Tuesday, October 27, 2015

थाइलैंड और उसका जनजीवन

थाइलैंड और उसका जनजीवन

डा राकेश नारायण द्विवेदी

15 से 21 अक्टूबर 2013 को संपन्न मेरी थाइलैंड यात्रा न केवल पहली विदेश यात्रा थी, वरन् यह पहली बार की हवाई यात्रा भी थी । मात्र साढ़े चार घंटे की हवाई यात्रा से दक्षिण पूर्व एशिया के इस सुंदर और संपन्न देश में पहुंचा जा सकता है । दुनिया के कुछ देशों में जाने के लिये अग्रिम वीज़ा लेने की आवश्यकता नहीं है, थाइलैंड भी उनमें से है । यहां पासपोर्ट धारक सीधे पहुंचकर वीज़ा आन अराइवल की सुविधा ले सकते हैं । इसमें भी अगर पंक्ति में खड़े होने की असुविधा से बचना है तो दो सौ बाट अतिरिक्त देकर अलग काउंटर से वीज़ा बनवा सकते हैं । एक हज़ार बाट यहां की वर्तमान वीज़ा फीस है । बाट थाइलैंड की मुद्रा का नाम है, जिसकी दर वर्तमान में दो रुपये में एक बाट की है । अमेरिकन डालर से बाट खरीदे जाते हैं । जिस तरह वर्तमान में अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा है, उसी तरह अमेरिकन डालर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा है । लगभग तिरसठ रुपये में एक डालर खरीदा गया । नियमानुसार थाइलैंड वीज़ा प्राप्त करने के लिये न्यूनतम पांच सौ डालर या एक हजार पाच सौ बाट अपने साथ रखने आवश्यक होते हैं । जब मुझे यह मेरे टूर निर्देशक और विश्व हिंदी मंच के अध्यक्ष डा प्रणव शर्मा ने बताया तो मेरी प्रतिक्रिया थी कि कदाचित् फोकटिया लोगों की आवश्यकता ऐसे देशों को नहीं है ।

गो इंडिगो के जिस विमान से यात्रा हुयी, उसमें तीन तीन कुर्सियां होती हैं, जो भारतीय रेल के कुर्सीयान का स्मरण कराती हैं । रेलों में एयर होस्टेज की तरह नवयुवतियों की सेवायें उपलब्ध नहीं होतीं, पर विमानों में ये निशुल्क पेयजल देती हैं । शुल्क भुगतान करने पर खानपान की सुविधा भी प्राप्त होती है । विमान में लघुशंका करने के बाद फ्लश चलाने पर पानी नहीं निकलता, वरन् सोख्ता करके कमोड की सफाई होती है । कमोड में पानी से गुदा प्रक्षालन की सुविधा नहीं थी, पानी की खाली बोतल होस्टेज से लेकर काम चलाना पड़ता है । पता नहीं कैसे कुछ व्यक्ति बिना पानी प्रक्षालन किये हुये, टिसू पेपरों से पोंछकर ही काम चला लेते हैं । यह स्थिति बैंकाक के होटल रायल पैलेस में भी रही, जिसमें हम लोग तीन दिन ठहरे । बिहार के एक सज्जन को अत्यधिक परेशानी हुयी, उन्होंने कहा, हम तो पेपर पढ़ते है, उससे यह काम नहीं किया जा सकता ।

थाइलैंड के लोग शांत प्रकृति एवं अपने काम से काम रखने वाले होते हैं । धीरे से अपनी बात रखते हैं । चीखने चिल्लाने से दूर रहते हैं । गौर वर्णी, नाटा क़द, चौड़ा माथा, उन्नत उरोज और पुष्ट जंघाओं वाली थाई युवतियों की आंखें कुछ धंसी हुयी होती है, इसीलिये वे अपनी आंखों पर प्राय: आइलिड लगाती हैं । यहां की महिलायें छोटे किंतु निजी अंगों को ढंके हुये वस्त्र पहनती हैं । साड़ी यहां भारतीय स्त्रियां ही पहने हुये मिलेंगी ।  पुरुषों का पहनावा भारतीय पुरुषों से भिन्न नहीं है । ४४अक्षरों वाली थाई यहां की मुख्य भाषा है ।  थाई सर्वाहारी होते हैं । पृथ्वी का हर जीव जंतु इनका खाद्य है । जीवित सफेद झींगा बड़े चाव से ऐसे खाते हैं, जैसे भारत में लाई चना खाये जाते हैं , शाकाहार में इनका विश्वास अल्प ही है । आम तौर पर थाई शाम को सात बजे तक अपना डिनर कर लेते हैं । समय और अनुशासन के धनी थाई खूब मेहनती होते हैं । स्त्रियां अधिक काम करती हुयीं देखी गयीं । हवाई अड्डे पर एक युवती का यही काम था कि आगंतुकों को कोई कठिनाई न होने पाये, वह जा जाकर लोगों को गाइड कररही थी । थाई अपने काम के प्रति बेहद निष्ठावान होते हैं । टूर और ट्रेवल्स को बढ़ाने पर इनका विशेष ज़ोर रहता है । जिस काम के लिये यह धनराशि लेते हैं, उसे संतुष्टिपूर्ण ढंग से संपन्न करते हैं ।  थाइलैंड में आधे से अधिक जन बौद्ध धर्मावलंबी हैं, धर्म का समाज से गहरा नाता होता है । जिस तरह बौद्ध धर्म में बाह्याचारों का स्थान नहीं, उसी प्रकार यहां का समाज कोई क्या कर रहा है, उसे रोकना टोकना ज़रूरी नहीं मानता । पारंपरिक रूप में थाइलैंड की सभ्यता भारत की प्राचीन सभ्यता से भिन्न नहीं है । इस देश का पुराना नाम सियाम है । इसकी रुचियां और संस्कार भारतीयों से भिन्न नहीं है । यहां किंग राम का ही शासन है । हमेशा राम का ही शासन रहता है । इस अर्थ में यहां रामराज्य ही रहता है । नवें राम इस समय यहां के शासनाध्यक्ष हैं । आगे इनकी इकलौती पुत्री इस ज़िम्मेदारी को निभायेंगी । राजकुमारी संस्कृत में उच्च शिक्षित हैं । इनकी शिक्षा दिल्ली से ही पूरी हुयी है । थाइलैंड में अयुध्या है, सीता के नाम पर अनेक स्थान नाम हैं । हवाई अड्डे पर समुद्र मंथन की अप्रतिम शिल्पकारी देखते ही बनती है और यह देखकर लगता ही नहीं कि हम भारत में नहीं हैं । संस्कृत के कई शब्द ध्वनिगत अंतर के साथ थाइलैंड में सुने जाते हैं । स्वागत के लिये स्त्रियों द्वारा कहा जाने वाला "सवातिका" स्वस्तिक से मिलता जुलता है ।

पर्यटन केंद्र कैसे विकसित किये जायें, यह थाइलैंड से अच्छी तरह जाना जा सकता है । इन्होंने बैंकाक शहर के मध्य प्रवाहित हो रही नदी में क्रूज (पानी के जहाज) चला रखे हैं, जिनकी दो मंजिलों पर बैठकर चलते हुये जबाज में लोग डिनर करते हैं, गानों पर जमकर थिरकते हैं । गीत गाने वाली थाई बालायें भारत पाकिस्तान के सद्भाव में जिंदाबाद के नारे लगवातीं हैं । जिस देश के पर्यटक अधिक होते हैं, उस देश के गाने अधिक गाती हैं । भारत के पर्यटक ही अधिक संख्या में देखे जाते हैं । भारत के लोग भी पाकिस्तानियों के आगे नाच गाकर देश भक्ति और सद्भाव का विरल नज़ारा पेश करते हैं । यद्यपि भारत और पाकिस्तान के स्त्री पुरुषों में तनाव की छाया भी झांकती रहती है कि कहीं कोई अवांछित न हो जाये । फोटो खींचकर बेचना यहां हर पर्यटन जगह पर प्रचलित है । वह चाहे पटाया बीच और कोरल आइलैंड पर ग्लाइडिंग करते हुये हो, क्रूज पर सुंदरी के साथ, सफारी वर्ल्ड में सील एवं डाल्फिन मछलियों तथा चिम्पाजियों द्वारा चुंबन करते हुये हो या चाहे स्टंट करते हुये जांबाजों के साथ हो । आइ पैड, मोबाइल और कैमरा के बढ़ते प्रचलन के बीच भी ये लोग अपने फोटो बेच ही लेते हैं, क्योंकि फोटो पेश करने का इनका तरीक़ा आकर्षक होता है । तस्तरी पर, फोल्डर बनाकर, पटाया और बैंकाक की सुंदर प्राकृतिक पृष्ठभूमि में किसी पर्यटक का जब ये फोटो िबना उसकी जानकारी के उसके सामने प्रस्तुत करते हैं तो पर्यटक सहज ही १००-२०० बाट अपनी जेब से निकाल कर दे देते हैं।

थाइलैंड को प्रायः लोग मौज मस्ती के लिये जानते हैं, पर यह जानकर सुखद आश्चर्य होता है कि यहां बिना हार्न के ही सारे वाहन दौड़ते हैं । हफ्ते भर के प्रवास में मैंने हार्न नहीं सुना । यदि कोई हार्न बजाता है तो बताया गया कि पुलिस उसे एक इमरजेंसी मानती है । किसी खतरे के बिना यहां हार्न नहीं बजाया जाता और यह यहां के लोगों में सहज अभ्यास में सम्मिलित हो गया है । कोई व्यक्ति गुटखा, पान मसाला चबाते हुये यहां नहीं दिखा । कहीं सार्वजनिक स्थान पर थूकना भी यहां विरल ही है । थाइलैंड के सफारी वर्ल्ड में जंगली जीव जंतु, पशु पक्षी पूर्ण सुरक्षित और हमारे इतने क़रीब हैं कि रोमांच होता है । वाहन सेंसर लगे जालीदार दरवाज़ों को स्वतः खोलकर और बंदकरते हुये प्रवेश एवं निकास करते हैं । वाहन में बैठकर सड़क किनारे बने मचानों पर चीतों, भालुओं और शेरों की मस्ती को देखकर मन भयमिश्रित पुलकायमान हो जाता है । बिना तनाव के हम इन वन्य पशुओं का दीदार बिना जाली के यहां करते हैं । इन पशुओं को भरपूर तृप्तिदायक भोजन मिलता हो, जिससे ये अपने सामने से निकलते पर्यटकों पर हमला नहीं करते । दर्जनों की संख्या में एक साथ ऐसे हिंस्र पशु किसी चिड़ियाघर में अन्यत्र दिखाई नहीं पड़े ।

थाइलैंड के लोगों में सेक्स बेचने की प्रवृत्ति देखी जाती है । यहां स्त्री पुरुषों के नग्न शो भी होते हैं, कामक्रीड़ा करते हुये शो देखना वीभत्सकारी लग सकता है । मुझे लगता है इसे देखने का एक बार आकर्षण होता ही होगा ।  सेक्स वर्करों की नंबर प्लेट लगाकर नुमाइश होती है, जिनमें से कामातुर पर्यटक चयन कर घंटे भर के ही चार पांच हजार रुपये सहर्ष खर्च कर देते हैं । सेक्स वर्कर सम्मान की जिंदगी जीती हैं । सेक्स जैसे बंद विषय को जानने की दृष्टि से ऐसे शो वयस्क भूमिका का निर्वाह करते हैं । सामाजिक ताने बाने और धर्म की भूमिका इसमें प्रमुख मानी जा सकती है । कहने को तो यहां कहा जाता है, "गुड बायज गो टु टेंपल, बट बेड बायज कम टु पताया", पर साथ ही पर्यटकों को इसके लिये प्रोत्साहित भी किया जाता है । इसके पक्ष में अनेक तर्क दिये जाते हैं कि भारत में काम को ठेंगे पर और सेक्स को दिमाग में रखा जाता है, किंतु इस देश में काम को दिमाग में और सेक्स को समुचित स्थान पर रखा जाता है । भारतीय संस्कार कभी कभी इस देश को चकलाघरी देश के रूप में निरूपित करने की ओर उन्मुख करते हैं । मसाज केंद्रों की यहां भरमार है, आम तौर पर थाइलैंड की महिलायें फुट मसाज, ड्राइ मसाज, आइल मसाज, एरोमाथेरेपी केंद्रों पर परिश्रमपूर्वक मसाज करती हैं । इनके श्रम और समर्पण को देखकर यह कहना ही पड़ता है कि आगंतुक की संतुष्टि इनका सर्वोपरि ध्येय होता है ।
शब्दार्णव, 245 ए, नया पटेल नगर,
​    निकट टाटा टावर, कोंच रोड, उरई (जालौन) उ0प्र0
                                 ई मेलrakeshndwivedi@gmail.com


डा राकेश नारायण िद्ववेदी

No comments:

Post a Comment