बन्ध बनाना उन्हें आवश्यक लगता है। अन्यथा जीवन निःसार मानती है। भावनात्मकता के लिए सामान्यतः यह ज़रूरी माना जाता है, पर दोनो इस तरह के बाहरी उपायों से पार जाकर आंतरिक एकता स्थापित करें, यह हमारा लक्ष्य है। उन्होंने अर्धनारीश्वर शिव और राधा कृष्ण के उदाहरण दिए। प्रकृति और पुरुष का ज्ञान हो जाये लोगो को, पर वे अपनी-अपनी सुविधा के लिए कथानकों को ग्रहण करते हैं। ज्ञान, भक्ति और कर्म की मनमानी व्याख्या करते हुए भ्रमित रहते है। तंत्र शास्त्र में वर्णित पुरुष और स्त्री के सम्भोग का तरीक़ा तत्वबोध प्राप्त करने के लिए अपनाया जाता है। इससे लोग साक्षात्कार कर लेते होंगे, पर वह अपना रास्ता नहीं, महाजनों का बताया हुआ भी नहीं। महाजनों येन गतः स पन्थाः। पथिक अपने गंतव्य तक पहुँच जाएं तो फिर सब मार्ग वहां आते हुए दिखने लगेंगे, उससे पहले ऐसे मार्गों में भटकाव ही है। किसी विचार की नियति ज्ञात रहे तो उसे हटाने में सुगमता होती है।
चार बजे करीब से पांच बजे तक ध्यान हुआ। पहले लगता था आज्ञा चक्र और ब्रह्मरंध्र खुलने के बाद कहीं उसे आगे क्षति तो नही होती है, अब लगता है ब्रह्मांडीय ऊर्जा का मार्ग और जैसे चौड़ा होता जा रहा है। स्पष्ट रूप से ऊर्जा आने लगी है और यह जितना स्पष्ट होता जाए उतना अच्छा। ध्यान के बाद  मक्खी मच्छर शरीर से मरे हुए चिपके मिलते हैं। कर्म ध्वंस कुछ इसी तरह होता है। जब उनसे निर्लिप्त होकर रहते हैं और कर्म किये जाते हैं। पदार्थ और क्रिया में जैसे अनुक्रियाएँ चलती हैं। गुणा गुणेषु वर्तन्ते, इससे अधिक नहीं, फलकामना से की गई क्रिया कर्म बन जाएगी, फिर उसका नाश करना पड़ेगा।
[2/27, 12:41] PrKriyaban: Bataiye un mann ki dashaon ke bare mei.. 

Yogsutra mei  moodh, kshipt, vikshipt, ekagra, niruddh jaise avastha ka vaarnan hai..
[2/27, 12:42] PrKriyaban: Ek baat bataiye, aapko apni dincharya mei kya kabhi kabhi aisa lagta hai ki sab kuch bas apne aap hi ho raha hai.. shayad har samay aisa na pratit ho.. lekin  kabhi kabhi aisa nahi lagta ki koi kaam bas ho gaya apne aap?
[2/27, 12:44] PrKriyaban: Atmagyan hone par, pragya jab sthit hoti hai to hamara sharir bas ek tool ki tarah hoga.. sab kuch apne aap hoga.. fir wo khana khana ho ya chalna firna.. aishi sthiti mei koi karm bante hi nahi..kyuki karna bhav hi khatam ho chuka rehta hai
[2/27, 12:58] Rakesh Narayan Dwivedi: ha, yah khub hota he. kal unhone bhi yahi bataya bole jaise andar se chhoti chhoti chijo ke liye bhi nirdesh milte he ki ye kapda pahno, ye na pahno ityadi...
[2/27, 13:00] Rakesh Narayan Dwivedi: mere sath bhi ho raha he, yaha tak ki kisi par gussa ho jane ka bhi nirdesh sa hi samajh me ata he bad me
[2/27, 13:18] PrKriyaban: Ji ye avastha bohut hi acchi hai
[2/27, 13:19] PrKriyaban: Perfection ki taraf badhti hui avastha
[2/27, 13:33] Rakesh Narayan Dwivedi: gurudeva ki kripa bani rahe ham kriyabano par
[2/27, 19:49] Rakesh Narayan Dwivedi: आज तीन बार मे 6 घंटा ध्यान हुआ। माघी पूर्णिमा का उपवास भी रहा। कभी कभी लगता है बंदर, कुत्ते, गाय, सांड, सुवर, भैंस, बकरी और पक्षी जैसे हमें रास्ता दे रहे हैं। गुस्से में दौड़ रहे बड़े बड़े बंदर और सांड भी किनारा काट कर निकल रहे हैं। यह भी लगता है जैसे जो मुझसे अभद्रता करते हैं, किसी तरह नुकसान पहुँचाते हैं, उन्हें भारी पीड़ा से गुजरना पड़ता है। ऐसे में गुरुदेव से प्रार्थना करते हैं कि हमे किसी से शिकायत नहीं, परमात्मा सब पर द्रवित रहें। गुरुदेव हर परिस्थिति में मार्गदर्शन करते हैं। सुखद आश्चर्य यह भी कि यही स्थिति अन्य क्रियावानो की भी है। सत्य एक होता है, उसके उद्घाटित होने पर सब एकमेक हो जाता है। बोध प्राप्त व्यक्तियो की अनुभूतियां खूब अलग अलग  हों, पर उनकी चेतना एक ही धरातल पर पहुँच जाती है। 🙏
[2/27, 21:11] PrKriyaban: Kitne sundar anubhav hain aapke .. 

Mere pass kutte khoob aate hain.. unse dosti karna mere liye bada asaan hai
[2/27, 21:12] PrKriyaban: Aur ek ajeeb cheez maine apne jeevan mei dekha hai.. jis ne bhi mujhe dukh diye hain, unhe bohut kasht utnane pad rahe hain  .. meri maa ne mujhe har tarah se sataya hai.. ab unki paristhiti bohut kharab hai..
[2/27, 21:13] PrKriyaban: Haan, hame har kisi ke liye prarthana karna hi hai kyunki hume kisi se koi bair nahi rakhni..
[2/27, 21:18] Rakesh Narayan Dwivedi: yaha bhi samanta anubhavo ki..koi shastriy gyan par atke ho to thik wahi bat aa jati, tab yaad ata ki yah ham khoj rahe the. uddharedatmanatman  aj subah hi dekhe, bhul gaye age dekhna, abhi sw. ishwaranand ji ki talk me yah shlok aur arth sunaya. prakriti bhi anukul hone lagti, priya..yah bhi to ham log jante hen ki yaha rukna nahi, yah gantavy nahi
[2/27, 21:19] Rakesh Narayan Dwivedi: kutte ko biskuit khilate ham.log yaha, ek awara gay ki sewa ye karti he
[2/27, 21:20] Rakesh Narayan Dwivedi: mataji ko apne karmo ka bhog karna hoga, ham log unke prati sadashayi he🙏
[2/27, 21:23] Rakesh Narayan Dwivedi: jab do atmaye ek sath rahe. unme takraw ho to kiske karmo ka bhog ho raha aur kiske naye karm ban rahe, iska nirdharan kaise ho, sidhi bat he na ki jo sah raha prarabdh mankar, uske karmo ka kshay ho raha aur jo jyadati kar raha, uske karm sanchit ho rahe
[2/27, 21:28] PrKriyaban: Badhiya
[2/27, 21:29] PrKriyaban: Jab hum bhogna band kar dein, matlab jab wo sthiti aa jaye jisme hume dukh na mehsoos ho, to hamare karm banna band ho jayenge
[2/27, 21:30] PrKriyaban: Abhi yatra lambhi hai shayad.. kafi kuch seekhna hai.. guru kripa bani rahe bas
[2/27, 21:31] Rakesh Narayan Dwivedi: priya
[2/27, 21:32] Rakesh Narayan Dwivedi: sanyas kab lena ya nahi lena chahiye, kya ham.soch sakte he
[2/27, 21:46] Rakesh Narayan Dwivedi: itni suljhi aur target oriented soch he apki, bhatkav ya atkaw ki gunjaish nahi. gurudev sath he
[2/27, 23:23] PrKriyaban: Ji, ye bas gurukripa hi hai jo bhatakne nahi deti.. guru ka prem adwitiya hai.. aur hum kitne lucky hain ki hame aisa prem mil raha hai..
[2/27, 23:24] PrKriyaban: Kaise sambhav hai aapke liye? Aap grihasth ashram mei hain..
[2/28, 16:48] Rakesh Narayan Dwivedi: abhi na ho, lekin uski anukulta ban sakti he na
[2/28, 16:49] Rakesh Narayan Dwivedi: jay gurudeva🙏
[2/28, 16:50] Rakesh Narayan Dwivedi: grihasth ke bad hi to vanprasth aur sanyas ata he
[2/28, 17:01] PrKriyaban: To abhi rukiye.. sanyas lene mei time hai aapko.. lekin uske pehle hi aap sab hasil kar chuke honge
[2/28, 20:38] Rakesh Narayan Dwivedi: आज समापन सत्र में कई दृष्टांत सुनाए,  नए स्वामी जी हैं। एक है कि जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो रथ से कृष्ण ने अर्जुन को पहले उतरने के लिए कहा, जबकि प्रोटोकॉल में सारथी पहले उतरता है। अर्जुन को यह अनुचित लगा, बाद में जब कृष्ण उतरे तो रथ जलकर भस्म हो गया। कृष्ण ने बताया कि यह रथ तो द्रोणाचार्य और भीष्म के तेज से कब का जल गया था, अपनी शक्ति से कृष्ण उसे रोके हुए थे। कृष्ण ने कर्ण से भी अर्जुन की प्राणरक्षा कई बार की। गुरु क्या करते हैं,  हम शिष्यों को पता भी नही लगता🙏
[2/28, 20:55] PrKriyaban: Omkar naad ki dhwani ka experience bilkul alag hi hai.. mere andar itna major transformation aaya omkar ke practice se
[2/28, 20:56] PrKriyaban: Guru ki mahima aparampaar 🙏
[2/28, 23:23] PrKriyaban: Kabhi ye practice kiya hai..?
[2/28, 23:24] PrKriyaban: Bas let gaye aaram se aur sharir ko bilkul loose chhod diya.. aur fir poore sharir mei Om ka spandan mehsoos kiya .. bada sukhad anubhav hai ye..
[3/1, 06:13] Rakesh Narayan Dwivedi: nahi ki he, par priya yah dekha he ki guruji ki sari pravidhiyon ka ek hi prabhav hota he yani jo prabhav kriya ka hota he, wah hong sau aur yahan tak ki energisation exercise se bhi mil jaye. bina pravidhi ke bhi anubhav hote rahte he.🙏
[3/1, 09:04] PrKriyaban: Ji ye hai hi
[3/2, 10:24] Rakesh Narayan Dwivedi: apne dayri likhwana shuru kiya, wahi he ye. meri post nirbandh ho jati he, uchchrinkhal lage to balak ki bhanti dant fatkar diya kijiye. sadhak ko apne me imandar hona chahiye, naitik anaitik bani banayi dharnayen he🙏
[3/2, 11:52] PrKriyaban: Dairy likha accha hai..aap saaf mann se share karte hain, mai kisi baat ko galat nahi samajhti
[3/2, 11:53] PrKriyaban: Baki aap kafi koshish kar rahe hain ki srimati ji baat ko samjhe.. mai bhi prathana karungi ki wo baat samajh jayein
[3/2, 11:56] PrKriyaban: Baki aapke anubhav bahut sundar hain.. jab disha sahi hoti hai to brahma bela mei apne aap neend khul jati hai aur sukhad anubhav hote..
[3/2, 22:37] Rakesh Narayan Dwivedi: एक तृप्त व्यक्ति के लिये भोजन करना, बातचीत करना भी तपस्या है। शेष के लिए योग तपस्या है। यानी एक को योग तपस्या एक को भोग तपस्या🙏
[3/2, 23:44] PrKriyaban: Ji bilkul
[3/2, 23:46] PrKriyaban: Aaj kuch baat mann mei aayee.. aap apne personal baatein apne tak seemit rakhein.. Aapki srimati ji ka apna personal space hai..wo kabhi nahi chahengi unke mann ki sabse personal baatein koi aur jaane.. 

aur pati patni ki personal baatein unke beech hi rehni chahiye.
[3/3, 05:37] Rakesh Narayan Dwivedi: जी सही कह रही हैं। कितने कायदे से समझा देती हैं🙏
[3/3, 05:39] Rakesh Narayan Dwivedi: बिना परकाया प्रवेश और सूक्ष्म अनुभवों के हम नीति और तरीके नहीं जान सकते, आपने उचित विचार किया है।
3/3/21
आज कुछ और पुस्तके आईं। श्री श्री रविशंकर की अष्टावक्र गीता, योगसार उपनिषद, नारद भक्ति सूत्र और प्रत्यक्ष के परे (योग वासिष्ठ के सुचरित पद)। अष्टावक्र गीता सम्पूर्ण नहीं है, इसमे पांच प्रकरण की ही व्याख्या दी गयी है, जबकि कुल बीस प्रकरण मिलते हैं। श्रीमद राजचंद्र मिशन दिल्ली से ईबुक में यह पूरी निशुल्क डाऊनलोड हो जाती है। मुद्रित रूप में ही पढ़नी थी अस्तु, रमनाश्रमम से यह मंगाने के लिए आर्डर लगा दिया है। नारद भक्ति सूत्र की व्याख्या श्री श्री द्वारा बहुत सुंदर की गई है। पूजा यानी पूर्णता से जन्म लेने और पुनः पुनः जन्म लेने के कारण की गई उपासना, भजन यानी व्यष्टि का समष्टि में भागीदार हो जाना, पुरुष यानी पुर या शहर का निवासी, मन को इकट्ठा करने के कारण मौन, जयंती जिसमे जय का अंत हो जाये, मन बहिर्मुख चेतना, किंतु नम अंतर्मुखी चेतना को कहते हैं, नमन में हम अपनी बुद्धि मन और आत्मा को प्रणाम करते हैं। मन का न होना नमन है, मनन भी इसी का फलित है। ॐ से सोहम फिर गायत्री उससे वेद और उससे सृष्टि का विकास हुआ है, जीव का अर्थ बेहोशी, श्व यानी बीता हुआ और आगामी कल। इस प्रकार कई शब्दों की भी व्याख्या मिली।
विश्वविद्यालय में पीएचडी मार्गदर्शन का प्रमाण पत्र बनने विषयक लंबित काम पर ध्यान में स्पंदन गे। ध्यान से उठकर सम्बंधित बाबू को फोन मिलाया, तो पता लगा वह परेशान है, उसका प्रिय कुत्ता मर गया और स्वास्थ्य भी अच्छा नही। देख रहे हैं कि किसी के प्रति अगर तनिक भी आक्रोश हो जाये तो उसकी बुरी खबर मिलती है। गुरुदेव सबका भला कर्रें या मुझमें किसी तरह की नकारात्मकता को फटकने न दें।
4/3/21
कल जिन लोगो द्वारा काम नही किया गया था, वे आज काम करने की सूचना दिए। गुरुदेव और परमात्मा के प्रेम से कम कुछ गवारा नहीं। 
5/3/21
सुषुम्ना की ही आवाज होगी, जो 20/20/20 के समय और उसके अलावा भी श्वासों के प्रारंभिक अभ्यास में नाक से ललाट तक के क्षेत्र में चटचट करके ध्वनि निकलती है। ध्यान के बाद रीढ़ के निचले स्तर से सिर के ऊपरी भाग तक डोरी की आवाजाही होने लगती है। आज्ञा चक्र में एक तरफ ठंडा तो उसी से लगे हिस्से में दाई तरफ गरम लगा करता है। कोई द्रव जैसे तैर रहा हो सिर में।
6/3/21
ॐ और शक्ति पृथक नहीं। ॐ और माया भी अविद्या के कारण ही अलग अलग हैं। ज्ञान दशा में जो कुछ दिखाई देता है और नहीं दिखता है, वह ब्रह्म ही है। ब्रह्म का प्रकट रूप ही शक्ति है, ॐ है, माया है। अविद्या के कारण व्यक्ति उसे जान नहीं पाते बस। ब्रह्म का कोई रूप, गुण, नाम नहीं। वह अनिर्वाच्य है। उसकी शक्ति को देखकर लोग उसके होने का आभास करते हैं। शक्ति ब्रह्म में लय हो जाती है, तब वह भी नहीं रहती। शक्ति और ब्रह्म के लय होने पर हम उसे ब्रह्म कहें, शक्ति कहें, कुछ कहें। शक्ति प्रकट रूप है, ब्रह्म अप्रकट और प्रकट दोनों है। वह रूप और अरूप भी है। नाम, अनाम और नामी है। वह ज्ञान है, ज्ञाता है और ज्ञेय भी। वह सर्वथा ज्ञेय नहीं इसलिए अज्ञेय है। वह जैसा है या नहीं है, वैसा ही है। तथाता। शिव की श्वास शक्ति है। यानी श्वास तो लेते ही हैं वे सृष्टि का संचालन करने के लिए। यह श्वास वे लीला करने के लिए लेते हैं,  महाजनों ने यही कहा है। श्वास को विशिष्ट तरह से लेने का नाम विश्वास है। जब श्वास भक्ति पूर्ण होकर ईश्वर में लय हो जाये तो विश्वास बनता है। और यह विश्वास फलदायक होता है।
 महतः परमव्यक्तमव्यक्तात्पुरुषः परः।
पुरुषान्न परं किंचित्सा काष्ठा सा परा गतिः ॥कठोपनिषद
उस महान् आत्मा से उच्चतर 'अव्यक्त' है, 'अव्यक्त' से उच्चतर 'पुरुष' है; 'पुरुष' से उच्चतर कुछ भी नहीं ː 'वही' सत्ता की पराकाष्ठा है, वही यात्रा का परम लक्ष्य (परा गति) है।
डायरी लिखना शुरू किए एक माह से अधिक बीत गया। उसमे क्या लिखना चाहिए, ऐसा कोई बना बनाया पैटर्न नहीं समझ आया। कभी लिखने को कुछ नहीं होता। कभी लिखते ही जाने का मन करता है। कभी लगता है कोई पुस्तक पढ़ें, फिर उस पर लिखें। सबसे अच्छा लिखना वही लगता है जो अपने अनुभव से होकर गुजरता है। पुस्तकेँ पढ़ना भी एक अनुभव है, क्योंकि पुस्तक चयन अपने आप मे एक लक्ष्य है। फिर उस पुस्तक का पठन करते समय जिन अंशों पर हम ठहरते हैं, वह भी हमे अपने पाथेय का बोध कराते हैं। वह अंश जब अपनी अनुभूति से गुजरते हैं, तब वह ज्ञान बनता है। 
7/3/21
नींद में भी ध्यान तत्व स्मरण रहता है। परम तत्व की याद रहती है और अपने कुछ न होने का बोध। जी से नींद का फोटो लेने के लिए कहा था। उन्होंने 1 मिनट के आसपास का वीडियो बना दिया, उसी से स्क्रीनशॉट लेकर यह फोटो संलग्न की जा रही है। एक योगी की नींद सामान्यजन से भिन्न होती है। मेरी नींद में बाहर जाती श्वास मुह से निकल रही है। यह पता नहीं कितना सामान्य है। ऐसी नींद मैंने अपने पिताजी की अवश्य देखी। किसी अन्य को इस तरह सोते हुए नहीं देखा। हां एक बार वाराणसी में भैया श्रीयुत जुगुल किशोर जी के साथ नीचे बिस्तर पर लेटे थे। उनकी श्वास से राम राम गुंजरित हो रहा था। मेरी निद्रा भंग हुई, उनकी छाती पर मैंने हाथ रखा। उसके बाद वे करवट लेकर सो गए। अगले दिन ब्रह्मबेला में रेल से वापस जाना था। चलते हुए रेलवे के ओवरब्रिज पर मैंने इस बावत उनसे पूछा तो टाल गए थे। यह बात तबकी है जब वे वाराणसी में नियुक्त थे। एक किराए के मकान में रहते थे। उस समय गंगा आरती का भावोद्रेक करने वाला दृश्य कभी भूलता नहीं। 
नाम नमः का ही विकसित रूप है। नम झुकने को कहते हैं। नाम की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि वे सदा नामी या परम् तत्व का बोध कराने वाले संकेतक होते हैं। ईश्वर वाची नाम रखने का यही आधार रहा है। किसी शब्द से परमात्मा का स्मरण किया जा सकता है और जब उसका बोध हो जाता है तो उन शब्दों की आवश्यकता नहीं रह जाती। भाषा और नाम की तब ज़रूरत नहीं रह जाती। फिर रूप क्या है। र अग्नि तत्व का बीज है। इस तत्व के कारण परिवर्तन होता है और वस्तुएं आकार ग्रहण करती हैं। 
सुख और दुख में ख यानी आंतरिक आकाश का भाव है। हमारी चेतना जब फैलती है तो सुख और संकुचित होती है तब दुख होता है। आनंद की दशा में चेतना आकाश से कहीं आगे चिदाकाश और परमाकाश तक पहुँच जाती है और फिर चेतना फीकी नहीं पड़ती और न फिर संकुचित ही होती। 
गुण शब्द में ग यानी गति का अर्थ है। त्रिगुणात्मिका सृष्टि में तीनों गुणों की अलग अलग गति वर्णित है। 
3/3/21
आज कुछ और पुस्तके आईं। श्री श्री रविशंकर की अष्टावक्र गीता, योगसार उपनिषद, नारद भक्ति सूत्र और प्रत्यक्ष के परे (योग वासिष्ठ के सुचरित पद)। अष्टावक्र गीता सम्पूर्ण नहीं है, इसमे पांच प्रकरण की ही व्याख्या दी गयी है, जबकि कुल बीस प्रकरण मिलते हैं। श्रीमद राजचंद्र मिशन दिल्ली से ईबुक में यह पूरी निशुल्क डाऊनलोड हो जाती है। मुद्रित रूप में ही पढ़नी थी अस्तु, रमनाश्रमम से यह मंगाने के लिए आर्डर लगा दिया है। नारद भक्ति सूत्र की व्याख्या श्री श्री द्वारा बहुत सुंदर की गई है। पूजा यानी पूर्णता से जन्म लेने और पुनः पुनः जन्म लेने के कारण की गई उपासना, भजन यानी व्यष्टि का समष्टि में भागीदार हो जाना, पुरुष यानी पुर या शहर का निवासी, मन को इकट्ठा करने के कारण मौन, जयंती जिसमे जय का अंत हो जाये, मन बहिर्मुख चेतना, किंतु नम अंतर्मुखी चेतना को कहते हैं, नमन में हम अपनी बुद्धि मन और आत्मा को प्रणाम करते हैं। मन का न होना नमन है, मनन भी इसी का फलित है। ॐ से सोहम फिर गायत्री उससे वेद और उससे सृष्टि का विकास हुआ है, जीव का अर्थ बेहोशी, श्व यानी बीता हुआ और आगामी कल। इस प्रकार कई शब्दों की भी व्याख्या मिली।
विश्वविद्यालय में पीएचडी मार्गदर्शन का प्रमाण पत्र बनने विषयक लंबित काम पर ध्यान में स्पंदन गे। ध्यान से उठकर सम्बंधित बाबू को फोन मिलाया, तो पता लगा वह परेशान है, उसका प्रिय कुत्ता मर गया और स्वास्थ्य भी अच्छा नही। देख रहे हैं कि किसी के प्रति अगर तनिक भी आक्रोश हो जाये तो उसकी बुरी खबर मिलती है। गुरुदेव सबका भला कर्रें या मुझमें किसी तरह की नकारात्मकता को फटकने न दें।
4/3/21
कल जिन लोगो द्वारा काम नही किया गया था, वे आज काम करने की सूचना दिए। गुरुदेव और परमात्मा के प्रेम से कम कुछ गवारा नहीं। 
5/3/21
सुषुम्ना की ही आवाज होगी, जो 20/20/20 के समय और उसके अलावा भी श्वासों के प्रारंभिक अभ्यास में नाक से ललाट तक के क्षेत्र में चटचट करके ध्वनि निकलती है। ध्यान के बाद रीढ़ के निचले स्तर से सिर के ऊपरी भाग तक डोरी की आवाजाही होने लगती है। आज्ञा चक्र में एक तरफ ठंडा तो उसी से लगे हिस्से में दाई तरफ गरम लगा करता है। कोई द्रव जैसे तैर रहा हो सिर में।
6/3/21
ॐ और शक्ति पृथक नहीं। ॐ और माया भी अविद्या के कारण ही अलग अलग हैं। ज्ञान दशा में जो कुछ दिखाई देता है और नहीं दिखता है, वह ब्रह्म ही है। ब्रह्म का प्रकट रूप ही शक्ति है, ॐ है, माया है। अविद्या के कारण व्यक्ति उसे जान नहीं पाते बस। ब्रह्म का कोई रूप, गुण, नाम नहीं। वह अनिर्वाच्य है। उसकी शक्ति को देखकर लोग उसके होने का आभास करते हैं। शक्ति ब्रह्म में लय हो जाती है, तब वह भी नहीं रहती। शक्ति और ब्रह्म के लय होने पर हम उसे ब्रह्म कहें, शक्ति कहें, कुछ कहें। शक्ति प्रकट रूप है, ब्रह्म अप्रकट और प्रकट दोनों है। वह रूप और अरूप भी है। नाम, अनाम और नामी है। वह ज्ञान है, ज्ञाता है और ज्ञेय भी। वह सर्वथा ज्ञेय नहीं इसलिए अज्ञेय है। वह जैसा है या नहीं है, वैसा ही है। तथाता।
 महतः परमव्यक्तमव्यक्तात्पुरुषः परः।
पुरुषान्न परं किंचित्सा काष्ठा सा परा गतिः ॥कठोपनिषद
उस महान् आत्मा से उच्चतर 'अव्यक्त' है, 'अव्यक्त' से उच्चतर 'पुरुष' है; 'पुरुष' से उच्चतर कुछ भी नहीं ː 'वही' सत्ता की पराकाष्ठा है, वही यात्रा का परम लक्ष्य (परा गति) है।
डायरी लिखना शुरू किए एक माह से अधिक बीत गया। उसमे क्या लिखना चाहिए, ऐसा कोई बना बनाया पैटर्न नहीं समझ आया। कभी लिखने को कुछ नहीं होता। कभी लिखते ही जाने का मन करता है। कभी लगता है कोई पुस्तक पढ़ें, फिर उस पर लिखें। सबसे अच्छा लिखना वही लगता है जो अपने अनुभव से होकर गुजरता है। पुस्तकेँ पढ़ना भी एक अनुभव है, क्योंकि पुस्तक चयन अपने आप मे एक लक्ष्य है। फिर उस पुस्तक का पठन करते समय जिन अंशों पर हम ठहरते हैं, वह भी हमे अपने पाथेय का बोध कराते हैं। वह अंश जब अपनी अनुभूति से गुजरते हैं, तब वह ज्ञान बनता है। 
8/3/21

जब हम नींद में होते हैं तब हमें पता नही रहता कि हम स्त्री हैं या पुरुष। इससे यह स्पष्ट है कि ईश्वर के यहां स्त्री और पुरुष का भेद नहीं। यह भेद मनुष्यों ने और खासकर पुरुषों की दुनिया ने खड़ा किया है।
स्त्री और पुरुष में प्रकृति के सबसे अधिक निकट स्त्री है। वह ग्रहणशील है, प्रकृति का मूल भी ग्रहणशीलता में ही है। पुरुष तर्कवादी होता है, स्त्री भावुक। दोनो अधूरे हैं, जब तक एक दूसरे के प्रकृतिस्थ गुणों को धारण न कर लें। वे नेगेटिव और पोजीटिव करंट है। इसलिए इनमे परस्पर आकर्षण है। इस आकर्षण को रूपांतरित करने की आवश्यकता है। पुरुष काम वासना के कीचड़ में न सने इसलिए उसे लड़की को कन्या और स्त्री को मातृशक्ति के रूप में देखे जाने की आवश्यकता हमारी संस्कृति ने बताई है। यह समस्या पुरुष की ही है, स्त्री की नहीं। 
स्त्री जाति को कमतर समझने का इतिहास रहा है। स्त्री के योगदान से पुरुष शक्तिसम्पन्न बना है। स्त्री को कोई हेय न समझे। स्त्रियों के प्रति पुरुष को आदर और स्वीकार्य भाव रखना होगा, किंतु स्त्रियों को इसकी उम्मीद नहीं करनी चाहिए। सबको अपना रास्ता स्वयं तय करना पड़ता है। हमारे एक समवयस्क सहकर्मी ने कहा था स्त्रियों से दूर रहा करो। वे पुरुष को दोस्त इसलिए बनाती हैं जिससे वे अपना काम करा सकें, पर हमने देखा है स्त्रियां किसी की मदद मुक्त मन से कर देती हैं, जबकि पुरुष लाभ हानि का आकलन करके किसी का सहयोग करता है। भक्ति साहित्य में नारी निंदा को अभिधार्थ में लेने की आवश्यकता नहीं है, वे प्रतीकार्थ में कही गयी उक्तियाँ हैं और उनका उपासना और साधना के क्षेत्र में अपना महत्व है। नारी को नरक का द्वार कहने पर स्वामी श्री युक्तेश्वर कहते थे नवयुवावस्था में कोई लड़की उसकी मनःशांति में बाधक सिद्ध हुई होगी, अन्यथा वह नारी को नहीं बल्कि अपने आत्मसंयम की अपूर्णता को दोष देता।
अस्तु! स्त्री, पुरुष सब मिलकर इस दुनिया को सुंदर बना सकते हैं। और वे ऐसा कर भी रहे हैं। 
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की सभी को शुभकामनाएं
9/3/21
आज रमणाश्रमम से पुस्तकें मिलीं। अष्टावक्र गीता, योग वासिष्ठ सार, उपदेश सार और उपदेश मंजरी। श्री श्री की अष्टावक्र गीता पूरी नही थी, इसलिए यह मंगानी पड़ी। हिंदी नहीं है, कन्नड़ और अंग्रेजी अनुवाद है। संस्कृत हाथ से लिखी हुई है, इसलिए कही कही अपठनीय या दुर्बोध हो गयी है।
10/3/21
मित निद्रा, मित आहार और मित भाषण होता रहे। खेचरी करने में पहले जैसा खिंचाव नही रह गया, जिह्वा की पहुँच गह्वर तक है। उपदेश मंजरी में सुंदर उदाहरण दिया गया है। एक शिशु सोते हुए भी अपनी माँ से स्तनपान करते हुए पोषण प्राप्त करता रहता है। यही सहज निर्विकल्प अवस्था है। 
[3/9, 09:11] devendra singh parmar: गीता में कहा गया है ---" न बुद्धि भेदं  जनमेदज्ञानां कर्मसंज्ञिनाम्  " जो लोग अज्ञ और कम ज्ञानी हैं ,ज्ञानी को चाहिए कि ,उन्हें मिलाकर चले तथा बुद्धि भेद पैदा न करे ।क्योंकि सभ समान मन वाले बनाये गये हैं ।सभी जीव एक न एक दिन पूर्ण विकास को प्राप्त होगे इसलिए परस्पर मधुर भाषी और सुंदर मन वाले बनों ।( वैदिक साहित्य में एकता का स्वरूप )🙏
[3/9, 09:53] Rakesh Narayan Dwivedi: सुंदर बात🙏
[3/9, 09:53] Rakesh Narayan Dwivedi: यह भी स्वामी जी महाराज की पुस्तक है न
[3/9, 10:03] devendra singh parmar: जी ।वैदिक उपदेश से
[3/9, 10:17] devendra singh parmar: अनादि काल से सृष्टि का व्यवहार चल रह हैं । इसका आरम्भ कब हुआ ,इसका इतिहास मनुष्य के पास नहीं है । बहुत से लोग इसका आरम्भ बताते है ,तथापि कार्य --कारण भाव का संबंध अनादि होने से आदि की कल्पना सर्वथा अयुक्त हैं । जैसे इमली के बीज मे डाल ,पत्ते ,आदि के संबंध में सत्ता पहले से ही है ,यदि वे कार्य रुप कारणावस्था  मे न हो तो कभी भी कार्य रुप मे नहीं हो सकते ।अभाव से भाव नहीं हो सकता ,इसीलिये सृष्टि की पूर्णावस्था माननी पडती हैं । इसी से कार्य कारण का संबंध  भी बन सकता है । यदि कारणावस्था मे कार्य न हो ,तो कारण से उसका संबंध ही अप्रसिद्ध होगा और सुव्यवस्थित सृष्टि कार्य नहीं हो सकेगा ।बिना बनाने वाले के कोई भी कार्य नहीं हो सकता । ( वैदिक उपदेश ) से ।
[3/9, 10:29] devendra singh parmar: सृष्टि द्वन्द्वात्मक हैं --- प्रकाश --अधेरा ,सुख --दुख ,आत्मा --अनात्मा ,स्त्री -- पुरूष आदि भेद चले आ रहे है । ये सब कार्य ज्ञान और अज्ञान की भित्ति पर बने हुए हैं । ( वैदिक उपदेश से )🙏
[3/9, 10:29] Rakesh Narayan Dwivedi: जी हां बिल्कुल। सृष्टि रूपी फल का बीज परमात्मा ही तो है। नासते विद्यते भावों नाभावे विद्यते सतः अभाव की सत्ता नहीं और भाव का अभाव नही🙏
[3/9, 10:31] devendra singh parmar: बिल्कुल सही । पूज्यपाद का सूक्ष्मदर्शी ज्ञान का भंडार भरा है । लोकहितकारी हैं । विद्वानों को आनंदित कर मार्गदर्शन किया करते हैं ,ग्रंथों से ग्रंथियां सुलझती भी हैं ।
[3/9, 10:41] Rakesh Narayan Dwivedi: बड़े बड़े शास्त्रों का निचोड़ है इन लघु कलेवर की पुस्तकों में। दतिया का कार्यक्रम देखते है माई कब बनवाती है🙏
[3/9, 10:50] devendra singh parmar: श्री पूज्यपाद श्री पीठाधीश्वर श्री स्वामी जी महाराज के ग्रंथ  विद्वानों के लिए जिज्ञासु जनों के  " मूक गुरु " हैं ।🙏 सभी ग्रंथ एक से एक बढ चढकर ही है । जितनी बार पढे जाये तो न ई -- न ई जानकारी प्राप्त होती हैं ।यह बिशेषता भी महाराज जी ने ही बताई है ।क्योंकि यह सामान्य पुस्तकों की भाँति नहीं है ।साधना की अनुभूतियों को मणि माला मे साधको के लिए पिरोया गया है ।यह उनकी अहैतुकी कृपा है ।🙏
[3/9, 11:52] Rakesh Narayan Dwivedi: jay ho
[3/9, 11:53] Rakesh Narayan Dwivedi: अब लौकिक साहित्य पढ़ने में मन नही लगता
[3/9, 11:53] Rakesh Narayan Dwivedi: इसीलिए न लिखने में भी
[3/9, 15:00] devendra singh parmar: सत्य बातें जब मनुष्य के हृदय में बैढती है तो  जीव अविधा से पृथक हो जाता हैं । जैसे युक्ति से दूध से मख्खन निकाल लेते है  ,उसी प्रकार जीव युक्ति से  उसे परमात्मा को जानकर अविधा से  पृथक हो जाता हैं । इसके पश्चात लौकिक कार्य में लगे हुए भी उसकी शुद्धता मे कोई अन्तर नहीं पडता । जैसे मख्खन दूध से निकालने पर दूध मे ही पडा रहे तो  फिर दूध मे नहीं मिलता इसी प्रकार जीवात्मा भी ईश्वर स्वरूप हो जाता हैं । ( वैदिक उपदेश से )🙏🚩इसलिए मंत्र मे ईश्वर एवं जीव के बिशेषण एक  ही दिये गए हैं । (मंत्र 47) की सुंदरतम व्याख्या की गई हैं ।
[3/9, 15:10] Rakesh Narayan Dwivedi: वाह। अष्टावक्र गीता में अहो अहं नमो मह्यं कहा ही है🙏
11/3/21
घृणा, लज्जा, भय, शोक, जुगुप्सा, जाति का अभिमान, कुल का अभिमान तथा आत्माभिमान यह आठ पाश (बंधन) हैं। जिनका पति यानि धारक मनुष्य है।  पशुपति (मनुष्य) के और पशुओं के भी नाथ यानी भगवान शिव की आज की रात्रि, जिनका रुद्र रूप संहारक हैं और शिव रूप कल्याणक हैं। यह दोनों अलग नहीं। वह आशुतोष हैं। बिल्वपत्र अर्पित करने के समय की स्तुति में उन्हें त्रिगुणाकार (सत, रज और तम) और त्रिजन्म (स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर) पाप संहारक कहा गया है।
शिव भक्त तमाम तरह का नशा करके अपनी भक्ति प्रदर्शित करते हैं, क्योंकि शिव को धतूरा इत्यादि अर्पित किया जाता है। हमे उनकी भक्ति का नशा नशीले पदार्थों का सेवन करके नहीं, अपितु नाम खुमारी में डूबकर प्राप्त करना चाहिए।
12/3/21
सुबह का ध्यान नही हो पाया। ऐसा दिन कई महीनों के बाद आया। आज 3 बजे उठे, पर सवा चार बजे प्राचार्य आवेदन के अभिलेखों का सत्यापन कराने के लिए प्रयागराज निकलना था। साढ़े आठ के आसपास उरई आ पा रहे हैं, इससे सायंकाल का ध्यान हो जाएगा। 23 मार्च को इसके साक्षात्कार के लिए जाना है। गुरुदेव कुछ काम रहे उनकी याद न भुलाएं बस। 
13/3/21

कृष्ण त्वदीय पद पङ्कज पञ्जरान्तं
अद्यैव मे विशतु मानस राज हंसः |
प्राण प्रयाण समये कफ वात पित्तैः
कण्ठ अवरोधन विधौ स्मरणं कुतः ते ॥ ३३ 
Text
O Lord Kṛṣṇa, at this moment let the royal swan of my mind enter the tangled stems of the lotus of Your feet. How will it be possible for me to remember You at the time of death, when my throat will be choked up with mucus, bile, and air?

कभी का ज्ञात भी एक समय बाद अज्ञेय बन जाता है। भाषा, कला, संस्कृति, साहित्य इत्यादि जितने विकसित हुए, क्या वे सब जान लिए गए! क्या उन्हें पूरी तरह जाना जा सकता है! क्या उन्हें जानने के क्रम में हम पुनः अज्ञेय तक नहीं पहुँच जाते! स्थान और व्यक्ति नामों का अध्ययन करते समय वर्षो कितना श्रम किया, किंतु अनेक नामों की व्युत्पत्ति और इतिहास ज्ञात नहीं हो सके। जबकि यह सब व्यक्तियों ने ही तो बनाये हैं। इस प्रकार व्यक्ति द्वारा की हुई रचना भी ईश्वर की ही रचना बन जाती है।
14/3/21
आज तीसरी आंख से प्रकाश दर्शन दो बार हुआ। एक और बार जैसे कोई बड़ी फुलझड़ी की लाइट निकलती है, ऐसे लगा। शून्य ही तो एक है, एक जब कहते है तो दूसरे की प्रतीति न हो, इसलिए उसे अद्वैत कहना अधिक उपयुक्त है। यानी दो नहीं है। इसमे शून्य है, वही एक है और जो दो नही है।
बोलने के कारण विघ्न अधिक होता है। सुनने से एक पक्ष का विघ्न होगा पर बोलने से दोनो पक्षो के घात प्रतिघात सामने आ जाते हैं और वृत्तियां बढ़ जाती हैं।
15/3/21
खेचरी में जिह्वा थोड़ी और भीतर जाने लगी। खेचरी लगे होने पर शरीर के दर्द या खिंचाव का अहसास नहीं होता। यह पता नहीं कितनी करामाती है कि अर्ध पद्मासन में कुछ देर नहीं बैठ पाते थे, पर अब सवा डेढ़ घण्टे भी अर्ध पद्मासन में बैठने लगे हैं। बिना खेचरी के बैठने पर पैरों के पंजो और उपस्थ पार्श्व खिंचने लगते हैं। खेचरी में पता ही नही चलता। स्राव का स्वाद भी बदलने लगा है। शरीर मे खानपान का ध्यान अवश्य रखना पड़ रहा है। कुछ विपरीत भोज्य शरीर से क्रिया और ध्यान के समय खांसी के रूप में बाहर आ जाता है।
16/3/21
दतिया में पीताम्बरा माई का दर्शन हुआ। गुरुजी के शब्दों में गुप्त आत्म बगिया के फूलों को चुनकर उन्हें भक्ति जल से सींचते हुए। क्या आत्मिक आनंद मिला।  यहां से पूज्यपाद स्वामी जी महाराज की वैदिक उपदेश, माण्डूक्योपनिषद, लेख संग्रह, योग विज्ञान 2, चिदविलास और घेरण्ड संहिता पुस्तके आ गईं। 
17/3/21
विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परपीडनाय।
खलस्य साधोः विपरीतमेतद् ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय॥

विद्या, धन और शक्ति जहाँ एक खल (दुर्जन) को विवादी, अहंकारी और अत्याचारी बनाते हैं वहीं वे एक साधु (सज्जन) को ज्ञानी, दानी और रक्षक बनाते हैं।
18/3/21
सौंदर्य चेतना में है या वस्तु में! व्यक्ति वस्तु भी है और चेतना भी। निःसंदेह  सौंदर्य चेतना में है।  चेतना को उज्ज्वल करने की आवश्यकता है..कुरूपता आगे बढ़ेगी ही नहीं।
19/3/21
[3/17, 07:49] Rakesh Narayan Dwivedi: "विमुख-उन्मुख से परे भी तत्त्व की तल्लीनता है-
लीन हूँ मैं, तत्त्वमय हूँ, अचिर चिर-निर्वाण में हूँ!
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!"
अज्ञेय
[3/19, 15:45] Rakesh Narayan Dwivedi: जय गुरु। जी हां। इच्छा शक्ति ही हमारे कर्मो को नियंत्रित रख सकती है। तभी जो होगा वह परमात्मा की इच्छा में मिल जाएगा। प्रणाम🙏
[3/19, 20:11] Rakesh Narayan Dwivedi: एक नेता को जल की भांति होना चाहिए। उसकी गति नीचे की ओर होती है। सबको  रससिक्त करता है, उसके बिना जीवन की कल्पना भी संभव नहीं और उसे इसका भान भी नहीं🙏
[3/19, 20:14] Rakesh Narayan Dwivedi: हमारे शरीर मे भी जल तत्व तीन चौथाई से अधिक है
20/3/21
हमारी इच्छाएं प्रभु पूरी करते हैं। हमे लगता है फलां इच्छा के पूरी होने पर उसका आनुषंगिक सुख मिलने लगेगा। अक्सर देखा गया है कि वह इच्छा पूरी होने पर भी उसके बाद का सुख प्राप्त नहीं हुआ। फिर मन में एक नई इच्छा पूरी करने का संकल्प जाग गया, वह भी पूरी हुई और उसके अनुषंग का सुख भी नहीं मिला। अस्तु! इच्छाएं पूरी होने पर भी सुख नहीं मिलता। सुख हमारा मूल स्वरूपः है, पर वह इच्छा पूरी होने से नहीं मिलता।  एक जीवन मे इच्छा भी पूरी नहीं हो पाती। यह क्रम चलता रहता है। भागवत में है दुःख काम सुखापेक्षा।  
गुरुजी प्रार्थना में कहते हैं मेरी  आत्मा को प्रभु का मंदिर, हृदय को वेदी, प्रेम को घर बनाओ
यानी जहां जहां आत्मा है वहां वहां मन्दिर है, जहां अपना हृदय प्रस्तुत करो वही उनके बैठने का स्थान है और जिस जिस से प्रेम करें वह सब प्रभु का घर है🙏
21/3/21
जो मनुष्य अपने सांसारिक कर्त्तव्यों को त्याग देता है, वह त्याग को तभी उचित सिद्ध कर सकता है, जब उससे कहीं अधिक बृहद् परिवार का दायित्व स्वीकार करता है। योगी कथामृत
22/3/21
उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग प्रयागराज में प्राचार्य पद का इंटरव्यू देने के लिए गए। वहां सिविल लाइन्स में हनुमान जी के दर्शन हुए। 
23/3/21
अस्तित्व अपने और आसपास के लोगों के माध्यम से कितना उपकार करता है हमारा कि हम उसकी कृतज्ञता का ज्ञापन भी नहीं कर सकते। ज्ञापित तरीके उस कृतज्ञता की तुलना में फीके हो जाते हैं।

आज उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग प्रयागराज में विज्ञापन 49 के लिए प्राचार्य पद के साक्षात्कार में उपस्थित हुए। अपने से वरिष्ठ शिक्षकों से कैसे तालमेल बिताएंगे। ईगो क्लैश नही करेंगे, उनकी विषयगत विद्वत्ता का समादर रहेगा। फिर सृष्टि में सबको एक समान काम नहीं मिला, अपने अपने दायित्वो का निर्वहन किया जाता है।
प्राचार्य क्यों बनना चाहते हैं। प्राचार्य पद पर दो तरह  के यानी अकैडमिक और सामान्य प्रशासन की भूमिका को एक पढने लिखने वाला शिक्षक अच्छी तरह निभा सकता है। कॉलेज को ग्रामोन्मुखी होना चाहिए। चेयरपर्सन ईश्वर शरण विश्वकर्मा की टिप्पणी थी। नई शिक्षा नीति पर कुछ तथ्यात्मक प्रश्नों के उत्तर नहीं बने। उदाहरण के लिए anm और tm क्या हैं, नीति कितने पेजो में हैं, आखिरी में क्या है, कुछ बन भी गए कि यह किसने तैयार की। abc क्या है। शोध और प्रतिशोध का अंतर पूछे। उदासी और निराशा को दूर करने के लिए छात्रों से क्या कहेंगे, नर हो न निराश करो मन को पंक्ति सुनने पर ही आग्रह दिखा बोर्ड का। चार लोग बैठे थे। उनकी प्रश्न डर प्रश्न पूछने की आकुलता और बीच बीच मे लिया जा रहा अंतराल सूचित कर रहा था कि वे कुल मिलाकर जवाबो से संतुष्ट हैं। राही मासूम रज़ा का महाभारत पटकथा लिखने सम्बन्धी बड़ा कार्य, नीम का पेड़ उपन्यास का नाम जाने, पर राही का आधा गांव 1950 में ही छपने के उनका तथ्य सही नही। यह 1966 में आया, उन्हें कहा, पर उलझना सही नही लगा। उनका बताया यह तथ्य कि राही amu में अंग्रेजी के प्राध्यापक थे, सही नहीं वे उर्दू के प्राध्यापक थे। यह भी बताया पर वे अंग्रेजी का बताते रहे।  एक अन्य सदस्य बाद में ज्ञात हुआ कि वे प्रो अखिलेश दुबे वर्धा के स्थानीय केंद्र के निदेशक हैं, ने विश्विद्यालय एक्ट का नाम पूछा rte एक्ट में क्या है जाना, कब लागू हुआ 2014  गलत हो गया, वह 2009 में आया। उन्होंने यह टिप्पणी की कि आर्टिकल 45 में तो यह पहले से था फिर क्या नया हुआ, अब मौलिक अधिकार बन गया, 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए, उन्होंने कहा ठीक बताया। एक अन्य सदस्य ने उदास का अर्थ ऊंचे आसन पर बैठने का अर्थ किया तो कहे ठीक कह रहे, उदासी अखाड़ा तभी नाम है। विक्षोभ  शब्द पर चर्चा चली, इसका अर्थ व्यापक है। वातावरण में व्याप्त ध्वनि तरंगों में घात प्रतिघात भी विक्षोभ ही तो है। 
24/3/21
ध्यान के बाद स्टिलनेस के समय लगा जैसे पूरा शरीर गोल चक्कर काटते हुए ऊपर उठ रहा है। शरीर मे अचानक झटका आया और तब ऐसा लगा। इससे पहले मूलाधार से गोल गोल चक्कर सिर पर्यत आये थे। उससे भी पहले जैसे मूलाधार से सहस्रार तक सर्प रेंग गया हो, ऐसा लगा था।
25/3/21
21 मार्च रविवार को तीन घण्टे का ध्यान अर्धपद्मासन में हुआ। उससे पहले 8-10 दिन से इस आसन में ध्यान लग रहा था। आज सोकर जगने पर आधा धंटे से अधिक ध्यान पद्मासन में हुआ। फिर सवा घंटे का क्रिया ध्यान इसी आसन में हुआ। ध्यान के बाद पैरों में दर्द के कारण उठा नहीं गया। कुछ देर लेट गए, अब सब यथापूर्व है। सायंकाल भी पद्मासन में ही ध्यान हुआ।
क्रिया की संख्या के लिए अब माला की आवश्यकता नही रह गयी। 15 मिनट में 36 क्रिया हो जाती है। माला भी एक बाधा ही है। समय देखना भी बाधा है, पर वह माला जितनी बाधा नहीं। समय को बीच बीच मे बराबर देखते जाने से ही समस्या होती है, अन्यथा इंच इंच गेट सिंक यार्ड यार्ड गेट हार्ड स्वामी स्मरणानंद जी कहते ही हैं। 
26/3/21
कॉलेज में परीक्षा केंद्राध्यक्ष और कार्यवाहक प्राचार्य का प्रस्ताव मेरे सम्मुख स्वीकृति/अस्वीकृति के लिये आया। सायंकाल का ध्यान में कौंधा कि इस पर टिप्पणी लिखनी चाहिए कि प्रबंध तंत्र द्वारा नियुक्ति की दशा में स्वीकार्य। यह अच्छा उत्तर है।
27/3/21
स्वामीजी महाराज दतिया की वैदिक उपदेश पढ़ी जा रही है। इससे पहले सिद्धांत रहस्य पढ़ी। यह दोनों पुस्तकें विपुल ज्ञानराशि से समृद्ध हैं। वेद मंत्रों की शास्त्र और लोक सम्मत व्याख्या वैदिक उपदेश में कई गयी है। वेदों को निरा कृषि शास्त्र मान लिया गया तो किसी ने उन्हें अत्यंत दुरूह मानकर अलग कर दिया। उसकी व्याख्याओं के सम्बंध में भी अनेक मत मिलते हैं। स्वामी जी की इस पुस्तक से यह मत दृढ़ हो गया कि ब्रह्मविद्या को वेदों में विहित किया गया और वह सरल और कई तरह से आगे उपनिषदो और पुराणों में व्यक्त होती गयी है। आगे के शास्त्र वेदों का ही विस्तार हैं। शास्त्र ही नहीं तंत्र विद्या भी वेदों में वर्णित है।
28/3/21
आज होलिका दहन होगा। भगवान नृसिंह का दिन। सिंह यानि शेर अभय होता है, अभय निर्भय और भय से परे की दशा है। अभय होने के कारण सिंह को राजा कहा गया है। निर्भय होंने में मुश्किल नहीं, पर अभयता की स्थिति पाना सहज नहीं है। सत्य के मार्ग पर चलकर इसे पाया जा सकता है सत्ये नास्ति भयं क्वचित। सदा जागृत अवस्था प्राप्त व्यक्ति भय से रहित होता है नास्ति जागरितोभयं। सिंह की अभय चेतना जब मनुष्य को प्राप्त होती है और वह अपनी होलिका रूपी दुष्प्रवृत्तियों का दमन करता है, तभी प्रह्लाद यानी प्रसन्नता की रक्षा हो सकती है। 

29/3/21
[3/29, 11:30] Rakesh Narayan Dwivedi: पद्मासन  सर्वोत्तम है  पर मुश्किल है  परिणाम  दोनों  के समान हैं आज ध्यान  करते समय आपका स्मरण हुआ  एक नया विलक्षण  अनुभव  हुआ। डॉ रामशंकर द्विवेदी क्रियाबान
[3/29, 11:32] Rakesh Narayan Dwivedi: 60 श्वास मिलकर प्राण बनता है, एक जगह पढ़ा है। पर हमें इसका मतलब नही पता
[3/29, 11:40] Rakesh Narayan Dwivedi: श्वास और प्राण में अंतर कैसे समझें
[3/29, 12:45] PrKriyaban: Pran wo urja hai jisse svas banti hai
[3/29, 12:46] PrKriyaban: Ye kaise sambhav hai? Pran svas banayegi.. ye ulta nahi ho sakta
[3/29, 12:47] PrKriyaban: Svas to sthool hai.. sthool sharir sukshma sharir se bana hai.. pran urja se svas bana hai
[3/29, 12:49] Rakesh Narayan Dwivedi: श्वास क्रिया करते करते प्राण का उदय होता है  तब तक प्रतीक्षा करनी पडती है। रामशंकर द्विवेदी
[3/29, 12:50] Rakesh Narayan Dwivedi: इसके  कई स्तर है यह करने से नही होती स्वतः होती है
[3/29, 12:50] Rakesh Narayan Dwivedi: अपने आप होता है जब होता है तब चमत्कार  सा लगता है
[3/29, 12:50] Rakesh Narayan Dwivedi: डॉ द्विवेदी
[3/29, 12:51] PrKriyaban: Aapki kya rai hai?
[3/29, 12:51] PrKriyaban: Kya?
[3/29, 12:51] PrKriyaban: Kaisa chamatkaar
[3/29, 12:52] Rakesh Narayan Dwivedi: unhe aj vilakshan anubhav hua, usi ko likh rahe he
[3/29, 12:53] Rakesh Narayan Dwivedi: kundalini shakti ka prawah chadha hoga
[3/29, 12:53] PrKriyaban: Ji ji
[3/29, 12:54] Rakesh Narayan Dwivedi: kundalini jagne ke apne apne anubhav hote he, we alag alag bhi ho sakte he, lekin unka prBhav ek sa hota
[3/29, 12:54] PrKriyaban: Hum svas bheetar lenge to pran urja spine se upar jati saaf pata chalti hai
[3/29, 12:54] PrKriyaban: Haan
[3/29, 12:55] Rakesh Narayan Dwivedi: is shwas se pran aur usse man buddhi ityadi antahkaran banta kya
[3/29, 12:57] PrKriyaban: Lekin humne padha hai na ki medulla se pran shati andar aati hai spine mei aur fir suksham aur fir sthool sharir banta hai
[3/29, 12:58] PrKriyaban: Haan ye sadhna karne ke liye samajhte hain isi tarah.. yog sutra isi tarah samjhata hai
[3/29, 12:58] PrKriyaban: Lekin svas se pran nahi ban sakta.. sthool se sukshma nahi banta
[3/29, 13:00] Rakesh Narayan Dwivedi: hmm
[3/29, 13:04] Rakesh Narayan Dwivedi: sthul aur suksham me tatwa common bhi to hote he na
[3/29, 13:05] Rakesh Narayan Dwivedi: tatwo me na shwas gini jati na pran
[3/29, 13:06] Rakesh Narayan Dwivedi: shwas to wahan he, jis par sab sawar he
[3/29, 13:07] PrKriyaban: Tatva se kya samajte hai, thoda bataiye
[3/29, 13:08] Rakesh Narayan Dwivedi: panch gyanendriyan, panch karmendriyan, panch tanmatrayen, panch pran, man buddhi chitt aur ahankar
[3/29, 13:08] Rakesh Narayan Dwivedi: panch mahabhut, panch kosh
[3/29, 13:08] PrKriyaban: Ji theek
[3/29, 13:09] PrKriyaban: Lekin har Karmindriya ka sukshma hissa hai aur sthool hissa hai..
[3/29, 13:09] PrKriyaban: Pran hi gina jana chahiye
[3/29, 13:10] PrKriyaban: Sab sawar hai.. yani ki maaya roopi sansar?
[3/29, 13:11] Rakesh Narayan Dwivedi: vyashti rup me avidya, samshti rup me maya, lekin gyan hone par shakti aur shiv
[3/29, 13:14] Rakesh Narayan Dwivedi: kabhi kabhi to lagta he, man, buddhi, chitta  yah sharir se kahi badi satataye  he to yah sharir se bahar hogi aur vyakti vishesh ko param satta uske karmo ke anusar chala rahi he
[3/29, 13:16] Rakesh Narayan Dwivedi: ji.. panch pran he tatwo me
[3/29, 13:18] Rakesh Narayan Dwivedi: to shwas se hi na man, buddhi pran ityadi chalte hoge
[3/29, 13:19] PrKriyaban: Haan
[3/29, 13:20] PrKriyaban: Ye sukshma shahir ka hissa hai.. aur pran se chalta hai
[3/29, 13:20] PrKriyaban: Waise ispar sochna hoga
[3/29, 13:21] PrKriyaban: Svas we hum pran ko sanchalit karte hain, aur pran mann buddhi ityadi ko usi prakar sanchalit karega
[3/29, 13:22] PrKriyaban: Lekin ye svas bana pran se hai.. pran ka sthool hai ye
[3/29, 13:23] PrKriyaban: Ji ye theek hai.. jaisa hame sikhaya gaya hai
[3/29, 13:27] Rakesh Narayan Dwivedi: hamare sat chakra junction he teeno shariro ke, jaha we ek sath kary karne ke liye milte he
[3/29, 13:34] Rakesh Narayan Dwivedi: jisse pran banta he wah vayu to sarwatr oxygen ke rup me bahar he, shwas use lati he.
[3/29, 13:37] PrKriyaban: To aap kya ye kah rahe hain ki swas se pran banta hai?
[3/29, 13:37] Rakesh Narayan Dwivedi: banta he, yah nahi par wah kadi to he
[3/29, 13:38] Rakesh Narayan Dwivedi: dhyan me aksar lagta he ki ham vigalit ho gaye
[3/29, 13:38] PrKriyaban: Haan kadi to hai avasya.. hum isi kadi ka istemaal karte hain
[3/29, 13:38] Rakesh Narayan Dwivedi: kuch nahi he pind
[3/29, 13:38] PrKriyaban: Haan body consciousness chala jata hai
[3/29, 13:39] Rakesh Narayan Dwivedi: urja ka ghanibhut rup hi sharir he
[3/29, 13:40] PrKriyaban: Haan bilkul
[3/29, 13:41] Rakesh Narayan Dwivedi: prashna antahkaran ka he to wah andar bahar awagaman karta rahta he na
[3/29, 13:41] PrKriyaban: Antahkaran bahar kaise aayega? Ye sukshma sharir ka bhaag hai
[3/29, 13:42] PrKriyaban: Haan hum chahe to sukshma sharir ko sthool sharir se alag kar sakte hain
[3/29, 13:42] Rakesh Narayan Dwivedi: karan sharir ka bhi to hissa he antahkaran
[3/29, 13:42] Rakesh Narayan Dwivedi: karan sharir vichar me hi hota
[3/29, 13:42] PrKriyaban: Karan sharir mei ek kosh aata hai, anandmay kosh
[3/29, 13:43] PrKriyaban: Ji
[3/29, 13:44] Rakesh Narayan Dwivedi: karan sharir me sthul aur sukshma shariro ke sab tatwa vichar rup me rahte he
[3/29, 13:45] Rakesh Narayan Dwivedi: har kosh teeno shariro me he
[3/29, 13:45] PrKriyaban: Haan... beej ke roop mei
[3/29, 13:45] PrKriyaban: Aisa kahan batya hai?
[3/29, 13:46] PrKriyaban: Maine yehi padha hai ki sthool sharir mei annamay kosh hai
[3/29, 13:46] PrKriyaban: Fir teen kosh sukshma mei
[3/29, 13:46] Rakesh Narayan Dwivedi: anytha sangati nahi banegi, aisa padha bhi he
[3/29, 13:46] PrKriyaban: Aur karan mei anandmay kosh
[3/29, 13:46] PrKriyaban: Kahan?
[3/29, 13:46] PrKriyaban: Upanishdon mei aisa nahi bataya hai
[3/29, 13:47] Rakesh Narayan Dwivedi: kosh kah sakte he alag alag, guruji ne likha he sthul aur sukshm ke sab tatw karan me hote he, upar ka page padhiye
[3/29, 13:48] Rakesh Narayan Dwivedi: gita ka he
[3/29, 13:50] Rakesh Narayan Dwivedi: kosh ki ganna tatwo me nahi he
[3/29, 14:29] PrKriyaban: Ji ye sahi hai bilkul.. karan sharir mei beej roop mei har kuch vidyaman hai.. jaise ek beej mei ek poora ped hai..
[3/29, 14:33] PrKriyaban: Upar likha hai ki pancho kosh teeno sharir mei hain
[3/29, 14:33] PrKriyaban: Lekin uske baad ye bataya hai ki sukshma mei teen, stool mei ek aur karan mei ek
[3/29, 14:34] PrKriyaban: Isko aise kyun nahi samjhaya ki karan sharir mei paancho kosh hain, fir sukshma mei bhi paancho hain aur sthool mei bhi paancho hain
[3/29, 14:38] Rakesh Narayan Dwivedi: जी।🙏
[3/29, 14:39] Rakesh Narayan Dwivedi: पांच kosh teen shariro me bate huye he, lekin yah sawal abhi bhi bana hua he ki pran aur shwas ka kya sambandh he
[3/29, 14:57] PrKriyaban: Praan hai, Isliye shwas hai
[3/29, 14:58] PrKriyaban: Ye lesson mei bataya hai ki shwaas sthool roop hai pran ka
[3/29, 14:59] Rakesh Narayan Dwivedi: श्वास ko dori kaha he lesson me guruji ne ki yah atma ko sharir se jodti he
[3/29, 14:59] PrKriyaban: Haan
[3/29, 15:01] Rakesh Narayan Dwivedi: isi shwas se hi  teen guno ka sambandh hamare sharir se judta he na
[3/29, 15:02] PrKriyaban: Haan
[3/29, 20:40] Rakesh Narayan Dwivedi: anandmayi ma ka do minute ka video
[3/29, 23:29] PrKriyaban: Bohot energy feel hui 🙏

30/3/21
[3/30, 05:47] Rakesh Narayan Dwivedi: santo ka darsh parsh sab prakar se ham logo ke liye achha he, pranam🙏
[3/30, 06:08] Rakesh Narayan Dwivedi: panchtatwo ke teen guno (sat, raj, tam) se milkar gyanendriyan, karmendriya aur tanmatrayen ya vishay bante he. kaiwalya darshanam
[3/30, 08:23] PrKriyaban: Prakriti ki har cheez, chitt se lekar sab inhi se to bana hai
[3/30, 10:09] PrKriyaban: Ek baat bataiye
[3/30, 10:09] PrKriyaban: Omkar ki dhwani bhi trigunatmak hai kya?
[3/30, 10:11] Rakesh Narayan Dwivedi: atma ke teen pad trigunatmak he, par chautha triguanatit he,  turiya. manduky me
[3/30, 10:12] PrKriyaban: Turiya mai janti hoon
[3/30, 10:12] PrKriyaban: Omkar dwani ke liye pooch rahi thi
[3/30, 10:13] PrKriyaban: Aur atma ke pad? Atma to Brahma ka ansh hai.. isme koi guna nahi..
[3/30, 10:14] PrKriyaban: Jagrit se sushupti to prakriti ka ansh hai.. atma ka pad nahi
[3/30, 10:14] PrKriyaban: Ise maya roopi hai samjha gaya hai
[3/30, 10:17] Rakesh Narayan Dwivedi: jo vyakt sansar he use samjhne ke liye atma may sab dekha gaya he. aum jagrat swapn aur sushuptie vyakt he, turiya me avyakt ya aniwachniy
[3/30, 10:19] Rakesh Narayan Dwivedi: asal me alag alag drishti se jiwan jagat aur brahm ko samjha gaya he, ek ke auzaro ko jab dusre me mix karte he to confusion ho jata he
[3/30, 10:29] Rakesh Narayan Dwivedi: tum bahut kuch janti ho, apne ko janwa na manne ke bawjud..
[3/30, 10:37] Rakesh Narayan Dwivedi: apne hi bataya tha aum ka vivechan mandukya karika me hua he. 

pran aur aum me samanta he? dono ek hi he, pran shakti he aur aum bhi, brahm ka wachak pranav he aur shakti uska vistar he hi
[3/30, 11:10] PrKriyaban: Haan, ye mushkil.. jaise yog ki apni ek drishti hai, vedant ki apni alag drishti
[3/30, 11:12] PrKriyaban: Mandukya mei ye samjhya gaya hai ki jagrat swapn sushupti ki zarurat hame turiya avastha ko samajhne ke liye hai, lekin jab hum turiya avastha par rahenge, tab ye pata chalega ki jagrit, swapna, sushupti hai hi nahi. ye sab bas ek maaya hai.. 

Mandukya to khatam hota hai is gyan par ki aapka janm hua hi nahi
[3/30, 11:15] PrKriyaban: Ji, vedant mei OM ko alag dristi se liya gaya hai.. 

Hame yog mei omkar ki dhwani sunne aur usme vileen hona sikhaya hai.. mai yog paksh se om ko kaise samjhein ye pooch rahi thi.. 

Lekin mool baat ye hai ki Omkar ki dwani ek spandan hai, ise satva guna se yukt hi hona chahiye..
[3/30, 12:57] Rakesh Narayan Dwivedi: is bich anandmayi ma ke pravachan sunne lage youtube par
[3/30, 12:58] Rakesh Narayan Dwivedi: yogoda ki om pravidhi se anubhav kiya ki  srishti ka pratyek parmanu se om gunjarit ho raha he
[3/30, 13:00] Rakesh Narayan Dwivedi: hong sau vyaktigat ahsas he aur aum samashtigat anubhav he
[3/30, 13:01] Rakesh Narayan Dwivedi: hong sau aur om me koi antar nahi. ek me swayan se chal rahe , dusre me sabko sun rahe
[3/30, 13:02] Rakesh Narayan Dwivedi: mandukya ke mantra ko dekhiye
[3/30, 13:21] PrKriyaban: Ye advait ki drishti se samjhaya hua hai na?
[3/30, 13:21] Rakesh Narayan Dwivedi: जी
[3/30, 14:15] Rakesh Narayan Dwivedi: saty ko grahan karne ke liye hame chijo ko ulat pulat karke bhi dekhna pad sakta na.. ham jis dagar par he uski uplabdhi gurudev ke bataye raste par chalte jane se ek din hogi hi. raste chalte huye vibhinn drishyo ko dekhte chalne ka upakram he bas.  swadhyay padhne ko nahi kahte, apne ko dekhna swadhyay he, yah darshan shravan, pathan, manan aur dhyan sabse hota he..
[3/30, 14:21] PrKriyaban: Uttam kathan 🙏
[3/30, 16:25] Rakesh Narayan Dwivedi: 🙏🙏
[3/28, 17:10] Rakesh Narayan Dwivedi: कौल खाना शपथ लेने का पर्यायवाची मान लिया गया. यह ठीक-ठीक शपथ लेना नहीं है।  'कौल' की प्रयोग परम्परा क्या हो सकती है!
[3/28, 17:59] devendra singh parmar: बुन्देलखण्ड भाषा में " कौल " शब्द का प्रयोग किया जाता हैं । परस्पर एक दूसरे व्यक्ति को अपने प्रति विश्वास करने के लिए । यथा --  तुमाओ कौल खाके कह रहे है कि ,जो बात हमनें बिल्कुल नहीं क ई । जहाँ तक हमारा सोच हैं कि ,भरोसा दिलाया जाता हैं । "कौल " खाकर ।
[3/28, 20:01] Rakesh Narayan Dwivedi: जी बिल्कुल। यह शब्द तंत्र का है और अब तक प्रचलित बना हुआ है। कुल (कुटुंब नहीं) पथ को जानने वाला व्यक्ति ही तो भरोसा दिला सकता है🙏
[3/29, 00:15] devendra singh parmar: सत्य वचन ।  यह शब्द साधना शास्त्र में बहुत ही उच्चावस्था के साधकों के लिए प्रयोग किया गया है.। जैसा कि ,श्री पूज्यपाद महाराज श्री ने अपने द्वारा विरचित ग्रंथ लेखसंग्रह मे (शाक्त साधना ) लेख मे  "कौल " शब्द का मर्म उद् घाटित किया है । यह सब रहस्य बताये गए हैं ।  कुण्डलिनी जागरण की  साधना में इसे ही कुलपथ या ब्रह्म पथ कहते है। इसके मालूम होने पर ही साधक यथार्थ कौल होता है । इसलिए कहा है  " कौलात्परितरंनहि " यही ब्रह्म का यथार्थ साक्षात्कार होता हैं । इस मार्ग में नवनाद का अनुभव योगी करता है । ( विस्तार से लेखसंग्रह मे यह  लेख अवश्य बार --बार पढिए ) सभी प्रकार की जिज्ञासा हेतु ।🙏 यह सब महाराज श्री की अहैतुकी कृपा हैं।
[3/29, 06:04] Rakesh Narayan Dwivedi: सही सन्दर्भ के साथ अपने विषय को खोल दिया है🙏
[3/29, 09:38] devendra singh parmar: श्री अनन्त बिभूषित पूज्यपाद श्री पीठाधीश्वर के वचनामृत -- लेख संग्रह -- लेख (18)   "  ऐसा कोई  भी ज्ञान नहीं हैं ,जो शब्द ब्रह्म से प्रकाशित नहीं होता ।अर्थात् सभी तत्व शब्द द्वारा ही स्वरूप लाभ करते हैं । ( विस्तार से उक्त लेख में बताया गया है। साधना के लिए )🙏 यह सब कुछ. महाराज जी के तपोबल की महिमा से रहस्यमयी बातों को जिज्ञासु जनों के लिए उद् घाटित किया गया है ।लोककल्याण कारी हैं । सुपात्रों के लिए मार्गप्रशस्त किया गया है ।🙏 मांई की बारम्बार जय हो ।
[3/29, 09:46] Rakesh Narayan Dwivedi: जय हो🙏
[3/29, 13:53] Rakesh Narayan Dwivedi: स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीरों के बारे में क्या मार्गदर्शन किया गया है, बताइएगा🙏
[3/29, 19:52] devendra singh parmar: कृपया  बांछित  जिज्ञासा हेतु संज्ञान हेतु । पूज्यपाद द्वारा बताया गया है । ( लेखसंग्रह मे )🙏
[3/29, 19:56] Rakesh Narayan Dwivedi: बहुशः धन्यवाद । आपने पूज्यपाद स्वामी जी का साहित्य, शिक्षा और कृपा भली प्रकार ग्रहण की हुई है। इन अलग अलग शरीरों के तत्वो का विवेचन भी आया है क्या कही🙏
[3/29, 19:58] Rakesh Narayan Dwivedi: कुल 36 तत्व बताए हैं स्वामी जी ने चिदविलास में
[3/29, 19:59] Rakesh Narayan Dwivedi: लिखा है कि छत्तीस तत्व में भगवान शिव या शक्ति निवास करती हैं
[3/29, 20:11] devendra singh parmar: जी । 36 तत्व एवं षट्त्रिंशदक्षरी महाविधा पर आत्मतत्व की स्थिति है ,यही सांसारिक. बिषय का पर्यवसान होता है । जैसा कि --सौन्दर्य लहरी मे बताया गया है । तथा श्री विधा पंचदशी के भी 36 अक्षरों का  छ: छ : अक्षरों के समूह में  षट्चक्रों मे विभाजन हैं । ऐसा चिद् विलास मे महाराज श्री ने बताया है । परम रहस्यमयी साधना मार्ग की गूढतम और सूक्ष्मतम  बातों को बताकर अहैतुकी कृपा की गई है ।🙏
[3/29, 20:27] Rakesh Narayan Dwivedi: जी मिल गए। चिद्विलास श्लोक 9 संस्कृत टीका में दिए हैं पंचभूत, पंच तन्मात्रा, पांच कर्मेन्द्रियाँ, पांच ज्ञानेंद्रियां, मन, बुद्धि, अहंकार, प्रकृति, पुरुष, कला, विद्या, राग, काल नियति, माया, शुद्धविद्या, ईश्वर, सदाशिव, शक्ति और शिव। 🙏
[3/29, 23:51] devendra singh parmar: श्लोक (19) चिद् विलास मे बताया गया है कि , पंचभूतों के अनुभव जो ( सूक्ष्म शरीर ) मे होते है उन्हीं का नाम तत्वोदय हैं । और इन तत्वों का क्रमशः लय करना ही मानसोपचार पूजन हैं ।🙏
[3/30, 10:33] Rakesh Narayan Dwivedi: मांडूक्य उपनिषद के भाष्य में भी पू स्वामी जी ने तत्वो को खोला है🙏
31/3/21
मनुष्य के शब्द उसकी आत्मा को व्यक्त करते हैं। बोले हुए शब्द विचारों के स्पंदन की ध्वनि हैं। विचारों को आत्मा या अहं द्वारा स्पंदित किया जाता है। प्रत्येक शब्द जो हम बोलते हैं, वह आत्मस्पन्दन की शक्ति से भरा होना चाहिए। मनुष्य के शब्द प्राण रहित हो जाते हैं यदि वे आध्यात्मिक शक्ति की अकाट्यता को धारण न करते हों। बातूनीपन अतिरंजना या मिथ्यापन हमारे शब्दों को उसी तरह अप्रभावी बनाते हैं जैसे खिलौना बंदूक से कागज की गोली चलाई गई हो। वाचाल अथवा उपयुक्त व्यक्ति की प्रार्थना और व्याख्यान लाभकारी परिवर्तन उत्पन्न नहीं कर पाते हैं। मनुष्य के शब्द न केवल सत्य का प्रतिनिधित्व करें, वरन उसकी स्पष्ट समझ और ग्रहणशीलता को भी व्यंजित करें। बिना आत्मशक्ति के बोले वचन बिना दाने के भूसे के समान हैं। गुरुदेव की पुस्तक साइंटिफिक हीलिंग अफ्फर्मेशन से

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